फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, निश्चित तौर पर आपने बौद्ध धर्म के संस्थापक और हमारे देश भारत के मशहूर संत गौतम बुद्ध की विनम्रता, सहृदयता के ढेरों किस्से सुन रखे होंगे। आईए, आज हम भी अपने इस लेख की शुरुआत उनके जीवन की एक घटना से ही करते हैं।

गौतम बुद्ध लोगों को जीवन का मर्म समझाने, जीवन जीने का तरीक़ा सिखाने के लिए देश-विदेश भ्रमण किया करते थे। यात्रा के दौरान वे जहाँ भी पड़ाव डाला करते थे, वहीं वे प्रवचन के माध्यम से अपना संदेश लोगों तक पहुँचाया करते थे। अक्सर लोग प्रवचन के बाद उनसे मिलकर अपनी दुविधाओं का समाधान भी पूछा करते थे।

ऐसे ही एक बार संध्या के समय एक व्यक्ति, बहुत बुरा-भला कहते हुए, उनसे मिलने आया। वहाँ मौजूद लोगों को उसका व्यवहार अच्छा नहीं लगा तो उन्होंने उसे बुद्ध के क़रीब जाने से रोक दिया। जैसे ही गौतम बुद्ध को उसके बारे में पता चला उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति को बुलवाया। वह व्यक्ति शायद किसी वजह से बुद्ध से बहुत अधिक नाराज़ था, उसने बुद्ध के क़रीब पहुँचते ही उनके मुँह पर थूक दिया।

गौतम बुद्ध ने अपना गमछा लिया, मुँह को साफ़ करा और उस व्यक्ति की ओर देखते हुए बोले, ‘और कुछ भी कहना चाहते हो?’ गौतम बुद्ध की विनम्रता देख उस व्यक्ति को समझ ही नहीं आया कि वह किस तरह प्रतिक्रिया दे। जब गौतम बुद्ध से ग़ुस्से की जगह विनम्रता से जवाब देने के विषय में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘उस व्यक्ति के पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का कोई और तरीक़ा नहीं था, तो उसने थूक कर उसे व्यक्त करा। लेकिन मैं तो स्वयं को व्यक्त करने में सक्षम हूँ।’ दोस्तों बुद्ध का व्यवहार और प्रतिक्रिया देख ग़ुस्सा कर थूकने वाले व्यक्ति ने बुद्ध को गुरु के रूप में स्वीकार लिया।

इसीलिए कहा भी गया है दोस्तों, ‘आपका विनम्र स्वभाव ब्रह्मांड जीत सकता है।’ लेकिन आजकल स्थिति थोड़ी अलग चल रही है, लोग थोड़ी सी सफलता पाते ही अहम् के वहम में रहना शुरू कर देते हैं और विनम्रता को छोड़ दूसरों के लिए असभ्य या अपमानजनक रवैया अपनाने लगते हैं। ईश्वर के आशीर्वाद, ज्ञान, सत्य, निष्ठा, कड़ी मेहनत कर सफल होना, उसका जश्न मनाना आपका अधिकार है। लेकिन इसका अर्थ यह क़तई नहीं हुआ कि अपनी शेखी बघारने, अपनी सफलता का प्रदर्शन करने में आप दूसरे की गरिमा का ख़्याल रखना ही बंद कर दें और उनके प्रति असभ्य और अपमानजनक व्यवहार करें।

ठीक इसी तरह कई बार स्वयं से अथवा अपनी मेहनत के परिणामों से असंतुष्ट लोग सफल लोगों, जिन्होंने कड़ी मेहनत और सही तरीके से अपनी सफलता अर्जित करी है, से नाराज़गी व्यक्त करते हैं। किसी भी हाल में इसे भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है। दोस्तों, मेरी नज़र में दोनों ही स्थिति सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने अहम् को संतुष्ट करने से अधिक कुछ भी नहीं है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो एक के सर में सफलता, तो दूसरे के सर में असफलता घर कर गई है। इस चक्कर में हम भूल गए हैं कि ना ही सफलता अर्थात् पैसा, पद या प्रतिष्ठा हमें अच्छा और बेहतर इंसान बनाती है और ना ही असफलता हमें अच्छा इंसान बनने से रोकती है।

दोस्तों, अगर आप जीवन में वाक़ई सफल होना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले एक बेहतरीन इंसान बनना होगा अर्थात् इंसानियत को सर्वोपरि मानना होगा और यही आपका वास्तविक धन होगा। याद रखिएगा, पैसों से आप अच्छा परिवार, अच्छे दोस्त, ज्ञान, विवेक, व्यक्तिगत और व्यवसायिक जीवन का संतुलन, ख़ुशी आदि नहीं ख़रीद सकते हैं। इसलिए दोस्तों सफलता को सर पर ना चढ़ने दें और विनम्र रहें। याद रखिएगा दोस्तों, नम्र रहना कमजोरी की नहीं बल्कि ताक़त की निशानी है। नम्रता का भाव आपको आंतरिक शांति प्रदान करता है।

आप चाहें तो किसी भी सफल, खुश और शांत व्यक्ति को देख लें, आप सभी में कुछ बातें एक समान पाएँगे, वे सभी उपलब्धियों पर आधारित जीवन जीने के स्थान पर मूल्य आधारित जीवन जीते हैं। वे किसी भी कार्य को कुछ साबित करने के लिए नहीं बल्कि आंतरिक शांति अपनी ख़ुशी के लिए करते हैं। वे अहंकार से दूर रहते हुए ज़मीन से जुड़े रहते हैं। आईए दोस्तों, आज से एक कठिन कार्य करने का निर्णय लेते हैं, ‘खुद को विनम्र और सफल बनाते हैं।'

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com