फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, पिछले लगभग 15 दिन में मुझे अलग-अलग विद्यालय के लगभग 1000 शिक्षकों से प्रशिक्षण के दौरान मिलने और शिक्षा के वर्तमान स्वरूप पर चर्चा करने का मौक़ा मिला। चर्चा के दौरान मैंने महसूस किया कि शिक्षक हों या पालक, बच्चे को ऑलराउंडर बनाने, उसे कुछ नया देने या सिखाने या फिर कुछ नहीं तो खुद को श्रेष्ठ दिखाने के चक्कर में वे शिक्षा के मूल उद्देश्य या अर्थ को खोते जा रहे हैं और इसी वजह से सामान्यतः 15 वर्ष विद्यालय में साथ बिताने के बाद भी विद्यालय में शिक्षक और घर पर पालक, उसकी छुपी हुई प्रतिभा, विशेष योग्यता या रुचि को पहचानने में चूक कर जाते हैं। 

दोस्तों, मेरी नज़र में हर बच्चा अनूठा, अनमोल और विशेष योग्यताओं से भरा हुआ होता है। शिक्षक या पालक का कार्य उसकी इस अनूठी योग्यता या रुचि को पहचानकर, उसे निखारना और ज़रूरत के आधार पर अन्य विषयों को सिखाना होता है। अगर दोस्तों, हम शिक्षा या बच्चों के पालन में इन बातों का ध्यान रख पाएँ तो एक नई महान पीढ़ी को तैयार करने में अपना सकारात्मक योगदान दे सकते हैं और यही महान बच्चे आने वाले समय में इस दुनिया को इंसानों के लिए और बेहतर बना पाएँगे। आईए, अपनी बात को मैं यूनान की एक सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।

बात आज से कई सौ वर्ष पुरानी है। एक बुद्धिमान सज्जन व्यक्ति अपना व्यापारिक कार्य पूर्ण कर यूनान के जंगलों से गुजरते हुए अपने घर को जा रहे थे। तभी उनकी नज़र वहाँ से गुजर रहे एक लड़के पर पड़ी, जो जंगल से लकड़ी काटकर उन्हें बहुत क़रीने से बांधकर लेकर जा रहा था। लकड़ी के गट्ठर को बहुत ही कलात्मक ढंग से बंधा देख इन सज्जन से रहा नहीं गया। उन्होंने तुरंत उस बालक को आवाज़ देकर रोका और पूछा, ‘बालक, क्या यह गट्ठर तुमने बांधा है?’ बालक ने सहमति जताते हुए कहा, ‘जी मान्यवर!, मैं सुबह जल्दी आकर जंगल में लकड़ियाँ काटता हूँ, फिर उनका गट्ठर बनाकर शहर में बेचता हूँ।’

बच्चे की उम्र को देखते हुए उस बुद्धिमान व्यक्ति को हैरानी हुई। उन्होंने अपना आश्चर्य व्यक्त करते हुए बच्चे से एक बार गट्ठर को खोलकर फिर से बांधने का आग्रह किया, जिसे उस बालक ने सहर्ष स्वीकारा और उस गट्ठर को ज़मीन पर रख कर खोला और एक बार फिर से पूरी तनमयता और फुर्ती के साथ उसे बांधने लगा। 

बच्चे की एकाग्रता, लगन, गति और कलात्मक तरीके को देख बुद्धिमान व्यक्ति उस बच्चे से बोले, ‘बेटा, क्या तुम मेरे साथ शहर चल कर शिक्षा ग्रहण करना पसंद करोगे? मैं तुम्हारा सारा खर्च वहन करूँगा।’ कुछ पल विचार करने के बाद बालक ने अपनी सहमति दे दी। उस विद्वान व्यक्ति ने इस बालक का दाख़िला एक अच्छे विद्यालय में करवा दिया और साथ ही समय-समय पर खुद भी उसे पढ़ाने लगा। कुछ ही सालों में इस बालक ने अपनी बुद्धि और लगन के बल पर उच्च शिक्षा ग्रहण कर आत्मसात् कर ली और बड़ा होने पर यही बालक अपने ज्ञान और कार्य के आधार पर महान दार्शनिक पाईथागोरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ और पाईथागोरस की प्रतिभा को बचपन में लकड़ी के गट्ठर को बांधते देख पहचानने और निखारने वाले शख़्स थे यूनान के मशहूर तत्व ज्ञानी डेमोक्रीट्स।

दोस्तों, जिस तरह यूनान के महान तत्वज्ञानी डेमोक्रीट्स ने पाईथागोरस की प्रतिभा को कलात्मक तरीके से पूर्ण फ़ोकस और लगन के साथ गट्ठर बांधने के तरीके से पहचाना था ठीक उसी तरह अगर शिक्षक और पालक दोनों बच्चों की दैनिक गतिविधियों, पसंद-नापसंद, कार्य करने के तरीके, ऊर्जा प्रबंधन आदि को बारीकी से देखने लगें और समय-समय पर उसे एक दूसरे से साझा करें, तो समय रहते बच्चे की विशेष योग्यता को चिन्हित किया जा सकेगा और समय के साथ उसे आवश्यक मदद देकर विशेष योग्यता में बदला जा सकेगा। जिससे बच्चा अपनी पसंद के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाकर खुश रहते हुए अपना जीवन व्यतीत कर सके। 

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com