फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

 साथियों, कई बार आपने देखा होगा कि हमारे आस-पास मौजूद लोग स्वयं को अंधकार और अनिश्चितता में डूबा हुआ पाते हैं। उनको अपना जीवन रंगहीन, हताशा और निराशा से भरा हुआ नज़र आता है। आप जब भी इन्हें कोई सलाह देंगे या कोई अच्छा कार्य बताएँगे, इस तरह के लोग उसमें भी कोई न कोई कमी या नकारात्मकता खोज लाएँगे। कुल मिलाकर कहा जाए तो यह लोग नकारात्मक मानसिकता के साथ अपना जीवन जीते हैं। सामान्यतः इस नकारात्मक जीवनशैली को मैं उनका चुनाव मानता हूँ। हो सकता है आप में से कुछ लोग मेरी उपरोक्त बात से सहमत ना हों और आपको लगे कि उपरोक्त टिप्पणी करना बहुत आसान है लेकिन ज़िंदगी में चुनौतियों से पार पाकर, फिर से जीवन को सकारात्मक और गतिशील बनाना, बहुत मुश्किल है। लेकिन ऐसा नहीं है साथियों, मैंने अपने जीवन में भी सामान्य लोगों के समान कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और उसी के आधार पर मेरा मानना है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी अपने जीवन को बेहतर और उद्देश्यपूर्ण बनाने की ज़िम्मेदारी हमारी ही है। इस लक्ष्य को तभी पाया जा सकता है जब तमाम विपरीत परिस्थितियों, चुनौतियों और दिक्कतों के बाद भी हम दिल के किसी कोने में आशा की एक किरण जलाकर रख पाएँ। चलिए अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-

बात कई साल पुरानी है, एक राजा के दो जुड़वां पुत्र थे। दोनों ही, ना सिर्फ़ दिखने में एक जैसे थे बल्कि दोनों का लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा, सब कुछ एक समान ही होता था। इसीलिए दूर से देखने पर सबको उनका चाल-चलन एक जैसा लगता था। राजा स्वयं भी दोनों को हमेशा एक समान नज़रों से देखता था और उसका प्रयास रहता था कि दोनों में से किसी के साथ भी अन्याय या पक्षपात ना हो।

बढ़ती उम्र के साथ राजा को एहसास हुआ कि अब उन्हें राजपाठ बच्चों को सौंपकर वानप्रस्थ आश्रम का रुख़ करना चाहिए। लेकिन अब दुविधा यह थी कि दोनों में से किस राजकुमार को उत्तराधिकारी बनाया जाए क्यूँकि राज्य को दो हिस्सों में बाँटना उसे कमजोर बनाने के समान था और साथ ही यह भविष्य में दोनों पुत्रों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर सकता था। इसलिए राजा ने काफ़ी सोच- विचार करके निर्णय लिया कि वे एक प्रतियोगिता आयोजित करेंगे और उस प्रतियोगिता में दोनों राजकुमारों में से जो भी विजयी होगा, उसे अपना उत्तराधिकारी बनाएँगे।

अपनी योजना के तहत कुछ दिनों के बाद राजा ने दोनों राजकुमारों को सभा में बुलाया और दोनों को एक-एक महल और 1000 स्वर्ण मुद्राएँ देते हुए कहा, ‘तुम दोनों में से जो भी कम-से-कम स्वर्ण मुद्राओं का इस्तेमाल करके इस महल को सम्पूर्ण रूप से भर देगा, वही इस प्रतियोगिता का विजेता होगा और साथ ही इस राज्य का उत्तराधिकारी भी बनेगा। दोनों राजकुमारों ने राजा को प्रणाम किया और स्वर्ण मुद्रायें लेकर अपनी-अपनी योजना बनाने में व्यस्त हो गए।

पहले राजकुमार ने सोचा, ‘हमें तो महल को किसी भी चीज़ से भरना है तो क्यूँ ना इसे कचरे से भर दिया जाए क्यूँकि कचरा डलवाने में मेहनताने के अलावा और कोई खर्च नहीं लगेगा।’ विचार आते ही उसने इस पर अमल करना शुरू कर दिया और पूरे महल को कचरे से भर दिया। वहीं दूसरे ओर दूसरे राजकुमार ने काफ़ी मंथन करके अपने महल को प्रकाश से भरने का निर्णय लिया। वह बाज़ार गया और वहाँ से कुछ दीपक लेकर आया और उन्हें उचित स्थानों पर रखकर प्रज्वलित कर दिया।

साथियों मुझे नहीं लगता इसके आगे आपको कुछ बताने की ज़रूरत है। आप स्वयं ही समझ  गए होंगे कि दोनों में से कौन सा राजकुमार विजयी रहा होगा। असल में साथियों ईश्वर, राजा है जिसने हमें मन रूपी महल दिया है। अब यह हमारे हाथ में है कि हम इसे नकारात्मकता के कचरे से भरें या सकारात्मकता या आत्मज्ञान के प्रकाश से। अगर आप क्षणिक सुख चुनेंगे तो बहुत अधिक सम्भावना है कि आप झूठ, फ़रेब, लालच, वासनाओं आदि के चक्कर में फँसकर इसे नकारात्मकता से भर लेंगे और अगर आप ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखते हुए सत्य व जीवन मूल्यों पर आधारित जीवनशैली चुनते हैं तो आप इसे सकारात्मकता और आत्मज्ञान के प्रकाश से रोशन करते हैं जो आपको आशावान भी बनाए रखता है और अंत में आपको खुश व प्रसन्नचित्त रहते हुए जीवन को बेहतर बनाने का मौक़ा देता है। तो दोस्तों आज से निर्णय लें और बेहतरीन जीवन के लिए सकारात्मकता के साथ मन मंदिर में आशा का दीप जलाए रखें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com