फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


काउन्सलिंग के दौरान मैंने अक्सर लोगों को जीवन में चल रही अनिश्चितताओं के लिए क़िस्मत, परिस्थितियों, परिवार, पालन-पोषण, चुनौतियों आदि को दोष देते हुए पाया है अर्थात् उनके जीवन में जो कुछ भी चल रहा या घट रहा होता है, उसका ज़िम्मेदार कोई और ही होता है। दोस्तों, लोग जीवन की अनिश्चितता या दैनिक रूप से सामने आ रही चुनौतियों, परेशानियों के बीच भूल जाते हैं कि ईश्वर ने उन्हें कई चीजों से नवाज़ा भी है। जैसे, अच्छा स्वास्थ्य, समय पर भोजन, शिक्षा आदि। आईए आज हम एक ऐसे प्रेरणादायी प्रसंग पर चर्चा करते हैं, जिसे पढ़ने के बाद आपको एहसास होगा कि एक अच्छा इंसान होना, ईश्वर के द्वारा दिया गया सबसे बड़ा उपहार है।

शिकागो से प्रकाशित होने वाले पेपर, ‘शिकागो ट्रिब्यून’ में श्री कुएस्टर बच्चों के लिए ‘किड़न्यू’ नाम से, कॉलम लिखते थे। बच्चों के बीच इस कॉलम की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्हें प्रतिक्रिया के रूप में हज़ारों पत्र मिलते थे। जिनमें बच्चे सामान्यतः अपने जीवन या मन में चल रही दुविधाओं के बारे में समाधान जानने का प्रयत्न करते थे। दोस्तों, सुनने में आसान सा लगने वाला यह कार्य कई बार उन्हें पशोपेश में डाल दिया करता था। कुछ बच्चों के प्रश्न या स्थिति सुन वे व्यथित और परेशान हो जाते थे। ‘भगवान अच्छे लोगों को पुरस्कृत करने और बुरे लोगों को दंड देने के लिए सामने क्यों नहीं आते?’, ऐसा ही एक प्रश्न था, जिसे कई बच्चों ने किसी ना किसी रूप में पूछा था और श्री कुएस्टर को लम्बे समय तक परेशान किया था। दुविधा और परेशानी की मुख्य वजह श्री कुएस्टर के पास इस प्रश्न का कोई जवाब ना होना था। 

वर्ष 1963 में उनसे ‘मैरी’ नाम की एक बालिका ने शिकागो ट्रिब्यून को पत्र लिख, ऐसा ही प्रश्न पूछा था। उसने पूछा था,  ‘मिस्टर कुएस्टर, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि कुकीज़ को टेबल पर रखने, साफ़-सफ़ाई में मदद करने के बदले में मुझे सिर्फ़ प्रशंसा और सराहना ही क्यूँ मिलती है, कोई अन्य उपहार क्यों नहीं? जबकि माँ छोटे भाई डेविड को शरारत और मस्ती करने के बाद भी कई बार कुकीज़ देती हैं। मिस्टर कुएस्टर क्या आप मुझे बताएँगे कि भगवान मेरे साथ ऐसा क्यूँ करते हैं?’

पत्र पढ़ श्री कुएस्टर का मन भारी हो गया क्यूँकि उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे इस पत्र का क्या जवाब दें? वे अंदर ही अंदर इस प्रश्न का जवाब खोजने के लिए परेशान थे। इसी बीच एक दिन उनके दोस्त ने उन्हें शादी में आमंत्रित किया। वे तय दिन, तय समय पर शादी में पहुँच गए और शादी की रस्मों को ध्यान से देखने में मशगूल हो गए। इन्हीं रस्मों के बीच एक मज़ेदार घटना घटी। दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे को देख ऐसे मंत्रमुग्ध थे कि उन्होंने उल्टे हाथ में पहनाने वाली अंगूठी को सीधे हाथ में पहना दिया। ग़लत हाथ में अंगूठी पहनाता देख पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले, ‘दाहिना हाथ पहले से ही बहुत सुंदर लग रहा है। मुझे लगता है, आपको इस अंगूठी से बाएँ हाथ को सजाना चाहिए।’  पंडित की बात सुनते ही दूल्हा-दुल्हन दोनों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने तुरंत उसे सुधार लिया।

घटना थी तो बड़ी सामान्य सी, लेकिन इससे मिली प्रेरणा ने श्री कुएस्टर को मैरी समान कई बच्चों के प्रश्न का उत्तर देनें लायक़ बनाया। वे समझ गए कि पहले से अच्छे व्यक्ति या सही चीज़ को सुंदर या बेहतर बनाने के लिए किसी बाहरी चीज़ की ज़रूरत ही कहाँ है? इसने उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुँचने में मदद करी कि, ‘एक अच्छा व्यक्ति होना ही उस व्यक्ति को खुदा द्वारा दिया गया सबसे बड़ा उपहार है।’

इस प्रेरणा को पा श्री कुएस्टर बहुत उत्साहित थे, उन्होंने तुरंत एक पत्र अपनी पाठक मैरी को लिखा और बताया कि, ‘एक अच्छा बच्चा होना ही आपके लिए भगवान का सर्वोच्च पुरस्कार है। ईश्वर बहुत कम बच्चों को यह उपहार देता है। आप बहुत विशेष हैं, इस बात का जश्न बनाएँ।’ 

दोस्तों इस पत्र का असर इतना व्यापक था कि शिकागो ट्रिब्यून में प्रकाशित होने के कुछ समय बाद यह अमेरिका और यूरोप के एक हज़ार से ज़्यादा समाचार पत्रों में फिर से प्रकाशित किया गया। इतना ही नहीं, इसके बाद इस पत्र को हर साल बच्चों के उत्सव के दौरान प्रकाशित किया जाता रहा।

दोस्तों श्री कुएस्टर द्वारा बच्ची को दिए गए जवाब और उस पर आधारित लेख को पढ़ने के बाद मैं सोच रहा था कि जीवन में आगे बढ़ने, अच्छा इंसान बनने के लिए वाक़ई किसी दूसरे सहारे की आवश्यकता नहीं है, और हक़ीक़त में यही ईश्वर या कुदरत द्वारा हमें दिया गया सर्वोत्तम उपहार है। जी हाँ दोस्तों, आप जैसे हैं, वैसे ही परिपूर्ण हैं। हक़ीक़त में आपको किसी अतिरिक्त प्रोत्साहन या हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और यही तो गर्व करने योग्य बात है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com