फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों पिछले चार दिनों में हमने बच्चों के लालन-पालन में की जाने वाली 25 चूकों को 2 घटनाओं के साथ समझा था। आज हम पिछले 4 दिन में सीखी गई बातों को संक्षेप में दोहरा लेते हैं।

पहली घटना - पिछले सप्ताह भोपाल के एक बड़े विद्यालय के तीन शिक्षकों को उन्हीं के विद्यालय में कक्षा- नवीं में पढ़ने वाले एक छात्र ने लापरवाही पूर्वक बाइक चलाते हुए, हल्की टक्कर मार दी। जब उक्त बात उप प्राचार्य को पता चली तो उन्होंने बच्चे को जीवन का मूल्य और शिष्टाचार के बारे में समझाते हुए, सजा के रूप में बाइक को विद्यालय में रखने के लिए कहा। बच्चे के बड़े भाई और पिता को जब यह बात पता चली तो उन्होंने विद्यालय आकर अपने बच्चे के सामने ही उसके शिक्षकों और उप प्राचार्य से अनुचित व्यवहार कर बाइक वापस देने के लिए दबाव बनाया।

दूसरी घटना - जबलपुर के पास एक छोटे से शहर में कक्षा तीसरी के विद्यार्थी ने वॉशरूम से वापस आकर शिक्षिका से एक बार फिर हाथ धोने के लिए कक्षा से जाने की आज्ञा मानी। शिक्षिका को बच्चे का यह व्यवहार लापरवाही भरा लगा और उन्होंने बच्चे के समक्ष कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करा, जो कहीं से भी उचित नहीं ठहराए जा सकते।

दोनों घटनाओं ने मेरे मन में एक प्रश्न को जन्म दिया, ‘जिन्हें बच्चों को शिक्षित या संस्कारी बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई है, क्या वे बच्चे के समक्ष इस तरह का अनुचित व्यवहार कर सकते हैं?’ मुझे तो लगता है, ‘बिलकुल भी नहीं!’ क्यूँकि अगर आप बच्चों के समक्ष ग़लत व्यवहार करेंगे, तो आपको निश्चित तौर पर ग़लत परिणाम ही मिलेंगे। शायद इसीलिए, आजकल बच्चों में आक्रामक प्रवृति, ग़ुस्सा, विश्वास की कमी, शोषण का डर, उदासी, निराशा और तनाव जैसे नकारात्मक भाव के साथ खुद को नुक़सान पहुँचाने वाली प्रवृति नज़र आती है।

मेरी नज़र में अपेक्षा और परिणाम के बीच के इस बड़े अंतर के लिए कहीं ना कहीं उनके समक्ष किया जाने वाला हमारा व्यवहार ज़िम्मेदार है। अगर बच्चों का लालन-पालन ठीक से ना किया जाए तो उनका अपने जीवन में शीर्ष पर पहुँचना बहुत मुश्किल है, फिर भले ही माता-पिता या पालक के रूप में हम अपने कैरियर में किसी भी मुक़ाम पर क्यूँ ना हो। हमारे पद, पैसे, प्रभाव, शिक्षा आदि से कहीं गुना ज़्यादा हमारे संस्कार या शिष्टाचार बच्चों को सफल बनाते हैं। आईए हम बच्चों के लालन-पालन के दौरान की जाने वाली 25 ऐसी चूकों को समझने का प्रयास करते हैं जो उन्हें सफल होने से रोकती हैं-

1) बच्चों के सामने उसके शिक्षक या पालक से अनुचित व्यवहार करना
2) कैज़ूअल कपड़ों में विद्यालय जाना और शिक्षकों से मिलना
3) बच्चों के समक्ष अभद्र भाषा या अपशब्दों का प्रयोग करना
4) छोटे बच्चों को अभद्र अर्थात् इनडिसेंट कपड़े पहनाना या अत्यधिक मेकअप करना
5) बच्चे के समक्ष काँच के सामान, क्रॉकरी, डिजिटल उत्पादों का सही तरीके से रखरखाव ना करना
6) बच्चों के सामने लोगों को यथायोग्य सम्मान ना देना
7) बच्चों को उन चीजों के घर लाने पर ना टोकना जो आपने उन्हें नहीं दिलवायी हैं
8) बच्चों के सामने बड़ों का सम्मान ना करना उन्हें पलटकर जवाब देना
9) बच्चों द्वारा वयस्कों के संवाद के दौरान बार-बार टोकना   
10) बच्चों के समक्ष अपने सहयोगियों या हेल्पर का सम्मान ना करना
11) मददगारों को धन्यवाद ना कहना
12) मदद ना करना
13) हाइजीन ना रखना
14) बच्चों द्वारा बिना अनुमति के सामान लेना
15) बिना नॉक किए कमरे में आना
16) अपनों से बड़ों के कार्यों में हाथ बँटाना
17) हर कार्य के बदले में उपहार की आस रखना
18) आलोचना, निंदा तथा शिकायत करना छोड़ें
19) बच्चों के सामने झूठ बोलने, हेराफेरी करने अथवा बातों या लोगों को घुमाने-फिराने से बचें
20) मेहमान और आगंतुकों का सम्मान करें
21) बच्चों के सामने ग़ुस्से का प्रदर्शन करना
22) बच्चे को सही या ग़लत ठहराने के स्थान पर उसके द्वारा किए गए कार्य को सही या ग़लत ठहराएँ
23) प्रार्थना करना और आभारी रहना सिखाएँ
24) अभिवादन करना सिखाएँ
25) देशप्रेम सिखाएँ  

दोस्तों बच्चों को काल्पनिक दुनिया में खुश रखने से बेहतर है, आज ही हक़ीक़त का सामना करवाकर, रोने देना क्यूँकि आज तो स्थितियों से निपटने के लिए आप उनके साथ खड़े हैं। इसके विपरीत, अगर आप आज उन्हें इससे बचाएँगे तो वे भविष्य में और ज़्यादा रोएँगे और आपको दुखी करेंगे। अगर आप चाहते हैं की बच्चे आपके लिए अपमान की जगह, सम्मान घर लेकर आएँ तो आपको पालक के रूप में उनके समक्ष शिष्टाचार आधारित, बेहतर रवैया सुनिश्चित करना पड़ेगा।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com