फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक बोध कथा से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, जंगल में नीम के पेड़ के ऊपर चुनमुन नाम की एक बहुत ही सुंदर लेकिन नटखट चिड़िया रहती थी। वैसे वह बहुत समझदार,  हमेशा भविष्य की आवश्यकताओं का अंदाज़ा लगाकर पहले से उसकी तैयारियाँ कर लिया करती थी। जैसे बारिश या ठंड के मौसम में सुरक्षित रहने के लिए घोंसला बनाना, उसमें भोजन का समुचित प्रबंध करना आदि। चुनमुन चिड़िया में एक बुरी आदत भी थी, वह बिना सोचे समझे किसी की भी ग़लतियाँ निकालकर उन्हें बिन माँगे सलाह दिया करती थी।

एक बार संध्या के समय अचानक बिजली कड़कने लगी और कुछ ही देर बाद गरज के साथ बेमौसम बरसात शुरू हो गई। जंगल के सभी जानवर तेज़ी से अपने-अपने घरों की ओर भागने लगे, चुनमुन चिड़िया जो उस वक्त पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर बैठकर सुहाने मौसम को निहार रही थी, तत्काल उड़ी और अपने घोंसले में घुस गई। कुछ ही देर बाद उसी पेड़ पर बारिश से बचने के लिए एक बंदर आकर बैठ गया।

चुनमुन चिड़िया ने जैसे ही बंदर को बरसात से बचने की असफल कोशिश करते हुए देखा तो बिना सोचे समझे बोल पड़ी। बंदर भाई यूँ तो तुम बड़े समझदार बने फिरते हो फिर भला इस मौसम से बचने के लिए तुमने कोई सुरक्षित स्थान खोजकर, अपना घर क्यूँ नहीं बनाया। चुनमुन की बात सुन बंदर को ग़ुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसने चिड़िया की बातों को नज़रंदाज़ कर, चुप रहने का निर्णय लिया और खुद को थोड़ा और समेटकर बारिश से बचने का प्रयास करने लगा।

बंदर से कोई प्रतिक्रिया ना पाकर चुनमुन चिड़िया अपने आप ही कुछ-कुछ बड़बड़ाने लगी। उसकी फ़ालतू की बातें सुन बंदर बहुत परेशान हो रहा था लेकिन किसी तरह अपने ऊपर क़ाबू रख चुपचाप बैठा रहा। दूसरी ओर बरसात भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी उल्टा अब बारिश के साथ तेज़ और ठंडी हवाएँ भी चलने लगी थी। कुछ देर शांति के पश्चात चुनमुन चिड़िया फिर से बंदर को छेड़ते हुए बोली, ‘काश तुमने थोड़ी समझदारी से काम लिया होता और एक सुरक्षित घर बनाया होता। मुझे देखो…..’ अभी उसकी बात पूरी होने से पहले ही चुनमुन को हद से आगे बढ़ते देख बंदर चिड़चिड़ाहट के साथ जोर से बोला, ‘तुम अपनी चिंता करो और चुप रहो, मैं अपना ध्यान रखने में सक्षम हूँ।’  बंदर की बात सुन चुनमुन चिड़िया मुँह बनाते हुए बोली, ‘पड़े रहो ऐसे ही ठंड में मुझे क्या फ़र्क़ पड़ता है। यहाँ कोई अच्छी और काम की बात सुनना ही नहीं चाहता है। मैंने क्या ग़लत कह दिया? कम से कम घर बनाना सीखकर एक घर बना लिया होता तो आज इस तरह बरसात और ठंड में काँपते हुए नहीं खड़े होते।’

चुनमुन चिड़िया की इतनी बात सुनते ही बंदर को बहुत तेज़ ग़ुस्सा आया और वह चिढ़ते हुए बोला, ‘मुझे लगता है तुम सही कह रही हो, मुझे घर बनाने जैसे बहुत सारे काम नहीं आते लेकिन मैं घर उजाड़ना और मुँहफट लोगों को जवाब देना अच्छे से जानता हूँ।’ इतना कहते हुए बंदर पेड़ पर चढ़ गया और पेड़ की जिस टहनी पर चुनमुन चिड़िया का घोंसला था उसे तोड़कर नीचे फेंक दिया। बंदर की इस हरकत को देख चुनमुन चिड़िया हतप्रभ थी। उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था लेकिन अब किया ही क्या जा सकता था। अब वह भी पेड़ पर बंदर के साथ बारिश में भीगते हुए ठंड की वजह से काँप रही थी।

दोस्तों जिस तरह चुनमुन चिड़िया ने बिना किसी कारण के बंदर को ग़ुस्सा दिलाकर अपना घोंसला उजड़वा लिया था। ठीक उसी तरह ‘आ बैल मुझे मार!!!’ की तर्ज़ पर हमें भी अपने आस-पास कई लोग ज़बरदस्ती की मुसीबत मोल लिए, परेशान होते हुए दिख जाएँगे। ऐसे लोगों का दूसरों की परेशानी या पारिस्थितिक चुनौतियों से कोई लेना-देना होता नहीं है लेकिन फिर भी दूसरों की कमियाँ निकाल-निकाल कर नसीहत देने लगते हैं।

यह बात बिल्कुल सही है कि अगर हमारा कोई परेशानी या दिक़्क़त में है, तो हमें उसे उचित मदद और सलाह देना चाहिए। लेकिन यह भी एक या दो बार किया जा सकता है ,वह भी तब जब वह सुनने-समझने के लिए तैयार हो। लेकिन अगर आप बार-बार किसी के जीवन में बेवजह दख़ल देंगे तो आपका हाल भी चुनमुन चिड़िया के समान हो सकता है। इसलिए दोस्तों अगर कभी भी किसी को परेशानी में देखो तो दिल से निस्वार्थ मदद करो और अगर आप मदद करके उसकी परेशानी कम नहीं कर सकते हो तो उसकी हालत पर बेवजह टिप्पणी मत करो, उसे उपदेश मत दो अन्यथा अंत में आपको ही नुक़सान उठाना पड़ सकता है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com