फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, हमारा समाज, हमारी संस्कृति हमें रिश्ते तोड़ अलग होना नहीं बल्कि रिश्ते की गरिमा बरकरार रखते हुए उसे निभाना सिखाता है। इसी वजह से हमें सिखाया जाता है कि रिश्तों में कौन सही है और कौन ग़लत, से ज़्यादा महत्वपूर्ण रिश्ता होता है। जैसा मैंने अपने कल के लेख में बताया था रिश्तों में कड़वाहट और दूरी की पहली और सबसे बड़ी वजह सामने वाले से अपेक्षा रखना और पूरा ना होने पर अपनी अपेक्षाओं के अनुसार सामने वाले को गलती का एहसास करवाकर, बदलने का प्रयास करना होती है। 

समय के साथ हमारी यही अपेक्षा बढ़ती जाती है और साथ ही दूरियाँ भी। हम भूल जाते हैं कि किसी और को बदलना हमारे हाथ में है ही नहीं। हाँ सिर्फ़ एक सम्भावना बचती है, आप खुद को बदलें और आप में आया बदलाव, समय के साथ सामने वाले को बदल दे। इसे मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ- 
 
बहुत साल पहले रामगढ़ में एक वृद्ध, पहुंचे हुए साधु का आगमन हुआ। साधु सुबह और शाम अपने प्रवचन से लोगों को जीवन जीना सिखाया करते थे। धीरे-धीरे पूरे इलाक़े में उनकी बताई बातों के चर्चे होने लगे और उनकी प्रसिद्धि पूरे इलाक़े में फैलने लगी। एक दिन एक महिला उनके पास पहुँची और अपनी समस्या उन्हें बताते हुए बोली, ‘महाराज!, मैं बहुत दुखी और पीड़ित हूँ, मेरा पति, पहले तो मुझे बहुत प्यार किया करता था। लेकिन घर की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उसे दूसरे शहर जाकर काम करना पड़ा। धीरे-धीरे समय के साथ जब पारिवारिक स्थिति अच्छी हुई तो वह वापस घर लौट कर आ गया लेकिन तब से हमारे रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे। मेरा पति अब मुझसे प्यार तो छोड़ो ढंग से बात तक नहीं करता है। अब हम दोनों एक दूसरे से लड़ते-झगड़ते ही रहते है। मैंने सुना है आप की बातें, दी गई जड़ी-बूटियाँ इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है। कृपया मेरी मदद करें।’

महात्मा ने पूरी बात ध्यान से सुनी और फिर गम्भीरता के साथ बोले, ‘देवी, तुम्हारी समस्या का समाधान तो मैं कर सकता हूँ लेकिन उसके लिए मुझे शेर की मूँछ का एक बाल लगेगा।’ महिला महात्मा की बात सुनकर बोली, ‘महाराज, हालात इतनी ख़राब है कि मुझे शेर की मूँछ का बाल लाना भी आसान लग रहा है। मैं इसे अवश्य लेकर आ जाऊँगी।’ 

इतना कहकर वह महिला साधु को प्रणाम कर चली गई। अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल की ओर चल पड़ी। काफ़ी प्रयास के बाद, ढलती शाम के वक्त उसे नदी किनारे, पेड़ की छाँव में एक बाघ सुस्ताता हुआ दिखा। महिला ने उसके पास जाने का प्रयास करा लेकिन बाघ की ज़ोरदार दहाड़ सुन वह उल्टे पैर वहाँ से भाग खड़ी हुई।

अगले दिन बड़ी हिम्मत करके उसने एक बार फिर से प्रयास करने का निर्णय लिया और एक बार फिर बाघ के समीप तक पहुँच गई। लेकिन इस बार भी उसकी दहाड़ से घबराकर वहाँ से भाग खड़ी हुई। अगले कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा, महिला हिम्मत करके बाघ के पास तक पहुँचती लेकिन उसकी दहाड़ सुन वापस लौट जाती। बीतते समय के साथ शेर को महिला की मौजूदगी से फ़र्क़ पड़ना कम हो गया, एक प्रकार से उसे उसकी मौजूदगी की आदत सी पड़ गई। अब उसकी दहाड़ पहले जैसी नहीं थी।

डर कम होने की वजह से महिला अब शेर के लिए मांस लाने लगी। शेर को भी बिना मेहनत के मांस की आदत पड़ गई थी, अब वह महिला के आने का बेसब्री से इंतज़ार करता था और उसके आते ही बड़े चाव से मांस खाया करता था। दोनों की दोस्ती बढ़ती जा रही थी, अब महिला शेर के एकदम समीप जाकर उसे मांस दिया करती थी और साथ ही उसे सहलाया भी करती थी। 

एक दिन शेर को सहलाते-सहलाते उसने शेर की मूँछ का एक बाल तोड़ लिया और उसे लेकर महात्मा के पास पहुँच गई और शेर की मूँछ की बाल उन्हें देते हुए बोली, ‘महात्माजी!, यह लीजिए मैं शेर की मूँछ का बाल ले आई। अब जल्दी से मुझे पति को ठीक करने के लिए दवा बनाकर दे दीजिए। महात्मा ने उसके हाथ से बाल लेते हुए कहा, ‘बहुत बढ़िया, तुम्हारा काम हो जाएगा। पहले यह बताओ तुम यह बाल लायी कैसे?’ महिला ने पूरा क़िस्सा कह सुनाया।

उसकी बात पूरी होते ही साधु ने बाल को जलती अग्नि में फेंक दिया और बोले, ‘तुम्हारी समस्या का समाधान तुम्हारी बातों में ही छुपा हुआ है। ज़रा सोचो, प्रेम, अच्छा व्यवहार, थोड़ा सा प्रयास और धैर्य के साथ तुम शेर जैसे हिंसक पशु को वश में कर सकती हो तो क्या एक इंसान को नहीं?’

दोस्तों साधु की बात तो एकदम सही थी, जब एक हिंसक पशु को वश में किया जा सकता है तो अपने रिश्ते को तो प्यार, अपनत्व, समर्पण, प्रयास, अच्छा व्यवहार और धैर्य के साथ निश्चित तौर पर बचाया जा सकता है। बस आपको ईगो से बचना होगा और मैं सही हूँ के स्थान पर क्या सही है को चुनना होगा, रिश्तों को महत्व देना होगा।