फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


दोस्तों, दुनिया की चकाचौंध के बीच बदलती हमारी प्राथमिकताओं की वजह से उपजे दबाव व तनाव के साथ अपनी छाप छोड़ने, दूसरों की बराबरी करने की चाह और आभासी दुनिया का शोर कहीं ना कहीं हमारे मन की शांति को भंग कर रहा है। हम सभी भारतीय लोग ‘जो प्राप्त है, पर्याप्त है!’ के हमारे सिद्धांत को छोड़कर अन्य लोगों के समान ही चूहा दौड़ में लग गए हैं । जिसकी वजह से हमारे अंतर्मन में चौबीसों घंटे द्वंद चलता रहता है।

इन बदलती हुई परिस्थितियों में हम भूलते जा रहे हैं कि शांति और सद्भाव पूर्ण जीवन जीना एक चुनाव है। इस बदलाव के दौर में यह कहना बेहतर होगा कि अगर हम अपने जीवन में आपसी संघर्ष, हिंसा, भय के व्यवहार का त्याग कर दें, तो हम सद्भाव का वातावरण बना सकते हैं, जो अंततः हमें शांति दे सकता है। वैसे अगर गहराई से समझा जाए तो इसी शांति का एक और स्वरूप हो सकता है। इसे आप अपने परिवार, अपने रिश्तों में भी देख सकते हैं। जैसे, शांति एक बच्चे की मुस्कान में हो सकती है या एक माँ के प्यार में या फिर पिता की ख़ुशी में देख सकते हैं। इसी तरह आप इसे इंसानों की उन्नति में, असत्य पर सत्य की विजय में भी देख सकते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो शांति जीवन का सौंदर्य है और इसे इंसानी व्यवहार या इंसानियत से पाया जा सकता है। 

लेकिन दोस्तों, आजकल इसके बिलकुल विपरीत हो रहा है, समाज जितना आगे बढ़ता जा रहा है, जीवन में शांति उतनी ही कम होती जा रही है। आजकल ठहराव के साथ ज़िंदगी जीने के दिन कोसों दूर लगने लगें हैं। अब पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ना, दोस्तों से गपशप लगाते हुए अपनी शाम बिताना या टहलते हुए खुद के साथ समय बिताना, एक सपने समान हो गया है। हर मामले में अधिक से अधिक की चाह, हमारी प्राथमिकताओं को प्रभावित कर इस बेचैनी को और बढ़ा रही है। विचलित और बेचैन मन हमारे अंतर्मन में द्वन्द पैदा कर, जीवन में चारों ओर शोर पैदा करता है और यही शोर या अंतर्मन का द्वन्द हमारे निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। अगर मेरी बात से सहमत ना हों, तो सोचकर देखिएगा, अशांत मन से आज तक आपने कितने महान निर्णय लिए? शायद एक भी नहीं!

असल में दोस्तों अशांत मन, ग़लत निर्णय के साथ हमारे जीवन को अव्यवस्थित कर हमें और ज़्यादा अशांत करता है। इसीलिए हम और ज़्यादा ग़लत निर्णय लेते हैं और अंततः अपने जीवन में नीचे, और नीचे, गिरते चले जाते हैं। जैसे, साँप-सीढ़ी के खेल में साँप ने डँस लिया हो।

इसके विपरीत, अगर हम सीमित आवश्यकताओं या ज़रूरतों के साथ अपना जीवन जीना शुरू कर दें, तो संतुष्ट रहकर, शांत रह सकते हैं और जब आप शांत रहते हैं तब आप स्पष्ट सोच के साथ, स्पष्ट देख सकते हैं और स्पष्ट निर्णय लेकर, स्पष्ट योजना बना सकते हैं और अंत में स्पष्ट योजना पर कार्य कर मनचाहे परिणाम प्राप्त कर जीवन में आगे बढ़ सकते हैं और अगर इस चक्र को क़ायम रखा जाए तो जीवन में शांति के साथ तरक़्क़ी तय है। अगर आप गहराई से सोचेंगे दोस्तों, तो आवश्यकताओं को सीमित करते ही हमने गुणवत्ता पर आधारित जीवनचक्र अपना लिया है अर्थात् हम गुणवत्ता वाली वस्तुओं, गुणवत्ता वाले रिश्तों, गुणवत्ता वाले कार्यों को प्राथमिकता दे रहे हैं, इसीलिए गुणवत्ता आधारित जीवन जी रहे हैं। जब आप गुणवत्ता आधारित जीवन जीते हैं, शांत होते हैं तथा शांति से कार्य करते हैं तो देर सवेर सब कुछ पा ही लेते हैं।


 -निर्मल भटनागर
 एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com