फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 

हाल ही में एक विद्यालय में शिक्षकों के प्रशिक्षण के दौरान दिलचस्प घटना घटी। ट्रेनिंग के बाद एक शिक्षक मेरे पास आए और बोले, ‘सर, क्या आप मेरे लायक़ कोई नई नौकरी बाता सकते हैं?’ चूँकि मैं उस विद्यालय और शिक्षक से पूर्व से ही परिचित था इसलिए उनके इस प्रश्न ने मुझे थोड़ा आश्चर्यचकित किया क्यूँकि 2 वर्ष पूर्व उन्होंने इस विद्यालय में नौकरी पाने के लिए सभी जुगत लगाई थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मात्र दो-ढाई साल में ऐसा क्या हो गया जो वे नौकरी बदलने के विषय में सोच रहे हैं। मैंने जब उनसे इस विषय में चर्चा करी तो पता चला वे इस वर्ष की वेतन वृद्धि से नाखुश थे।

वैसे उनका जवाब मेरे लिए भी चौकानें वाला था, क्यूंकि मेरी जानकारी के मुताबिक़ इस वर्ष उस विद्यालय ने सभी शिक्षकों को अच्छी वेतन वृद्धि दी थी। मैंने उन्हें अगले दिन बात करने का कहा और उस विद्यालय के प्राचार्य से बात कर इन शिक्षक की कम वेतन वृद्धि का कारण जानने का प्रयास करा। 

अगले दिन जब उन शिक्षक का फोन आया तो मैंने उनसे सिर्फ़ एक प्रश्न किया, ‘सर, क्या आप मुझे बता सकते हैं, पिछले ढाई वर्ष में इस विद्यालय में रहते हुए आपने क्या-क्या नई बातें सीखी?’ वे शिक्षक इस विषय में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। मैंने उन्हें तुरंत एक कहानी सुनाने का निर्णय लिया, जो इस प्रकार थी-

शहर के बाहरी इलाक़े में एक बहुत ही बढ़िया मूर्तिकार रहता था। वह प्रतिदिन एक मूर्ति बनाकर उसे बाज़ार में 500 रुपए में बेच दिया करता था। समय के साथ जब इस मूर्तिकार की उम्र बढ़ने लगी तो उसके लिए प्रतिदिन नई मूर्ति बनाकर बाज़ार में बेचना मुश्किल हो गया। इसी वजह से उसकी कमाई काफ़ी घट गई और उसके लिए घर चलाना मुश्किल हो गया। काफ़ी सोच-विचार करने के बाद मूर्तिकार ने अपने बेटे को मूर्ति बनाना सिखाने का निर्णय लिया, जिससे वह घर चलाने में उसकी मदद कर सके।

पिता से इस विषय में जान बेटा बहुत खुश हुआ और बोला, ‘पिताजी मैं तो बचपन से ही आपके जैसा बनना चाहता था। अब आप ही बताइए कहाँ से शुरुआत की जाए?’ पिता ने बेटे को समझाते हुए प्रतिदिन मूर्ति बनाने की कला सीखने की सलाह दी। अब प्रतिदिन पिता अपने पुत्र को मूर्ति बनाते समय साथ रखने लगे और मूर्ति कला की बारिकियाँ सिखाने लगे।

कुछ माह बाद एक दिन मूर्तिकार के बच्चे ने अपने हाथ से एक सुंदर मूर्ति बनाई और उसे सफलता पूर्वक बाज़ार जाकर सौ रुपए में बेच दिया। बेटे की सफलता देख पिता तो बहुत खुश थे, लेकिन बेटा थोड़ा परेशान था। पिता ने जब उससे परेशानी की वजह पूछी तो वह बोला, ‘पिताजी, लोग आपकी बनाई मूर्ति को तो पाँच सौ रुपए में आराम से ख़रीद लेते हैं, लेकिन मेरी मूर्ति के लिए आज कोई भी सौ रुपए से ज़्यादा देने के लिए राज़ी नहीं था।’ पिता ने बेटे को पैसे के स्थान पर सीखने पर ध्यान लगाने के लिए कहा। बेटे को पिता की इस सलाह का फ़ायदा भी बहुत हुआ क्यूंकि अब उसकी मूर्ति ढाई सौ रुपए में बिकने लगी थी। 

बेटे ने एक दिन अपने पिता से कहा, ‘पिताजी, अब तो मुझे लगता है, मैं भी आप ही के समान मूर्ति बनाने लगा हूँ। फिर भी मेरी मूर्ति के लिए मुझे ढाई सौ रुपए ही क्यूँ मिलते हैं?’ पिता ने बेटे को एक बार फिर सीखने पर ध्यान लगाने के लिए प्रेरित करा। बेटे ने भी पिता की बात को माना और सीखने पर ध्यान लगाने लगा। अब धीरे-धीरे उसकी बनाई मूर्ति की क़ीमत भी बढ़ने लगी थी। एक दिन बेटा बाज़ार से बहुत खुश होकर लौटा और अपने पिता से बोला, ‘पिताजी, आपको पता है, आज मैंने कितने रुपए में अपनी बनाई मूर्ति बेची?’ पिता कुछ बोलते उसके पहले ही बेटा पिता के हाथ में पैसे देते हुए बोला, ‘पूरे सात सौ रुपए में।’ बेटे की बात सुन पिता बहुत खुश हुए और उसे शाबाशी देते हुए बोले, ‘बहुत ख़ूब बेटा! चलो अब हम कल से एक हज़ार वाली मूर्ति बनाना सीखेंगे।’ पिता की बात सुनते ही बेटा बोला, ‘पिताजी, अब मुझे सीखने की ज़रूरत नहीं है क्यूंकि अब मेरी बनाई मूर्ति की क़ीमत आपकी बनाई मूर्ति से ज़्यादा है।’ बेटे की बात सुन पिता मुस्कुराए और बोले, ‘बेटा, अब तुम्हारी बनाई मूर्ति की क़ीमत हमेशा सात सौ रुपए के आस-पास ही रहेगी।’

कहानी पूरी कर मैंने उन शिक्षक से प्रश्न किया, ‘आपको क्या लगता है, उस मूर्तिकार ने क्या सोचकर अपने बेटे से कहा कि अब तुम्हारी बनाई मूर्ति की क़ीमत हमेशा 700 रुपए के आस पास ही रहेगी?’ प्रश्न सुनते ही वे शिक्षक बोले, ‘सर, बेटे ने नई चीज़ सीखना बंद जो कर दिया था।’ उनका उत्तर सुन में मुस्कुराया और बोला, ‘बस इसी वजह से आपका वेतन ज़्यादा नहीं बढ़ा है।’

जी हाँ दोस्तों, जब भी मेरे पास कोई ‘ वेतन ना बढ़ने ’ की शिकायत लेकर आता है, तो मैं उससे एक ही प्रश्न पूछता हूँ, ‘पिछले वर्ष में तुमने क्या नया सीखा, तुमने किन नई ज़िम्मेदारियों को निभाया?’ अगर वह इस प्रश्न का जवाब नहीं दे पाता है तो मैं उससे सिर्फ़ एक ही बात कहता हूँ, ‘अगर आपका ज्ञान पूर्व के स्तर पर ही है, तो आपको उसके अनुसार वेतन तो पहले से ही मिल रहा है और रही बात महंगाई बढ़ने की तो उसके लिए आपको सालाना वेतन वृद्धि तो मिल ही रही है।’

याद रखिएगा दोस्तों, अगर आप अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं तो आपको अपने ज्ञान और कौशल के स्तर को रोज़ बढ़ाना होगा और साथ ही अपने दृष्टिकोण को सही रखते हुए अतिरिक्त कर्म करना होंगे।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com