फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


आइए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत हम एक बहुत ही रोचक कहानी से करते हैं। एक बार राजा कृष्णदेव राय अपने राजकीय कार्य से कटक गए हुए थे। कटक में राजा का सम्पर्क नदी किनारे एक बहुत ही पहुँचे हुए तपस्वी संत से हुआ। राजा ने उस वक्त पड़ोसी राज्य से हुए एक युद्ध में विजय प्राप्त करी थी लेकिन उसके बाद भी वे युद्ध में मारे गए सैनिकों की वजह से दुःखी थे। राजा ने तपस्वी संत के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद के रूप में अपनी समस्या के समाधान और प्रजा की ख़ुशी के साथ अपने राज्य की तरक़्क़ी का उपाय पूछा।

राजा की सहजता और समर्पण को देखकर संत काफ़ी खुश हुए। उन्होंने अपनी शक्तियों से हवा में ही एक कटोरा प्रकट किया और उसमें अभिमंत्रित जल भरने के पश्चात उसे राजा कृष्णदेव राय को देते हुए बोले, ‘महाराज, मैं आपकी सहजता और अपने राज्य व प्रजा के प्रति समर्पण को देख खुश हुआ। इस दिव्य कटोरे को जल सहित लेकर जाओ और अपने नगर पहुँचने के बाद इसके जल को अपने शाही ख़ज़ाने और अन्न भंडारण के स्थान पर छिड़क देना। इससे तुम्हारे राज्य का ख़ज़ाना हमेशा बढ़ता रहेगा, राज्य में कभी भी अनाज की कमी नहीं होगी और प्रजा भी हमेशा खुश रहेगी। बस कटोरे और जल को ले जाते समय एक बात का ध्यान रखना, पूरे रास्ते इस अभिमंत्रित पानी की एक भी बूँद ज़मीन पर ना गिरे।

संत का आशीर्वाद पाकर राजा बहुत खुश थे। उन्होंने एक बार फिर संत को प्रणाम किया और वापस अपने राज्य लौटने की आज्ञा माँगी। संत ने उन्हें रास्ते में जल की एक भी बूँद ना गिराने की बात याद दिलायी और लौटने की आज्ञा दे दी। राजा संत से आज्ञा लेने के बाद राज्य तक बिना जल गिराए कटोरा ले जाने की योजना बनाने लगे। पहले उनके मन में विचार आया कि वे कटोरे और जल को पहुँचाने की ज़िम्मेदारी अपने सेनापति को दे देते हैं, लेकिन अगले ही पल उन्हें लगा शायद सेनापति इसको ले जाने के लिए सक्षम नहीं है। अंत में काफ़ी सोच विचार करने के बाद राजा ने तेनालीराम को संत की पूरी बात बताते हुए कटोरे और जल को सकुशल अपने राज्य पहुँचाने की ज़िम्मेदारी सौंपी।

तेनालीराम ने राजा से कटोरा लिया और अपने रथ की ओर जाने लगा। राजा कृष्णदेव राय ने रथ चलाने की ज़िम्मेदारी सेनापति को दी। सेनापति तेनालीराम से जलता था, उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं किया करता था। उसने सोचा आज बदला लेने और तेनालीराम को राजा की नज़रों में हमेशा के लिए गिराने का अच्छा मौक़ा है। उसने पहले तो रथ को बहुत अच्छे से चलाया और तेनालीराम को मीठी बातों में फँसा कर रथ में आराम से सोने के लिए राज़ी कर लिया।

तेनालीराम सेनापति की बातों में आकर मज़े से रथ में सो गए। कुछ देर तक तो सेनापति आराम से रथ चलाता रहा लेकिन जैसे ही उसे एहसास हुआ तेनालीराम गहरी नींद के आग़ोश में चले गए हैं उसने रथ पथरीले और ऊबड़-खाबड़ रास्ते की ओर मोड दिया जिससे कटोरे का पानी छलक कर रास्ते में गिर जाए।

अल सुबह सेनापति रथ लेकर राजा के महल पहुँच गया। वहाँ राजा पहले से ही कटोरा लेकर आ रहे तेनालीराम का इंतज़ार कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने तेनालीराम को रथ में आराम से सोता हुआ देखा उन्हें ग़ुस्सा आ गया। उन्होंने आवाज़ देकर तेनालीराम को उठाया और लगभग चिल्लाते हुए कटोरे और अभिमंत्रित पानी के बारे में पूछा। राजा को ग़ुस्से में देख सेनापति खुश हो गया, उसे लगा शायद उसकी योजना सफल हो गयी है। 

राजा की गुस्से भरी आवाज़ सुनते ही तेनालीराम बोले महाराज ग़ुस्सा थूक दीजिए कटोरा और पानी दोनों ही पूरी तरह सुरक्षित है। इतना कहते हुए तेनालीराम ने अपने झोले में से कटोरा और एक चमड़े की थैली निकाली और राजा को देते हुए बोला, ‘महाराज, संत ने कटोरे और पानी की एक भी बूँद ज़मीन पर गिराए बिना सुरक्षित राज्य तक लाने का कहा था इसलिए महाराज मैंने कटोरे से पानी निकालकर इस चमड़े के थैले में बांध लिया था और कटोरे को सुरक्षित अपने थैले में रख लिया था। लीजिए, सम्भालिए अपना कटोरा और अभिमंत्रित जल। राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम की बुद्धिमानी देखकर बहुत खुश हुए और उनकी तारीफ़ सभी के सामने करते हुए पुरस्कृत किया।

दोस्तों, जिस तरह राजा कृष्णदेव राय के लिए पानी भरे कटोरे को बिना पानी छलकाए अपने राज्य तक ले जाना मुश्किल लग रहा था, ठीक उसी तरह हमें भी अपने जीवन में कई समस्याएँ या चुनौतियाँ अत्यधिक मुश्किल और असम्भव सी लगती हैं। लेकिन अगर हम उन समस्याओं और चुनौतियों पर बिना घबराए, बिना डरे, गहराई और गम्भीरता से सोचते हैं, उसके समाधान की ओर एक सकारात्मक कदम उठाते हैं, हमें उसका आसान सा समाधान मिल जाता है। आइए दोस्तों तेनालीराम की बुद्धिमत्ता से सीखे इस मंत्र को आज से ही अपने जीवन में प्रयोग में लाना शुरू करें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com