फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों ईश्वर जिन कार्यों, बातों या लोगों से जीवन को बेहतर और सुखद बनाने का प्रयास करते हैं, ज़्यादातर लोग उन्हीं बातों से परेशान और दुखी रहने लगते हैं। उदाहरण के लिए रिश्तों को ही ले लीजिए, ईश्वर ने हमारे जीवन को रंगीन, उल्लास से परिपूर्ण  बनाने के लिए रिश्ते बनाए हैं लेकिन ज़रा सा अपने आस-पास देखिए, आपको हज़ारों लोग मिल जाएँगे जो इन्हीं की वजह से परेशान और दुखी चल रहे हैं। 

मेरी नज़र में इसकी सबसे बड़ी वजह ग़लत अपेक्षाएँ रखते हुए, स्वयं को परिपूर्ण मानना है। जब आप खुद को परिपूर्ण या सही मानने लगते हैं तब आप स्थितियों, रिश्तों, अपेक्षाओं आदि का सही आकलन करने में विफल हो जाते हैं। यही विफलता जीवन में नकारात्मकता और असंतोष बढ़ा देती है। यह स्थिति उस वक्त और भयावह हो जाती है, जब हम रिश्तों में आए इस असंतोष और इसकी वजह से उपजी नकारात्मकता को खत्म करने के लिए खुद में बदलाव करने के स्थान पर अपना सारा फ़ोकस सामने वाले को बदलने में लगा देते हैं और असफलता मिलने पर और ज़्यादा परेशान रहने लगते हैं। 

दोस्तों, अगर आप अपने रिश्तों में गरमाहट लाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने रिश्ते को ध्यान में रखते हुए खुद से प्रश्न करें, ‘आपके लिए जीवन में क्या महत्वपूर्ण है, सुख और शांति या लोगों का आपके अनुरूप सही होना?’  अगर आपका जवाब ‘सुख और शांति!’ है, तो आपको लोगों की कमियों को पहचानने, उन्हें उसका एहसास करवाने और बेहतर या सही बनाने के स्थान पर रिश्तों को बेहतर बनाने पर फ़ोकस करना होगा। आईए, आज हम रिश्तों को बेहतर बनाने के 3 प्रमुख सूत्रों को समझते हैं-

पहला सूत्र - स्वीकारें अर्थात् एक्सेप्ट करें 
अक्सर जब कोई रिश्ता हमारी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है तो हम उस व्यक्ति की कमियाँ निकालते हुए उसे सुझाव देना शुरू कर देते हैं। इन सुझाव के पीछे हमारा एक ही मक़सद होता है, ‘सामने वाले के अंदर हमारी अपेक्षाओं के अनुसार बदलाव।’ अगर वह व्यक्ति आपके सुझाव के अनुसार बदलाव नहीं लाता है तो आपसी टकराव शुरू होता है और धीरे-धीरे यही टकराव मनमुटाव बन रिश्तों को ख़राब करने लगता है।

इससे बचने के लिए सामने वाले की ग़लतियों को निकालकर उसे सुधारने के लिए सुझाव देने के स्थान पर खुद से प्रश्न पूछें, पहला, ‘आपके लिए क्या महत्वपूर्ण है, रिश्ता या सामने वाले व्यक्ति का आपके अनुसार होना?’ दूसरा, ‘क्या आप इस रिश्ते को छोड़ जीवन में आगे बढ़ सकते हैं?’ अगर आपका जवाब, ‘रिश्ता महत्वपूर्ण है’, आता है तो व्यक्ति को बदलने का प्रयास करने के स्थान पर उसे स्वीकारें।

दूसरा सूत्र - समायोजित अर्थात् एडजस्ट करें 
जब आप व्यक्ति को उसकी कमियों के साथ स्वीकारते हैं तो उसकी कई आदतें, कमियाँ, ग़लतियाँ आपको विचलित करती हैं, परेशान करती हैं, उनके साथ एडजस्ट करें। पूर्व में सामान्यतः आप इस तरह की ग़लतियों पर अपना रीऐक्शन दिया करते थे, लेकिन अब आप मुस्कुराते हुए उन्हें, उनकी आदतो के साथ स्वीकार रहे हैं। यह परिवर्तन उन्हें खुद में बदलाव लाने, आपको प्राथमिकता देने में मदद करेगा।

तीसरा सूत्र - प्रशंसा अर्थात् अप्रीशीएट करें 
दोस्तों, जब आप लम्बे समय तक एडजस्ट करते हैं तो आप अपने अंदर ग़ुस्सा, नकारात्मकता इकट्ठा करते जाते हैं। जब यह ग़ुस्सा या नकारात्मकता सीमा पार कर जाता है तो सामान्यतः हमारा ग़ुस्सा ब्लास्ट हो जाता है। इससे बचने के लिए समय के साथ व्यक्ति के स्वभाव, कार्य करने के तरीक़े में बदलाव आवश्यक हो जाता है। लेकिन हमें यह बदलाव रोक-टोक कर लाने के स्थान पर तारिफ़ की भूख पैदा कर लाना होगा। इसलिए सामने वाले व्यक्ति की कमियों पर ध्यान देने के स्थान पर छोटी-छोटी अच्छाई को पहचानें और उसकी तारीफ़ करें। आपके स्वभाव में आए बदलाव और उस व्यक्ति के अंदर पैदा हुई तारीफ़ की भूख उस व्यक्ति को अपने अंदर आपकी अपेक्षानुसार बदलाव लाने के लिए प्रेरित करेगी ।

आशा करता हूँ दोस्तों, उपरोक्त तीन सूत्रों का प्रयोग कर आप रिश्तों को बेहतर बनायेंगे और अप्रेल माह की गर्मी अर्थात् ग्रीष्म ऋतु का स्वागत दिलों में गरमाहट लाकर करेंगे।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com