फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


दोस्तों, अपनी सोच व मूल्यों के साथ स्वच्छंदता से जीवन जीने की चाहत ने बहुत सारी ‘जागृत’ संस्कृतियों को एक साथ जन्म दिया है और इसी वजह से लोकाचार, शिष्टाचार और संस्कार पीछे छूटते नज़र आ रहे हैं। आज, ‘क्या सही है’ के स्थान पर ‘क्या ट्रेंडी है’ ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। पुराने समय में जिसे धोखाधड़ी, जालसाज़ी या बेईमानी माना जाता था, उसे आजकल ‘स्मार्टनेस’ या ‘स्ट्रीट स्मार्टनेस’ से जोड़कर देखा जा रहा है। जैसे, असभ्य होने को साहसी या मुखर राय रखने वाला माना जा रहा है। इस अनावश्यक बदलाव से साथियों हम एक नए ख़तरे को न्योता दे रहे हैं जो आने वाले समय में पूरी इंसानियत को प्रभावित करेगी। इसी को ध्यान में रखते हुए कल तक हमने बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए आवश्यक, समय की कसौटी पर परखे हुए 10 सूत्रों में से प्रथम 6 सूत्रों को सीखा था। आईए, आगे बढ़ने से पहले उन्हें संक्षेप में दोहरा लेते हैं।

1. पढ़ाएँ विनम्रता का पाठ 
विनम्र रहना कोई कला नहीं है, जिसका समय या स्थिति के अनुसार प्रदर्शन या प्रयोग आपको सफल बना दे। बल्कि यह तो जीवन को पूर्णता के साथ खुलकर जीने का एक तरीका है। बच्चों को सिखाएँ कि बड़ों को किस तरह संबोधित किया जाता है या उनके सवालों का शांति और सही बॉडी लैंग्वेज के साथ किस तरह जवाब दिया जाता है।  जिससे वे सम्मान करना, दयालु बनना और सभी जीवों के साथ सहानुभूति रखना सीख जाएँ।

2. सिखाएँ जादुई शब्दों का प्रयोग  
बच्चों को 'धन्यवाद, कृपया, माफ़ी, क्षमा करें जैसे जादुई शब्दों का प्रयोग करना सिखाएँ। शुरू में यह उन्हें थोड़ा अटपटा लग सकता है। लेकिन समय के साथ आपका बच्चा अगर यह सीखता है, तो वह किसी भी इंसान के दिल में, अपना स्थान बना सकता है। वाक़ई दोस्तों, यह जादुई शब्द बहुत ही छोटे हैं लेकिन यक़ीन मानिएगा, हैं बहुत कारगर।

3. सिखाएँ नमस्कार करना
अभिवादन केवल वृद्ध लोगों को सम्मान देने का एक तरीका नहीं है, यह सामाजिक परिवेश में बच्चे की परवरिश का बुद्धिमत्ता पूर्ण पहला कदम है। इसलिए बच्चों को अभिवादन करने का सही तरीक़ा, समय, हावभाव, शरीर की भाषा आदि सिखाएं।

4. सिखाएँ अपनी बात रखने का सही तरीक़ा 
बच्चों द्वारा उतावलेपन से अपनी बात कहना या मत रखना अक्सर दूसरों के लिए असुविधाजनक या परेशानी वाला होता है। इससे बचने के लिए बच्चों को दो लोगों की बातचीत के बीच अपनी बात कहने का सही तरीक़ा सिखाएँ। जैसे, बीच में बोलते वक्त ‘एक्सक्यूज़ मी’ का प्रयोग करना।

5. सिखाएँ भावपूर्ण संवाद 
वार्तालाप के दौरान सही शब्दों का चयन, ऊर्जा, भाव, बॉडी लैंग्वेज आदि सभी का अपना महत्व होता है। इसके प्रयोग से आप दूसरों पर आसानी से प्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए बच्चों को सही शब्दों का चयन, वॉयस टोन, ऊर्जा, भाव, बॉडी लैंग्वेज आदि के बारे में सिखाएँ। 

6. मन या ध्यान भटकाने वाली बातों से बचना सिखाएँ 
तकनीकी और भौतिक संसाधनों के बीच अक्सर हमें नई पीढ़ी भटकी हुई नज़र आती है। उनके लिए सफलता का अर्थ इन्हीं चीजों को पाना हो गया है। इसीलिए वे सही क़ीमत पर सफल होने के स्थान पर किसी भी क़ीमत पर सफल होना चाहते हैं। नैतिकता सिखाना बच्चों को इससे बचाता है।

चलिए दोस्तों अब हम अंतिम 4 सूत्र सीखते हैं-

7. ध्यान आकर्षित करने का सही तरीक़ा सिखाएँ 
सामान्यतः देखा गया है कि जो बच्चे सही समय या तरीके से अपनी बात नहीं रखते वे लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते और समाज से कट जाते हैं। यह स्थिति अक्सर उन्हें ग़लत तरीके का प्रयोग कर दूसरों को आकर्षित करने के लिए मजबूर करती है। जैसे, छोटे बच्चे ग्लास या सामान फेंककर या तोड़कर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। इससे बचने के लिए हमें उन्हें माफ़ी माँग कर लोगों का ध्यान आकर्षित करना सिखाना होगा।

8. राय व्यक्त करने का सही तरीक़ा सिखाएँ 
बदलते समय के साथ हमारी प्राथमिकताएँ, सोच, धारणाएँ आदि सब बदली। बदली हुई इस सोच के कारण ही हमारी और नई पीढ़ी की सोच का अंतर बढ़ता जा रहा है। सोच का यही अंतर हमारी राय और धारणा को बच्चों से अलग बनाता है। इसलिए समय रहते उन्हें सिखाना की कब और कैसे वे किसी वस्तु या व्यक्ति के बारे में अपनी राय व्यक्त करें।

9. उन्हें फोन कॉल शिष्टाचार सिखाएं
आधुनिक संचार प्रणाली ने जहाँ संवाद के तरीके को सरल और तेज़ बनाया है वहीं परिवार या रिश्तेदारों या फिर दो पीढ़ियों के बीच दूरियों को बढ़ा भी दिया है । पहले जहाँ चार लोग साथ बैठते थे वे आपस में चर्चा किया करते थे लेकिन अब घर के चार कोनों में बैठकर मोबाईल चलाया करते हैं।

10. परिवार का महत्व सिखाएँ 
जीवन की भागदौड़ या आपाधापी अथवा भौतिक लक्ष्यों के कारण हम स्वयं परिवार या समाज से दूर हो गए हैं। ऐसे में बच्चों से इसकी आशा रखना एक सपना ही है। इसके स्थान पर अगर हम स्वयं बच्चों और परिवार के प्रति अधिक ज़िम्मेदार हो जाएँ तो हम उन्हें परिवार का महत्व सिखा सकते हैं।   

याद रखिएगा साथियों, बच्चों को बुनियादी बातें या शिष्टाचार सिखाने को अनदेखा करना या सोचना कि ‘समय के साथ सिखा देंगे’ असल में हमें ही भारी पड़ने वाला है। पेरेंटिंग सही मायने में देखा जाए तो शिक्षा का ही पर्याय है, अगर हम उन्हें उपरोक्त 10 नियम नहीं सिखाएँगे तो हम उन्हें जीवन मूल्यों के आधार पर शिक्षित नहीं कर पाएँगे।

एक अन्य रणनीति जिसका आप उपयोग कर सकते हैं वह है भूमिका निभाना, शिक्षण के बाद एक वास्तविक जीवन के अनुभव का अनुकरण करना जिसे वे आपको देखकर सीख सकते हैं। उसका अभ्यास कर सकते हैं और इन शिष्टाचारों में महारत हासिल कर सकते हैं। शिक्षा और अपने बच्चे की ज़रूरतों की देखभाल करने के अलावा, ये छोटे छोटे कौशल भी उस असाधारण बच्चे के जीवन को बेहतर बनाने में काम आ सकते हैं। आप उपरोक्त नियमों का प्रयोग अपने घर में नियमित तौर पर करके अपने बच्चों को और बेहतर बनाएँगे इसी आशा के साथ।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com