फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


अक्सर आपने देखा होगा कई लोगों को देखकर हमारे अंदर दया का भाव आ जाता है और हम उसकी पीढ़ा, उसके दर्द, उसकी परेशानी को समझते हैं, उसके साथ सहानुभूति रखते हैं लेकिन उसकी समस्या या परेशानी का समाधान दूर रहते हुए करने का प्रयास करते हैं। लेकिन इसके ठीक विपरीत कभी हमारा कोई बहुत ही करीबी या ख़ास व्यक्ति अथवा जिससे हम प्यार करते हैं इसी परिस्थिति, परेशानी या समस्या का सामना करते हैं तो हमारा भाव, हमारी सोच उनके प्रति बदल जाती है और अचानक ही हमारे अंदर समानुभूति का भाव पैदा हो जाता है और हम खुद को उसी परिस्थिति में महसूस करने लगते हैं अर्थात् उस पीढ़ा, उस समस्या से उत्पन्न दर्द या परेशानी को महसूस करने लगते हैं।

दूसरों के दर्द या पीढ़ा को समझना और उसके साथ सहानुभूति रखना और उसके दर्द या पीढ़ा को महसूस करना अर्थात् समानुभूति का भाव रखना दो बिलकुल अलग बात है दोस्तों। अगर आप इस दुनिया को इंसानों के लिए और बेहतर बनाना चाहते या पूरी दुनिया को छोड़िए अपनी छोटी सी दुनिया को बेहतरीन, खुशहाल और मस्त बनाना चाहते हैं तो आपको अपने अंदर सहानुभूति अर्थात् सिम्पैथी से आगे बढ़कर समानुभूति अर्थात् एमपैथी के भाव को लाना होगा और हाँ साथियों हमारी सोच के विपरीत इस भाव को लाना बहुत आसान है। आपको बस अपने दैनिक जीवन में निर्णय लेने, काम करने के तरीक़े में छोटा-मोटा बदलाव लाना होगा। 

चलिए, इसे मैं आपको एक सप्ताह पूर्व घटी, एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ, जो साउथ कोरिया के सीओल से अमेरिका के सैन फ़्रांस्सिको जाने वाली फ़्लाइट में घटी। शुरू में तो सामान्य फ़्लाइट की ही तरह उस दिन भी सब कुछ चल रहा था, तय समय पर यात्री बोर्ड कर रहे थे, उसके बाद परिचारिकाओं अर्थात् एयर होस्टेस ने सुरक्षा सम्बन्धी बातें सभी यात्रियों को बताई और उसके बाद हवाई जहाज़ ने अपने गंतव्य के लिए उड़ान भरी। 

उस दिन इस हवाईजहाज़ से लगभग 200 यात्री सैन फ़्रांस्सिको जा रहे थे और इन 200 यात्रियों में एक 3 लोगों का परिवार भी था। सुरक्षित टेक ऑफ़ के बाद पायलट ने जैसे ही बेल्ट लगाए रखने का संकेत बंद किया, उस परिवार की महिला अपनी सीट से उठी और एयर होस्टेस से कुछ बात करने के बाद, उसी की सहायता से, अपने साथ लाए बैग में से एक छोटी गिफ़्ट की थैली सभी यात्रियों को देने लगी। सभी यात्री बड़ी उत्सुक्ता के साथ इस नज़ारे को देख रहे थे, वे समझ नहीं पा रहे थे कि छोटे से बच्चे को गोदी में लिए यह महिला कर क्या रही है। इसी उत्सुक्ता में कुछ लोगों ने उपहार में मिली थैली लेते ही उसे खोलकर देखना प्रारम्भ कर दिया। 

साथियों उस महिला ने उपहार में दिए प्लास्टिक बैग में चूइंग्गम, चॉकलेट या कैंडीज़, ईयरप्लग और एक पत्र रखा हुआ था। इन सभी सामान में सबसे महत्वपूर्ण ये पत्र ही था क्यूँकि यह एक अग्रिम माफ़ीनामा अर्थात् अपॉलॉजी लेटर था। यह पत्र उस महिला ने अपने बच्चे के नाम से लिखा, जो इस प्रकार था- ‘हेलो मेरा नाम ज़ेन वू है और मैं अभी सिर्फ़ चार माह की बच्ची हूँ। आज इस फ़्लाइट के रूप में में अपने जीवन में पहली बार ऊँचाई पर उड़ने का एक नया अनुभव लेने जा रही हूँ। मेरी पहली हवाई यात्रा अमेरिका के लिए है और इस यात्रा में मेरा ख़्याल रखने के लिए मेरे साथ मेरी माँ और दादी है। मेरी कोशिश रहेगी कि इस यात्रा  के दौरान मैं ना रोऊँ लेकिन चार महीने की बच्ची के रूप में ऐसा कर पाना मेरे लिए कितना सम्भव होगा ये देखने वाली बात होगी। हालाँकि मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करूँगी लेकिन फिर भी अगर कोशिश करने के बाद भी मैं अपना रोना कंट्रोल नहीं कर पायी तो आप लोग कृपया करके इन चीजों का इस्तेमाल कीजिएगा और मुझे छोटी सी बच्ची मान माफ़ कर दीजिएगा। आपकी यात्रा सुखद हो… धन्यवाद !!!’

कहने की ज़रूरत नहीं है दोस्तों, माँ द्वारा बच्ची की ओर से लिखे गए इस पत्र ने क्या कमाल किया होगा और उस यात्रा के दौरान उसे सहयात्रियों का कितना प्यार और सहयोग मिला होगा। असल में दोस्तों उस बच्ची की माँ ने लोगों को होने वाली परेशानी को महसूस किया अर्थात् समानुभूति वाला भाव रखा और उस भाव के बदलें में लोगों ने उसी भाव के साथ उसकी मजबूरी का एहसास करा और उसके अनुसार सहयोग दिया।

मेरा मानना है, अगर यह चिट्ठी नहीं होती तो बच्ची के रोने पर लोगों से सहानुभूति तो मिल सकती थी, लेकिन समानुभूति तो बिलकुल नहीं। असल में दोस्तों समानुभूति के भाव से किया गया कर्म अनजान लोगों में भी विश्वास पैदा कर देता है और उनके मुश्किल या परेशानी भरे पलों को आसान कर देता है।

वैसे भी हमारा धर्म हमारी शिक्षा, सभ्य होना, अपने सिवा अपने आसपास मौजूद लोगों की फ़िक्र करना, लोगों की हर सम्भव मदद करना, अपनी वजह से किसी और को असुविधा ना हो या असुविधा या गलती होने पर माफ़ी माँग लेना ही तो सिखाती है। समानुभूति का भाव हमें इंसानियत सिखाता है और किसी ने सही कहा है साथियों, ‘इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com