फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


समय की कसौटी पर परखे हुए 10 निम्न सूत्रों से - भाग 2

दोस्तों, आपने निश्चित तौर पर देखा होगा कि तेज़ी से बदलती इस दुनिया के प्रभाव में हम बच्चों में वह संस्कार या आदतें विकसित नहीं कर पा रहे हैं जिनके साथ हमने या हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन को बेहतर बनाया था, उसे 100% पूर्णता के स्तर पर खुलकर जिया था। इसकी मुख्य वजह मुझे चकाचौंध के बीच हमारा भटकाव नज़र आता है। जी हाँ दोस्तों, मैं सही कह रहा हूँ, स्वच्छंदता और अपनी सोच और मूल्यों के साथ जीवन जीने की चाहत की वजह से बहुत सारी जागृत संस्कृतियाँ एक साथ चल रही हैं और इसी वजह से लोकाचार, शिष्टाचार और संस्कार पीछे छूटते नज़र आ रहे हैं। आज, ‘क्या सही है’ के स्थान पर ‘क्या ट्रेंडी है’ ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। पुराने समय में जिसे धोखाधड़ी, जालसाज़ी या बेईमानी माना जाता था, उसे आजकल ‘स्मार्टनेस’ या ‘स्ट्रीट स्मार्टनेस’ से जोड़कर देखा जा रहा है। जैसे, असभ्य होने को साहसी या मुखर राय रखने वाला माना जा रहा है। इस अनावश्यक बदलाव से साथियों हम एक नए ख़तरे को न्योता दे रहे हैं जो आने वाले समय में पूरी इंसानियत को प्रभावित करेगी। अगर साथियों, समय रहते हमने नई पीढ़ी को सही परवरिश और शिक्षा से बचा लिया तो वे हमारी संस्कृति को जीवित रख पाएँगे। इसी को ध्यान में रखते हुए कल हमने बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए आवश्यक, समय की कसौटी पर परखे हुए 10 सूत्रों में से प्रथम 3 सूत्रों को सीखा था। आईए, आगे बढ़ने से पहले उन्हें संक्षेप में दोहरा लेते हैं।

1. पढ़ाएँ विनम्रता का पाठ 
अपने बच्चे को सिखाए कि विनम्र रहना कोई कला नहीं है, जिसका समय या स्थिति के अनुसार प्रदर्शन या प्रयोग करना सफल बनाता है। बल्कि यह तो जीवन को पूर्णता के साथ खुलकर जीने का एक तरीका है। असभ्य होकर कार्य निकालना सिखाने के स्थान पर उन्हें बड़ों को संबोधित करना, उनके सवालों के शांति के साथ जवाब देना, सही सही बॉडी लैंग्वेज का प्रयोग करना सिखाना होगा जिससे वे सम्मान करना, दयालु बनना और सभी जीवों के साथ सहानुभूति रखना सीख सकें।

2. सिखाएँ जादुई शब्दों का प्रयोग  
शब्द 'धन्यवाद, कृपया, माफ़ी, क्षमा करें जैसे जादुई शब्दों का प्रयोग करना सिखाएँ। शुरू में यह बच्चों को थोड़ा अटपटा लग सकता है लेकिन यदि समय के साथ आपका बच्चा अगर यह सीखता है, तो वह किसी भी इंसान के दिल में अपना स्थान बना सकता है। वाक़ई दोस्तों, यह जादुई शब्द बहुत ही छोटे हैं लेकिन यक़ीन मानिएगा, हैं बहुत कारगर।

3. सिखाएँ नमस्कार करना
अभिवादन की संस्कृति आज अप्रचलित या लुप्त होती जा रही है। क्या आप जानते हैं कि अभिवादन केवल वृद्ध लोगों को सम्मान देने का एक तरीका नहीं है, यह सामाजिक रूप से बुद्धिमान बच्चे की परवरिश का पहला कदम है। उन्हें अभिवादन करने का सही समय, सही हावभाव, शरीर की भाषा आदि सिखाएं।
आज के लिए इतना ही दोस्तों, कल हम अपनी संस्कृति को ज़िंदा रखने के लिए आवश्यक 10 सूत्रों में से अगले 4 सूत्र सीखेंगे।

चलिए दोस्तों, अब हम अगले 3 सूत्र सीखते हैं -

4. सिखाएँ अपनी बात रखने का सही तरीक़ा 
अक्सर आपने देखा होगा बच्चे अपनी बात कहने या अपना मत रखने के लिए बड़े उतावले होते हैं और इसी वजह से वे बिना सोचे-समझे बड़ों या अन्य लोगों की बातों के बीच में बाधा डालते हैं। बच्चों का यह व्यवहार अक्सर दूसरों के लिए असुविधाजनक या परेशानी वाला होता है। इससे बचने के लिए बच्चों को दो लोगों की बातचीत के बीच अपनी बात कहने का सही तरीक़ा सिखाएँ। जैसे, अगर किसी अन्य की बातचीत में आपके लिए कुछ कहना बहुत ही ज़रूरी है तो ‘एक्सक्यूज़ मी’ कहकर बात की शुरुआत करें और अगर आपकी बात अति महत्वपूर्ण नहीं है तो शांति के साथ धैर्य रखते हुए प्रतीक्षा करें।

5. सिखाएँ भावपूर्ण संवाद 
दोस्तों, वार्तालाप के दौरान सही शब्दों का चयन, ऊर्जा, भाव, बॉडी लैंग्वेज आदि सभी का अपना महत्व होता है। अगर आप अपने वार्तालाप के उद्देश्य के अनुसार इसका उपयोग कर रहे हैं तो आपके लिए दूसरों पर प्रभाव डालना आसान होगा। इसलिए उन्हें सही शब्दों का चयन, वॉयस टोन, ऊर्जा, भाव, बॉडी लैंग्वेज आदि के बारे में सिखाएँ। 

6. मन या ध्यान भटकाने वाली बातों से बचना सिखाएँ 
निश्चित तौर पर आपने देखा होगा नई पीढ़ी ब्रांड, डिजिटल उपकरणों या मोबाइल गेम, घर, गाड़ी, बंगला, पैसे इत्यादि के बीच भटकी हुई है। उनके लिए सफलता का अर्थ इन्हीं चीजों को पाना हो गया है। इसीलिए वे सही क़ीमत पर सफलता नहीं बल्कि किसी भी क़ीमत पर सफलता के पक्षधर हो गए हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें यह सिखाना कि ‘हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती’ अतिआवश्यक हो गया है। अगर आप अपने बच्चों को इससे बचाना चाहते हैं तो आपको उन्हें नैतिकता सिखाना होगी। इसके साथ ही हमें उन्हें सिखाना होगा कि उनकी सफलता, उनके पास उपलब्ध संसाधन से नहीं बल्कि उनके व्यवहार और इंसानियत से नापी जाएगी।

आज के लिए इतना ही दोस्तों, कल हम बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए आवश्यक, समय की कसौटी पर परखे हुए 10 सूत्रों में से बचे हुए अंतिम चार सूत्र सीखेंगे।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com