फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, 84 लाख योनियों में से सर्वश्रेष्ठ योनि में इंसान के रूप में जन्म लेना वैसे तो अपने आप में ही ईश्वर द्वारा हमें मिला सर्वोत्तम ईनाम है। लेकिन अक्सर आप देखेंगे कि ज़्यादातर लोग इस सर्वश्रेष्ठ योनि में जन्म लेने के बाद भी विपरीत परिस्थितियाँ या चुनौतियाँ आने पर क़िस्मत को दोष देते हुए, हार मान बैठ जाते हैं। लेकिन इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो तमाम विपरीत स्थितियों के बाद भी अपना जीवन ख़ुशी-ख़ुशी जीते हैं।

दोस्तों, अगर आप गहराई से देखेंगे तो आप पाएँगे कि सफलता और असफलता के बीच का यह अंतर सिर्फ़ और सिर्फ़ मनःस्थिति के वजह से आया है। जी हाँ साथियों, अपनी मनःस्थिति के वजह से ही इस दुनिया में कुछ लोग सुख-सुविधा के तमाम संसाधन उपलब्ध होने के बाद भी अपना जीवन परेशान या दुखी रहते हुए बिताते हैं और कुछ लोग तमाम परेशानियों या विपरीत परिस्थितियों के बीच भी खुश रह लेते हैं। संक्षेप में कहूँ तो साथियों, परिस्थिति से कहीं अधिक हमारा सुख हमारी मनःस्थिति पर निर्भर करता है। चलिए, अपनी बात को मैं हाल ही में पढ़ी एक बहुत प्यारी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-

पहाड़ों से नीचे गिरती नदी आज कुछ ज़्यादा ही तेज़ वेग से बह रही थी। इसी वजह से कई बार उसका पानी उछलकर नदी किनारे लगे एक वृक्ष से टकरा रहा था। ऐसी ही एक लहर के पेड़ से टकराते समय उस वृक्ष के दो पत्ते टूटकर नदी में गिर पड़े। नदी में गिरते ही पहले पत्ते को ग़ुस्सा आ गया। उसे लग रहा था कि इस स्थिति के लिए नदी का तेज़ बहाव ज़िम्मेदार है। वह उस नदी को दोष देते हुए, जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ‘नदी तुझे अपने वेग पर बहुत घमंड है ना, देख अब मैं अपनी शक्ति से तेरे इस तेज़ बहाव को किस तरह रोकता हूँ। भले ही आज इस प्रयास में मुझे खुद ही क्यूँ ना मिटना पड़े पर मैं हार मानने वाला नहीं हूँ। आज मैं तुझे आगे नहीं बढ़ने दूँगा।’ इतना कहते हुए वह पत्ता अपनी ओर से नदी को रोकने का हर सम्भव प्रयास कर रहा था और इसी वजह से अत्यधिक संघर्ष के साथ काफ़ी कष्ट सहते हुए, नदी के बहाव के साथ बह रहा था। दूसरी ओर नदी को उस पत्ते की बातों से क्या फ़र्क़ पड़ना था? वह तो अभी भी अपनी मस्ती में बहे जा रही थी। असल में तो उसे पता भी नहीं था कि  कोई पत्ता उसे रोकने का प्रयास भी कर रहा है।

वहीं दूसरा पत्ता, जो पहले पत्ते के साथ ही नदी में गिरा था, इसे अवसर मान नदी के बहाव के साथ मज़े में बहने लगा। हालाँकि वह भी नदी से बात करते हुए कह रहा था, ‘चल नदी आज मैं तुझे तेरे गंतव्य स्थान ‘सागर’ तक पहुँचाकर ही दम लूँगा। फिर चाहे तेरे मार्ग में कोई भी अवरोध क्यूँ ना आ जाए, मैं सभी से निपट लूँगा और तुझे सागर तक पहुँचाकर ही दम लूँगा। वैसे नदी को इस पत्ते के बारे में भी कुछ नहीं पता था। पर पत्ता तो इसके बाद भी आनंदित था, वह तो यही समझ रहा था कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है।

पर हाँ, दोनों पत्तों की अपनी सोच ने उनकी स्थिति में एक बड़ा अंतर पैदा ज़रूर कर दिया था। जहाँ दूसरा पत्ता मज़े से बहाव के साथ बह रहा था, वहीं पहला पत्ता अपने जीवन को दांव पर लगाकर संघर्ष कर रहा था। पहला पत्ता जानता ही नहीं था कि  इतने संघर्ष या तकलीफ़ उठाने के बाद भी वह, वहीं पहुँचेगा, जहाँ दूसरा पत्ता मज़े के साथ पहुँचने वाला है। पहला पत्ता जो नदी के साथ लड़ रहा था, उसे रोकने का प्रयास कर रहा था, उसकी जीत की कोई सम्भावना ही नहीं थी। इसके विपरीत जो पत्ता नदी के साथ यह सोचते हुए बह रहा था कि वह नदी को बहा रहा है, के हारने की कोई सम्भावना ही नहीं थी।

दोस्तों, हमारा जीवन भी इस नदी के सामान है जिसमें सुख और दुःख नाम की दो तेज धाराएँ बहती हैं। जो इंसान इन दो धाराओं को रोकने का प्रयास करता है, वह मूर्खों की तरह व्यवहार करता है क्यूँकि यह जीवन किसी के लिए रुकता नहीं है। ठीक इसी तरह सुख की धारा को रोकना और दुःख की धारा को जल्दी सागर तक छोड़ना भी सम्भव नहीं है। असल में सुख की धारा हो, या दुःख की, वह उतने दिन ही बहेगी जितने दिन उसे बहना है। दोस्तों, जब आपके हाथ में उसे रोकना या बहाना है ही नहीं, तो इस बारे में सोचकर परेशान क्यूँ होना। सीधे शब्दों में कहूँ तो आपके जीवन में सुख और दुःख दोनों की धाराएँ अपने आप आती रहेंगी। आप इन धाराओं को रोक नहीं सकते हो। इसलिए दोस्तों, दूसरे पत्ते की तरह जीवन में जो भी सामने आ रहा है उसे स्वीकारते हुए ऐसे आगे बढ़ते जाओ, जैसे जीवन आपको नहीं बल्कि आप जीवन को चला रहे हो। जी हाँ दोस्तों, जब आप जीवन में ऐसी सहजता के साथ चलना सीख जाएँगे तो जीवन में सुख क्या और दुःख क्या? फिर तो बस मौज ही मौज है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com