फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हर माता-पिता अपने बच्चे को सबसे बेहतर, सबसे अच्छा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं और शायद इसीलिए बचपन से ही बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि पैदा होते ही उसके पीछे पड़ जाते हैं। जी हाँ, आपने सही पढ़ा, ‘बच्चे के पीछे पड़ जाते हैं’, और उसे समय से पहले ही गिनती, अ, आ, इ, ई से लेकर ए, बी, सी, डी आदि सिखाने लगते हैं। बात यहाँ भी रुकती नहीं है… बल्कि यहाँ से तो शुरू होती है, बच्चा ज़रा सा बड़ा या समझदार हुआ नहीं कि माता-पिता उसे संस्कारों के साथ-साथ, दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेज़ी अथवा विभिन्न कलाएँ जैसे कविताएँ, डाँस, गाना इत्यादि सिखाने लगते हैं और इसके बाद नम्बर आता है विभिन्न कोचिंग और विविध कलाओं का। जैसे, अबेक़स, वैदिक मैथ्स, कोई खेल, कोडिंग आदि… 

बच्चा तो असीमित क्षमताओं का मालिक होने के साथ-साथ निडर और स्वाभाविक लर्नर होता ही है, वह खेल-खेल में ही इन बातों को सीखना शुरू कर देता है और उसके ऐसा करते ही माता-पिता स्वयं को सफल और बच्चे को सर्वश्रेष्ठ मान, उसे दूसरों के सामने प्रदर्शन के लिए मजबूर करते हैं, जैसे वो कोई मदारी का बंदर हो। 

दोस्तों, अगर आप वाक़ई अपने बच्चे को विशेष योग्यताओं का धनी बनाना चाहते हैं तो उसके अंदर जीवन के बेहतरीन प्रबंधन के लिए आवश्यक कौशल विकसित करने का प्रयास करें। आईए दोस्तों, आज हम बच्चों के जीवन को बेहतरीन बनाने के लिए आवश्यक 9 जीवन कौशल या लाइफ़ स्किल के बारे में बात करते हैं।

पहला कौशल - स्व-प्रबंधन
जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने या उसमें विशेषज्ञता पाने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है, खुद पर और खुद की क्षमताओं पर विश्वास रखना और आप जो कह रहे हैं उसे समय पर पूरा करना। जो लोग खुद पर, अपनी क्षमताओं पर, अपनी कही बातों पर विश्वास करना छोड़ देते हैं वे हीन भावना, आत्मविश्वास की कमी से जूझते हैं। वे हर मामले में अपनी तुलना दूसरों से करना शुरू कर देते हैं।

इसके विपरीत अगर उन्हें स्व-प्रबंधन सिखा दिया जाए तो वे अपने कार्यों, प्राथमिकताओं, ज़िम्मेदारियों को समझना, उसके अनुसार कार्य करना सीख जाते हैं। अर्थात् स्व-प्रबंधन मतलब अपने लक्ष्यों के लिए अकेले खड़े होने, लक्ष्यों के अनुसार सोचने, उसे पाने की योजना बनाने और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ उसे पाने के लिए कार्य करने की क्षमता विकसित करना।

दूसरा कौशल - मन नियंत्रण
दोस्तों, स्व-प्रबंधन के साथ जब आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए कार्य करते हैं, तो जल्द ही आपको शुरुआती सफलताएँ मिलना शुरू हो जाती हैं और यही छोटी-मोटी शुरुआती सफलताएँ हमें भटका देती हैं। वैसे ऐसा ही कई बार शुरुआती असफलताओं के दौर में या दूसरों की सफलताओं को देखकर भी होता है। ऐसे में अपनी भावनाओं और मन पर नियंत्रण रखकर फ़ोकस्ड रहते हुए कार्य करना सफल बनाता है। इस आधार पर समझा जाए तो मन नियंत्रण करना अर्थात् मन में आ रहे विचारों के भँवर को नियंत्रित कर, खुद को लक्ष्य प्राप्ति के लिए झोंकने की क्षमता रखना।

तीसरा कौशल - स्मार्ट स्टडी
अगर आप मुझसे पूछें कि कौन सा एक कौशल या बात हमें 21वीं सदी में विजेता बना सकता है, तो मैं कहूँगा, ‘सीखना, हर पल सीखना’ क्यूँकि 21वीं सदी एक बदलाव का दौर है, जहाँ डेटा, ए॰आई॰ अर्थात् आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस, आधुनिकीकरण व बदलती प्राथमिकताएँ, कार्य करने के बहुत सारे तरीके बदल देगी। इस बदलाव के दौर में अगर कोई चीज़ आपको बचा सकेगी तो वो है, आपके सीखने की क्षमता। 

बच्चों को शुरुआत से ही विभिन्न विषयों का अध्ययन करने का सही तरीक़ा अर्थात् स्मार्ट स्टडी करना सिखाना उन्हें भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करेगा। शुरुआत में उन्हें पढ़ने की गति और स्मरण शक्ति बढ़ाने में मदद करें अर्थात् तेज़ी से अध्ययन करना सिखाने के साथ-साथ जो पढ़ा है उसे याद रखना भी सिखाएँ। इसके साथ ही उन्हें बताएँ कि पढ़ाई सिर्फ़ अच्छे नम्बरों से परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए नहीं है बल्कि जीवन को आसान बनाने के लिए है।

चौथा कौशल - तीव्र मानसिक अर्थात् शार्प मेंटल स्किल 
फ़ोकस्ड रह कर काम करना सिखाना उन्हें कम समय में ज़्यादा परिणाम पाने के लिए तैयार करता है। इसके लिए आपको उसे ध्यान केंद्रित करना, उद्देश्यों को समझना, किसी भी बात या कार्य के पीछे के कारणों को पहचानना, विभिन्न परिस्थितियों का विश्लेषण करना, अपनी मानसिक शक्तियों का उपयोग करने की क्षमता को सिखाना होगा। साधारण शब्दों में कहा जाए तो उसे सयाना या समझदार बनाना होगा।

आज के लिए इतना ही दोस्तों, कल हम बच्चों को लिटिल सुपर स्टार बनाने वाले अगले 3 कौशल सीखेंगे।  

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com