फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, अगर आप स्टार्टअप अथवा व्यवसाय शुरू कर रहे हैं या आप किसी स्टार्टअप अथवा व्यवसाय के मालिक हैं और अपने विचार को सफल कर एक ब्रांड के रूप में स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं तो आज का लेख आपके लिए है। एक अच्छे व्यवसायिक विचार को सफल व्यवसाय बनाना और उस सफल व्यवसाय को एक बड़े ब्रांड में परिवर्तित करना दो बिलकुल अलग-अलग कार्य हैं। इसे मैं आपको एक साधारण से उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। विदेशों से आया बर्गर हमारे यहाँ एक स्थापित प्रोडक्ट या ब्रांड बन सकता है लेकिन हमारा वडा-पाव, समोसा, कचौरी नहीं, आख़िर क्यों? आप कहेंगे कि यह तला हुआ अर्थात् अत्यधिक फ़ैट वाला उत्पाद है तो मैं आपसे कहूँगा बर्गर में भी तो मक्खन या चीज़ अत्यधिक मात्रा में होते हैं। आप कहेंगे कि वह बिना साफ़ सफ़ाई का ध्यान रखे अर्थात् अन-हायजनिक तरीक़े से बना होता है, तो मैं कहूँगा प्रॉसेस को ठीक कर इसे सुधारा जा सकता है। लेकिन ऐसा करने पर क्या हम इसे ग्लोबल प्रोडक्ट या इसे बनाने वाले को ब्रांड के रूप में स्वीकारेंगे? शायद नहीं!

इसकी मुख्य वजह दोस्तों, हम व्यवसाय के दौरान ब्रांडिंग के मूलभूत नियमों को भूल जाते हैं। किसी भी प्रोडक्ट को स्थापित करने, उसे ब्रांड बनाने के लिए अच्छे विचार के साथ, उच्चतम स्तर की क्वालिटी, सर्विस के साथ-साथ हमें उपभोक्ता को हर बार एक जैसा अनुभव देना होगा। 

वैसे मैं आपको कोई नई बात नहीं बता रहा हूँ, बस ब्रांडिंग के फ़ंड़ामेंटल एक बार फिर से आपको याद दिलाने का प्रयास कर रहा हूँ क्यूँकि सामान्यतः देखा गया है कि लोग ब्रांड और ब्रांडिंग के बारे में ग़लत धारणाएँ बना लेते हैं और उन्हीं धारणाओं के आधार पर काम करके खुद का ही नुक़सान कर लेते हैं।

ब्रांड सिर्फ़ एक नाम या एक चिन्ह या फिर कम्पनी की पहचान स्थापित करने के लिए किया गया विज्ञापन नहीं होता है और ना ही किसी कार्य को करने या समस्या को सुलझाने का दावा अर्थात् क्लेम, या किसी विशेष गुण अथवा फ़ायदे की गारंटी होता है। ब्रांड तो बस कम्पनी की सोच, उसकी फिलोसोफ़ी, उसके दर्शन का प्रतिबिम्ब अर्थात् एसेंस, उस कम्पनी की पहचान अर्थात् आयडेंटिटी होता है। 

आईए दोस्तों, आज हम ब्रांडिंग या किसी प्रोडक्ट या सर्विस को ब्रांड बनाने के मूलभूत सिद्धांतों को समझने का प्रयास करते हैं-
1) ब्रांड, किसी कंपनी या व्यक्ति द्वारा अपने उत्पाद या सर्विस से लोगों को दिए गए लाखों अनुभवों का शुद्ध प्रभाव होता है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो आपके उत्पाद या सर्विस को लेने के बाद लाखों लोगों के समान अनुभव आपका ब्रांड बनाते हैं।
2) आपका नाम याद आने पर लोगों के मन में क्या छवियाँ उभरती हैं, क्या शब्द याद आते हैं, वह किन चिन्हों, रंग और वादों को आपसे जोड़ पाता है, की आभासी सूची ब्रांड बनाती है।
3) ब्रांड अर्थात् किसी वस्तु, सर्विस या व्यक्ति को देख आपके अंदर जागी एक उम्मीद या आपको याद आया एक वादा या फिर मन में उभरा कोई व्यक्तित्व अथवा पहचान जो आभासी या टेलीग्राफिक लेकिन विचारोत्तेजक तरीक़े से आपको इनसे जोड़ देता है।
4) ब्रांड असल में दोस्तों कोई निर्जीव चीज़ नहीं होती यह हमेशा विकसित अर्थात् पहले से बेहतर बनते जाने वाली चीज है।
5) ब्रांड बाज़ार को दिशा देते हैं। इसीलिए लोग उससे प्यार करते हैं, उम्मीद रखते हैं यहाँ तक उससे चिढ़कर उसे छोड़ भी देते हैं।

दोस्तों, अगर उपरोक्त सभी बातों को एक छोटे से वाक्य में समेटने का प्रयास किया जाए तो वह होगा, ‘ब्रांड अंततः कई बार मिले हुए विश्वास का एक समूह है जो उपभोक्ता के दिमाग में किसी उत्पाद या सेवा का पर्याय बन उभरता है।’ इसीलिए दोस्तों ब्रांड ना सिर्फ़ लोगों की ज़रूरत होते हैं, बल्कि वे तो उससे प्यार तक करते हैं। वे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उनकी और बड़ी आशा से देखते हैं। आशा करता हूँ दोस्तों, आप उपरोक्त बातों के आधार पर खुद को, अपने उत्पाद या सर्विस को ब्रांड के रूप में स्थापित करेंगे।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com