फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

 
दोस्तों, हाल ही में मुझे एक विद्यालय ने 10वीं से 12वीं तक के छात्रों को सम्बोधित करने के लिए आमंत्रित करा। मैंने विद्यालय के प्राचार्य और प्रबंधन से जब इसका उद्देश्य पूछा तो उनका कहना था, ‘सर, आजकल के बच्चे अपना जीवन बहुत कैज़ूअल तरीके से जीते हैं। वे बड़ी कक्षाओं में आने के बाद भी अपने भविष्य के लिए बिलकुल भी सीरियस नहीं हैं।’ वैसे दोस्तों सामान्यत: हम सभी बड़ों की आजकल के बच्चों के लिए यही राय है। इसी के आधार पर अपने उद्बोधन में मैंने बच्चों को अपने ज्ञान पर आधारित, जीवन को बेहतर बनाने के सूत्र समझा दिए। जिसमें लक्ष्य बनाना, मेहनत करना, ग़लतियों से सीखना, सकारात्मक और सही दृष्टिकोण रखना, समय का सदुपयोग करना, नकारात्मक लोगों और बातों से दूर रहना, बड़ों के अनुभव से सीखना जैसी कई बातें थी। इसी के साथ मैंने उन्हें उदाहरण के रूप में अपने रेडियो शो ‘ज़िंदगी ज़िंदाबाद’, जिसके हाल ही में मैंने 700 शो पूर्ण करें हैं, के विषय में बताया कि कैसे एक छोटे से विचार ने उपरोक्त सूत्रों पर लगातार कार्य करने की वजह से एक बड़ा रूप ले लिया है। 

बच्चों के पार्टिसिपेशन को देख मुझे लग रहा था कि उन्हें मेरा समझाने का तरीक़ा पसंद आया है। अपना उद्बोधन पूर्ण करने के पश्चात, विजयी भाव से मैंने प्राचार्य और प्रबंधक की ओर देखा जिससे मैं उनकी प्रतिक्रिया जान सकूँ, वे बड़े संतुष्ट लग रहे थे। मैंने अपना उद्बोधन समाप्त करते हुए बच्चों की दुविधा को दूर करने के उद्देश्य से उन्हें प्रश्न पूछने का मौक़ा दिया। यक़ीन मानिएगा दोस्तों, बच्चों के पहले पहले प्रश्न ने ही मुझे एहसास करवा दिया कि आज के बच्चों की सोच कितनी सटीक और सही है। वे असल में जीवन बनाने के चक्कर में जीवन खोना नहीं चाहते। जी हाँ दोस्तों, वे अपने जीवन का हर पल, पूरी तरह, सिर्फ़ और सिर्फ़ खुश और मस्त रहते हुए जीना चाहते हैं और इसी वजह से किसी भी कार्य को करने से पूर्व वे सुनिश्चित हो जाना चाहते हैं कि वह उनके पसंद का हो। हो सकता है दोस्तों, उनका तरीक़ा हमारी सोच के मुताबिक़ सही ना हो, लेकिन जीवन को लेकर उनका नज़रिया एकदम स्पष्ट है। 

चलिए आगे बढ़ने से पहले हम बच्चे के प्रश्न को जान लेते हैं। एक बच्चे ने मुझसे कहा, ‘सर, 700 एपिसोड में तो आपने बहुत सारी बातें बताई होंगी और सभी को जीवन में उतारना आसान नहीं होगा। अगर आपको उन सभी बातों में से सिर्फ़ किसी एक को ही चुनने का मौक़ा मिले तो वह कौन सी होगी।’  दोस्तों सुनने में साधारण सा दिखने वाला प्रश्न मेरी नज़र में बहुत गहराई रखता है, असल में उस बच्चे ने आपसे आपके जीवन, आपके अनुभव का पूरा निचोड़ पूछ लिया था। मैंने कुछ पल विचार करते हुए उसे कहा, ‘खुद से प्यार करना!’

दोस्तों यक़ीन मानिएगा, उस दिन इस विचार के आते ही मैंने अपने अंदर एक बड़ा बदलाव महसूस किया। मैं सोच रहा था अगर मैं, ‘खुद से प्यार करने’ के विषय में सोच रहा हूँ तो यह बड़े-बड़े लक्ष्य को पाने के लिए खुद से पहाड़ों जैसी अपेक्षायें क्यों? अगर किसी दिन आप को लक्ष्य रूपी पहाड़ चढ़ पाना बहुत मुश्किल या असम्भव लग रहा है, तो उसे आज छोड़ दो। क्या फ़र्क़ पड़ता है? उसकी जगह एक छोटी सी पहाड़ी चढ़ो, और उसकी ख़ुशी बनाओ। अगर कोई सुबह आपके लिए उदासी लेकर आ रही है तो भी चिंता की कोई बात नहीं है उस दिन देर तक सो लो।

दूसरे शब्दों में कहूँ तो दोस्तों असम्भव से लगने वाले लक्ष्यों को पाने के लिए बनाई गई योजनाएँ अगर आपको अभिशाप लग रही है तो खुद को परेशान करने के स्थान पर योजनाओं में परिवर्तन करो। योजनाओं में परिवर्तन करना कोई बुरा या शर्म का काम नहीं है। बल्कि यह तो खुद को व्यवस्थित करने की दिशा में उठाया गया कदम है। यह आपकी वापसी सही तरीके से सुनिश्चित करता है। खुद को नकारात्मक भावों के भँवर जाल में उलझाने से बेहतर है, समय से बदलाव कर उससे बचना और वैसे भी आपके लिये और कोई उपाय भी नहीं है क्यूँकि आप स्वयं को प्यार करते हो और यही तो दोस्तों, आज के युवा खुद के लिए कर रहे हैं।

आईए, आज से एक निर्णय लेते हैं अंधी दौड़ में भागने के स्थान पर जीवन जीने के लिए हर पल का मज़ा लेते हुए थोड़ा धीमी गति से आगे बढ़ते हैं।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com