फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


दोस्तों, अक्सर कहा जाता है कि दुःख सहन करना या दुःख में धैर्य रखना एक कला है क्यूँकि दुखी व्यक्ति को बहुत कुछ सहना पड़ता है। लेकिन मुझे लगता है दोस्तों, जो लोग अपना जीवन खुश, संतुष्ट, सुखी और शांत रहते हुए जीना चाहते हैं, वे दुःख ही नहीं सुख भी सहते हुए, मज़े से जीते हैं। शायद आपको मेरी यह बात थोड़ी सी अटपटी लग रही होगी और आप सोच रहे होंगे, ‘सुख भी कोई सहा जाता है क्या?’ तो दोस्तों, मेरी छोटी सी समझ के अनुसार तो, ‘हाँ’।

चलिए, इसे मैं आपको सुख या सफलता और अहंकार एवं दुःख और धैर्य के आपसी रिश्ते से समझाने का प्रयास करता हूँ। अक्सर आपने देखा होगा कि सुखी या सफल व्यक्ति स्वयं को बादशाह या सर्वशक्तिमान मानने लगता है। उसे ऐसा लगता है मानो सारे जहां का कंट्रोल उसके हाथ में ही आ गया है। साधारण शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो सुख या सफलता अपने साथ अहंकार लेकर आती हैं। मेरी इस बात को आप इतिहास से रावण, कंस, दुर्योधन आदि किसी के भी उदाहरण से समझ सकते हैं। दुर्योधन 5 गाँव देकर युद्ध टाल सकता था। लेकिन अहंकार की वजह से ऐसा ना करके उसने ना सिर्फ़ अपना बल्कि कुल के अधिसंख्य लोगों का नुक़सान किया या नाश का कारण बना। ठीक इसी तरह कंस ने भी सत्ता सुख के दौर में अहंकार के कारण ग़लत निर्णय लेते हुए अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया, जो अंत में उसकी मृत्यु का कारण बना। दोस्तों अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि रावण, कंस, दुर्योधन आदि सभी के जीवन में जैसे-जैसे सुख और विलास आया उतना ही उनका अभिमान बढ़ता चला गया।

लेकिन इसके विपरीत, दुखी व्यक्ति खुद को लूटा हुआ महसूस करता है। उसे लगता है मानो सब कुछ हाथ से फिसल गया है।  अब मैं कितना भी प्रयास कर लूँ , मुझे निराशा ही हाथ लगेगी। साधारण शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो दुःख के समय में व्यक्ति को चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा नज़र आता है। ऐसे में सिर्फ़ एक चीज़ आपका साथ निभाती है, वह है आशा अर्थात् घने अंधेरे के बाद एक नई सुबह होने की आस और दोस्तों आस या आशा का होना बिना धैर्य के सम्भव नहीं है। सीधे शब्दों में कहूँ तो सिर्फ़ और सिर्फ़ धैर्य आपको दुःख से निपटने में मदद करता है।

जीवन का एक साधारण सा नियम है अगर आप वास्तव में सुखी, शांत, संतुष्ट और खुश रहते हुए जीना चाहते हैं तो आपको सुख और दुःख दोनों को ही सही तरीके से डील करना सीखना होगा। एक ओर जहाँ सुख व्यक्ति के अहंकार की परीक्षा लेता है वहीं दूसरी ओर दुःख, धैर्य की परीक्षा लेता है। जो व्यक्ति दोनों परीक्षाओं को उत्तीर्ण कर लेता है असल में वही सही मायने में अपने जीवन को सफल बना पाता है।

इसलिए दोस्तों, अगर अपने जीवन को सही मायने में सफल बनाना चाहते हो, तो सुख के क्षणों में अहंकार को जीतो और दुःख के समय में धैर्य को धारण करो। अन्यथा इस जीवन रूपी महासंग्राम में सफल योद्धा बनना लगभग असम्भव ही रहेगा। इसीलिए मैंने कहा था दोस्तों, दुःख सहना ही नहीं अपितु सुख सहना भी जीवन को सही मायने में सफल बनाने के लिए आवश्यक है। यह भी एक महान कला है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com