फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


महाराष्ट्र के महान परोपकारी संत एकनाथ अपने आचरण, व्यवहार और वाणी के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थे। उनके बारे में लोगों का मानना था कि उनकी वाणी और कर्म दोनों बिलकुल एक समान रहते थे। एक बार संत एकनाथ के मन में प्रयागराज जाकर त्रिवेणी स्नान करने का विचार आया। उन्होंने अपने इस विचार को भक्तों से साझा करते हुए कहा, ‘प्रिय भक्तों, मेरे मन में एक भाव जागा है कि मैं प्रयागराज जाकर त्रिवेणी में स्नान करूँ और वहाँ का जल कांवड़ में लेकर रामेश्वरम में चढ़ाऊँ। अपने इस भाव की पूर्ति के लिए मैं कल सुबह प्रस्थान करूँगा।’ 

संत एकनाथ की बात सुनते ही कई भक्त अगले दिन उनके साथ पहले प्रयागराज और फिर वहाँ से कांवड़ में जल लेकर रामेश्वरम जाने के लिए निकल पड़े। पूरे रास्ते वे सभी भजन-कीर्तन करते रहे और प्रयागराज पहुँचकर पहले स्नान और फिर पूजन-अर्चन किया और अंत में वहाँ का जल कांवड़ में लेकर रामेश्वरम के लिए निकल पड़े।

रास्ते में संत एकनाथ जहां भी विश्राम करने के लिए रुकते अपने भक्तों को प्रवचन दिया करते थे, जिससे वे सभी अपने जीवन को बेहतर बना सकें। हालाँकि प्रतिदिन कुछ घंटों के लिए लिया जाने वाला यह आराम पर्याप्त नहीं था। इसलिए सभी भक्तों सहित संत एकनाथ की थकान बढ़ती जा रही थी लेकिन थकान के बावजूद भी भजन कीर्तन का माहौल और रामेश्वरम जाकर जल चढ़ाने का जोश उन्हें लगातार चलने के लिए प्रेरित कर रहा था। इसीलिए वे जल्द ही रामेश्वरम के निकट पहुँच गए। नगर में प्रवेश करने के पूर्व पूरी भक्त मंडली ने संत एकनाथ के साथ रात्रि विश्राम करने का निर्णय लिया। 

अगले दिन सुबह सभी लोग कांवड़ लेकर नगर प्रवेश करने की तैयारी कर ही रहे थे कि सबकी नज़र पास ही पड़े, एक बीमार गधे पर पड़ी। देखने से ऐसा लग रहा था,  मानों भोजन और पानी के अभाव में कुछ ही पलों में उसकी जान चली जाएगी। मंडली के सभी सदस्य उसकी स्थिति के बारे में चर्चा करने लगे। कोई उसे कर्मों का फल,  तो कोई ईश्वर की माया, तो कोई क़िस्मत को दोष बता रहा था। कुछ लोगों ने तो उस क्षेत्र की व्यवस्था पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कह दिया कि देखो यहाँ का राजा कितना भावहीन है।  इतने बड़े क्षेत्र में जानवरों के पीने के लिए पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। एक व्यक्ति तो वहाँ जानवरों को पानी पिलाने पर मिलने वाले पुण्य या फल के बारे में बताते हुए सभी को उपदेश देने लगा। 

कुल मिलाकर वहाँ मौजूद सभी लोग गधे की स्थिति पर चर्चा कर रहे थे कि तभी संत एकनाथ की नज़र उस बीमार गधे पर पड़ी, उन्होंने बिना एक भी पल गँवाए अपने कांवड़ को लिया और उसका पानी दौड़कर गधे को पिला आए। गर्मी के मौसम में संत के हाथों पवित्र जल पीकर गधा एकदम तृप्त हो गया और उसकी आँखों से कृतज्ञता के आंसू बहने लगे। 

भक्त मंडली की तरह दोस्तों,   ज़्यादातर लोग दूसरों को परेशानी या समस्या में देख टिप्पणियाँ करते हैं या फिर उन्हें उनकी गलती समझाते हुए सलाह देने में जुट जाते हैं। सलाह देना या दूसरों की परेशानियों पर चर्चा करना कहीं से भी उस व्यक्ति की दिक्कतों को कम नहीं करता है अपितु अक्सर हमें उससे दूर कर देता है। इसके स्थान पर दोस्तों अगर हम संत एकनाथ की तरह अपनी क्षमता से लोगों की मदद करना शुरू कर दें तो इस संसार में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं। 

वैसे भी दोस्तों,  सभी धर्मों में दीन- दुखियों की सेवा करने वाले को परमात्मा की सेवा के समान माना गया है। शायद इसीलिए कहा गया है कि जिस प्रकार संत एकनाथ की सेवा से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उन्हें आकाशवाणी के द्वारा कहा था कि,  ‘एकनाथ, इस जीव पर दया कर तुमने महान पुण्य का कार्य किया है। इस प्राणी में साक्षात मैं ही आया था। इसलिए मैं रामेश्वरम पहुँचने से पहले ही तुम्हारी कांवड़ स्वीकार करता हूँ।’ आईए दोस्तों आज से मिलकर हम सभी एक प्रण लेते हैं, लोगों की परेशानियों या दिक्कतों पर चर्चा करने के स्थान पर उन्हें यथासंभव सहायता पहुँचाने का प्रयास करेंगे जैसा कि संत एकनाथ ने गधे की सहायता कर किया था।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com