फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


हाल ही में एक विद्यालय के प्रबंधक व प्राचार्य से ‘बच्चे, शिक्षा और भविष्य’, विषय पर चर्चा करने का मौक़ा मिला। विद्यालय प्रबंधक व प्राचार्य का मत था कि आजकल के बच्चे शिक्षा और अपने भविष्य को लेकर बिल्कुल भी गम्भीर नहीं हैं। बोर्ड परीक्षा हो या विद्यालय के अंदर होने वाली कोई भी अन्य गतिविधि, वे हर चीज को बहुत ही सामान्य या हल्के ढंग से लेते हैं। मेरा नज़रिया बच्चों के लिए उनके नज़रिए से थोड़ा भिन्न था क्यूँकि मेरा मानना है कि उन बच्चों में गम्भीरता की कमी नहीं है बल्कि वे बहुत अच्छे से जानते हैं कि आज के समय में प्रतियोगिता का स्तर क्या है। वे बड़ी सोच रखने के साथ जागरुक रहते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं। साथ ही वे कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहते हैं जो उन्हें फ़ालतू लगता है या जिसमें उन्हें लगता है कि उनका समय बर्बाद हो रहा है। मेरी नज़र में इस सोच की दो प्रमुख वजह हैं, पहली-वे अपने जीवन को पूर्णता के स्तर तक मस्त, खुश और बिना किसी दबाव के शांत रहते हुए जीना चाहते हैं और दूसरी वजह है, बच्चे पहले के मुक़ाबले अधिक तार्किक हैं और साथ ही वे हम से ज़्यादा अपडेटेड और जागरुक रहते हैं।

जब भी उन्हें लगता है कि आप उनकी सोच, क्षमता, योग्यता आदि को कम आँक रहे हैं, तो वे हमसे दूर होने लगते हैं। उन्हें ऐसा करते देख हमें लगने लगता है कि वे हमारा सम्मान नहीं कर रहे हैं और हम उन पर बदतमीज़ होने या बड़ों की बात ना सुनने का ठप्पा लगा देते हैं। खैर, विद्यालय प्रबंधक और प्राचार्य को जब मैंने उपरोक्त बातें बताई तो उनका मुझसे एक ही सवाल था, ‘फिर हम किस तरह आज के युवाओं को डील करें?’ मेरे अनुसार दोस्तों निम्न 5 सूत्रों की सहायता से यह लक्ष्य पाया जा सकता है-

पहला सूत्र - विश्वास रखें और सुनें 
दोस्तों, काउन्सलिंग के अपने कार्य के दौरान मैंने अक्सर बच्चों को कहता पाया है कि परिवार, विद्यालय में कोई उनकी बात ढंग से सुनता ही नहीं है और बिना हमारी सोच या मत जाने हमारे ऊपर इल्ज़ाम या ठप्पा लगा दिया जाता है। मेरी नज़र में दोस्तों वे कुछ हद तक सही भी है। हमेशा उन्हें छोटा या नासमझ मानना निस्चित तौर पर ग़लत है। काउन्सलिंग के दौरान मैंने कई बार महसूस किया है कि जब आप उन्हें ध्यान से सुनते हैं, तब आप उनके साथ एक बेहतर रिश्ता बनाते है और तब वे आप की बात मान जाएँ, इसकी सम्भावना बढ़ जाती हैं।

दूसरा सूत्र - निर्णय ना थोपें 
जब भी आप बच्चे को कुछ समझाना चाहें, उन्हें सीधे तौर पर टोकने के स्थान पर, सकारात्मक रहते हुए अपने अनुभव साझा करें। साथ ही उन्हें सही और ग़लत बताएँ लेकिन निर्णय लेने की छूट दें। 

तीसरा सूत्र - रोज़मर्रा के कार्यों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करें
दैनिक जीवन में किए जाने वाले कार्यों और उनसे सम्बंधित निर्णयों में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करें। इससे बच्चों का डिस्कर्सिव इंटेलीजेंस बढ़ेगा और साथ ही उनकी निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ेगी।

चौथा सूत्र - ग़लतियाँ करने दें 
दोस्तों मेरा मानना है कि ग़लतियाँ हमें बेहतर बनाती हैं लेकिन तब, जब हम उनसे सीखते हैं। जब बच्चों पर हमेशा सही रहने, अच्छा करने का दबाव रहता है तब वे निर्णय लेने, नई शुरुआत करने और रिस्क लेने से बचना शुरू कर देते हैं। गलती करने पर टोकने की जगह जब आप उन्हें माफ़ करने के साथ-साथ उनसे सीखने और एक बार फिर से प्रयास करने के लिए मोटिवेट करते है तो बच्चों में फ़ाइटिंग स्पिरिट बढ़ती है।

पाँचवाँ सूत्र - सही रोल मॉडल चुनने में मदद करे 
जिस तरह बच्चे सौ प्रतिशत सही और जानकार नहीं हो सकते हैं ठीक उसी तरह हम भी हमेशा सही नहीं हो सकते। जब आप उन्हें अच्छे से सुन लें, समझ लें, समझा लें और आपको विश्वास हो जाए कि वे सही हैं तो उन्हें सही रोल मॉडल चुनने में मदद करें जिससे वह अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सके।

याद रखिएगा दोस्तों, इल्ज़ाम या एक दूसरे को ग़लत ठहराना नहीं बल्कि आपसी विश्वास बढ़ाना जीवन में आगे बढ़ने का मौक़ा देता है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com