फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


दोस्तों, अक्सर आपने देखा होगा दैनिक जीवन में घटने वाली छोटी-मोटी घटनाएँ हमारे मन का चैन चुराकर, लम्बे समय तक हमारी ऊर्जा, क्षमता, मानसिक शांति को प्रभावित करती है। एक आँकड़ा बताता है कि इन सामान्य सी दिखने वाली घटनाओं की वजह से एक सामान्य इंसान अपना 87% समय नकारात्मक विचारों के साथ गुज़ारता है। यह स्थिति तब और भी गम्भीर हो जाती है, जब हम अपने जीवन में वजूद ना रखने वाली इन घटनाओं के प्रभाव से मुक्त होने के स्थान पर मानवीय प्रवृति की वजह से इन्हें पकड़े रखते हैं या इस तरह की घटनाओं से बचने का प्रयास नहीं करते हैं। आईए दोस्तों, इस बात को मैं 2013 में मेरे साथ घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।

मध्यप्रदेश स्थित बाबा महाकाल के धार्मिक शहर उज्जैन स्थित एक होटल में अपनी वर्कशॉप पूर्ण कर, सुहाने मौसम का मज़ा लेने और थोड़ा वक्त स्वयं के साथ गुज़ारने के उद्देश्य से मैं अपनी कार में गाना सुनते हुए नानाख़ेड़ा स्टेडीयम के सामने से बस स्टैंड की ओर जा रहा था। चूँकि मैं अपने व्यवसायिक दिन का अंत कर मानसिक रूप से पूरी तरह फ़्री था इसलिए मैंने गाने की आवाज़ थोड़ी तेज़ कर रखी थी। 

अभी मैं गैल कार्यालय के क़रीब पहुँचा ही था कि विपरीत दिशा से आ रहे मेरे एक परिचित ने मुझे जोर से आवाज़ दी। हालाँकि कार चलाने की मेरी गति सामान्य से भी बहुत कम थी लेकिन फिर भी ख़यालों में खोये होने के कारण या फिर तेज़ आवाज़ में बज रहे गानों की वजह से, मैं उनकी आवाज़ सुन नहीं पाया। तभी ब्रेक लगाने की तेज़ आवाज़ से मेरी तंद्रा टूटी, मैंने कार रोक कर पलट कर देखा तो मुझे एहसास हुआ कि मुझसे मिलने की चाह में उन परिचित ने बिना ट्रैफ़िक का अंदाज़ा लगाए एकदम से ‘यू टर्न’ ले लिया था और इसी कारण तेज़ गति से आ रही मारुति वेन को अचानक तेज़ ब्रेक लगाकर अपनी गाड़ी को रोकना पड़ा था। स्थिति को देख मैं तत्काल समझ गया कि कार संचालक की सूझबूझ और सजगता की वजह से ही एक बड़ा ऐक्सिडेंट होते-होते बच गया था।

मेरे परिचित अपनी गलती से अनजान बन कुछ दूरी से ही शिकायत करते हुए मेरी ओर आ रहे थे और इस बार भी मैं उन्हें जानबूझकर नज़रंदाज़ कर रहा था क्यूँकि मुझे उस मारुति वेन से 4 लोग उतर कर ग़ुस्से में परिचित की ओर आते दिख रहे थे। मैं तुरंत समझ गया कि वे परिचित को उसकी गलती की सजा देने के लिए उतावले हैं। सीधे शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो उनके हाव-भाव बता रहे थे कि वे मित्र को मारने के लिए उसकी ओर आ रहे थे। बिना समय गँवाए मैं तुरंत गाड़ी से उतरा और वेन से उतर कर परिचित की ओर आ रहे व्यक्ति से हाथ मिलाते हुए बोला, ‘सर, मैं निर्मल भटनागर, पूरी गलती मेरे परिचित की है, पर शायद ईश्वर हमें इसी तरह मिलवाना चाहता था।’

मेरी ओर से अनपेक्षित प्रतिक्रिया पा वे सज्जन थोड़े से कन्फ़्यूज़ हो गए और बोले, ‘सर, आप देखिए ना किस तरह अचानक से मुड़ गए। अगर अभी ऐक्सिडेंट हो जाता तो क्या होता?’ मैंने अपनी बात वापस से दोहराते हुए कहा, ‘सर, आप बिलकुल सही कह रहे हैं, गलती तो पूरी मेरे परिचित की है। लेकिन शायद ईश्वर हमें इसी तरह मिलवाना चाहता था।’ उन्हें इतना कहते ही मैं अपने परिचित की ओर मुड़ा और उन्हें लगभग डाँटते हुए माफ़ी माँगने के लिए कहा। तब तक वे भी स्थिति की गम्भीरता को समझ गए थे और उन्होंने तुरंत माफ़ी माँग ली। परिचित के माफ़ी माँगते ही मैंने उन सज्जन से, साथ में, एक चाय पीने का आग्रह करते हुए उनका परिचय पूछा।

दोस्तों, एक अनपेक्षित प्रतिक्रिया ने विपरीत समय या बुरी घटना को टाल दिया था। सोचकर देखिए अगर वे परिचित से लड़ाई करने में सफल हो जाते तो वहाँ का माहौल कैसा होता? निश्चित तौर पर तनाव भरा और लम्बे समय तक उस घटना के नकारात्मक प्रभाव से बाहर आना मुश्किल होता। 

याद रखिएगा दोस्तों, ग़ुस्से जैसे नकारात्मक भावों के बीच में अनपेक्षित व्यवहार करना सामने वाले की स्वाभाविक प्रतिक्रिया या निर्णय लेने के तरीके को उलझन में डाल आपको कुछ अतिरिक्त समय दिला देता है। आप समझदारी के साथ इस अतिरिक्त समय का उपयोग विपरीत परिस्थिति को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए कर सकते हैं और अपने जीवन को एक नकारात्मक अनुभव से बचा सकते हैं।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com