फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


बच्चों की काउन्सलिंग के दौरान कई बार ऐसा लगता है मानो काउन्सलिंग की असल ज़रूरत बच्चे को नहीं अपितु माता-पिता को है। हाल ही में ऐसा ही एक मामला मेरे सामने आया जिसमें माता-पिता का मानना था कि उनका बच्चा हर तरह से समझाने के बाद भी एक ही जैसी गलती बार-बार दोहरा रहा है। जब मैंने उनसे इस विषय में गहराई से चर्चा करी तो मुझे एहसास हुआ कि वे बच्चे को हमेशा आदर्श स्थिति अर्थात् आईड़ियल कंडीशन के बारे में बताते या टोकते रहते हैं। लेकिन उन्होंने कभी भी गहराई में जाकर समस्या की जड़ तक पहुँचने का प्रयास नहीं करा। मेरा मानना है दोस्तों, कि कोई भी ग़लत आदत या बुराई आदर्श बातें बताने या ऊपरी तौर पर समाधान बताने से खत्म नहीं होती। मैंने बच्चे से बात करने से पहले माता-पिता को यह बात समझाने का निर्णय लिया और उन्हें एक कहानी सुनाई, जो इस प्रकार थी-

बात कई दशक पूर्व की है, रामसिंघ के घर के सामने अपने आप ही एक पौधा उग आया। रामसिंघ ने उस पौधे को समय-समय पर पानी देना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से उस पौधे ने जल्द ही एक पेड़ का रूप ले लिया। पेड़ को देख रामसिंघ काफ़ी खुश रहने लगा। सर्दियों का मौसम आते-आते उस पेड़ में फल लगने शुरू हो गए। एक दिन पेड़ की छाँव में एक कुत्ता बैठा हुआ था, तभी पेड़ की ड़ाल से एक पका हुआ फल टूट कर नीचे गिर गया। उस कुत्ते ने जैसे ही उस फल को खाया उसकी मृत्यु हो गई। रामसिंघ ने इसे देखकर भी अनदेखा कर दिया। कुछ ही दिन और बीते होंगे कि वहाँ से गुजरते एक राहगीर ने पेड़ पर लगे पके फल को तोड़कर खाना शुरू कर दिया। कुछ ही मिनटों में उस राहगीर की भी मौत हो गई। अब रामसिंघ को समझ आ गया कि हो ना हो इस पेड़ के फल ज़हरीले होंगे। उसने तुरंत एक माली को बुलवाया और उस पेड़ के सभी फलों को तुड़वाकर नष्ट करवा दिया।

अब रामसिंघ निश्चिंत और खुश था, लेकिन उसकी यह ख़ुशी ज़्यादा दिन तक नहीं चली। कुछ ही सप्ताह में उस पेड़ पर एक बार फिर फल आने शुरू हो गए। रामसिंघ थोड़ा चिंतित तो हुआ लेकिन उसने ज़्यादा परेशान होने के स्थान पर, इस बार पेड़ की सभी शाख़ों को कटवा दिया। अर्थात् पेड़ की सभी ड़ंगालों को फल और पत्तियों सहित कटवा दिया और निश्चिंत हो कर बैठ गया। लेकिन इस बार भी पहले की ही तरह कुछ माह में ही पेड़ पर फिर से पत्तियाँ और फल आ गए। रामसिंघ की चिंता थोड़ी बढ़ गई, उसने इस समस्या से निजात पाने के लिए पेड़ को उसके मुख्य तने से कटवा दिया। इस बार उसे लगा की उसने समस्या पर विजय हासिल कर ली है। लेकिन यह क्या कुछ माह बाद ही पेड़ पर वापस से नई शाख़, पत्तियाँ और उसके बाद फल आने लग गए।

मैंने कहानी को यहीं विराम दिया और उस बच्चे के माता-पिता की ओर मुख़ातिब होते हुए बोला, ‘कहीं यह पेड़ जादुई तो नहीं है, जो खत्म करने के प्रयास करने के बाद भी बार-बार उग जाता है?’ प्रश्न करने के पश्चात कुछ पलों के लिए मैं चुप ही रहा और उनकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा। वे कुछ नहीं बोले तो मैंने ही बात आगे बढ़ाते हुए उनसे प्रश्न करा, ‘मुझे लगता है, कोई पेड़ जादुई तो नहीं हो सकता, पर क्या आप मुझे बता पाएँगे कि कटवाने के बाद भी उस पेड़ पर बार-बार पत्तियाँ और फल क्यों आ रहे थे?’ मेरे प्रश्न से शायद उनके सब्र का बांध टूट गया और वे लगभग चिढ़ते हुए बोले, ‘जब तक आप पेड़ को जड़ से नहीं काटेंगे, तब तक वह बार-बार पनप जाएगा अर्थात् उस पर फ़ूल, पत्ती, फल इत्यादि बार-बार आएँगे।’ उनकी बात सुनते ही मैं मुस्कुराया और बोला, ‘मैं भी आपको यही समझाने का प्रयास कर रहा हूँ। बच्चे को गलती करने या ग़लत आदतों, बुराइयों पर टोकने से कुछ नहीं होगा। यह तो ऊपरी तौर पर पेड़ों की छँटाई समान है। अगर आप वाक़ई उसे बुराइयों से दूर करना चाहते हैं, उसकी ग़लत आदतें छुड़वाना चाहते है तो आपको उनकी जड़ों को पहचानना होगा, उन्हें नष्ट करना होगा। अर्थात् आपको हर उस कारण को पहचानना होगा जिसकी वजह से बच्चा बार-बार उन्हीं बातों की ओर आकर्षित हो रहा है, जिसे छोड़ने के लिए उसे समझाया जा रहा है।

लेकिन यहाँ दोस्तों मैं एक बात और स्पष्ट करना चाहता हूँ, जड़ में आपको हमेशा बच्चा ग़लत नहीं मिलेगा कई बार उसकी बुराइयों या ग़लतियों या ग़लत आदतों की वजह बड़ों की ग़लत अपेक्षाएँ भी होती हैं। जैसे, उसकी क्षमताओं से अधिक परिणाम की आशा रखना और उसकी तुलना दूसरों से करना, आदि।

जी हाँ दोस्तों, जब तक बुराई की जड़ हमारे मन में होती है, तब तक हमारे व्यवहार, हमारे कर्मों में ज़हरीले फल आते ही रहेंगे। अगर आप इससे बचना चाहते है, तो आपको इसकी जड़ों को पहचानकर नष्ट करना होगा।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com