फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, ज़िंदगी उतार-चढ़ाव से भरी एक ऐसी पहेली है जिसके बारे में कुछ भी अंदाज़ा लगाना या अपनी बनाई किसी भी योजना पर सौ प्रतिशत चल पाना लगभग असम्भव ही है। इसीलिए मैं ज़िंदगी को ई॰सी॰जी॰ के समान मानता हूँ अर्थात् यह आपको मनमाफ़िक परिणाम देकर कभी ऊपर ले जाती है तो कभी असफलता का स्वाद चखाते हुए नीचे। असफलता के दौर में अर्थात् आशा के विपरीत परिणाम मिलने पर ज़्यादातर लोग बिना गहन चिंतन करे दूसरों को दोषी ठहराना शुरू कर देते हैं। ठीक इसी तरह की स्थिति दोस्तों सुनी-सुनाई बातों के आधार पर धारणा बनाने पर भी निर्मित होती है और अंततः इसका नुक़सान दोष देने वाले व्यक्ति को ही उठाना पड़ता है क्यूँकि धारणा बनाना आपको सही निर्णय से दूर कर देता है। इसे मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-

बात कई वर्ष पुरानी है, एक व्यापारी, व्यापार करने के उद्देश्य से समुद्री रास्ते से जहाज़ में सामान लेकर दूसरे देश से वापस अपने देश आ रहा था। अचानक एक रात उनका जहाज़ समुद्री तूफ़ान में फँस गया। हालाँकि जहाज़ के कप्तान ने अपनी और से पूरा प्रयास करा लेकिन उसके बाद भी उनका जहाज़ समुद्र के बीच मौजूद एक बड़ी चट्टान से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दुर्घटना इतनी भयानक थी कि उस व्यापारी को छोड़, जहाज़ में सवार लगभग सभी लोग मारे गए। व्यापारी की हालत भी बहुत गम्भीर थी, वह घायल हो उसी चट्टान पर बेहोश पड़ा था। लगभग 2-3 दिनों बाद जब उस व्यापारी को होश आया तो वह अपने जहाज़ की हालत देख परेशान हो गया। उसने आस-पास अपने साथियों को खोजने का प्रयास करा, लेकिन जब उसे कोई भी जीवित नहीं मिला तो वह समुद्र को कोसते हुए जोर-जोर से रोने लगा। रोते-रोते वह व्यापारी चिल्ला रहा था, ‘हे समुद्र! पहले तो तुमने एकदम शांत रहते हुए हमें भ्रमित किया। लेकिन जब हम बिलकुल मध्य में पहुँच गए तो तुमने अचानक से रौद्र रूप धारण कर लिया। तुम्हारे रंग बदलते चेहरे की वजह से मैंने अपने सभी साथियों को खो दिया। साथ ही मेरा बहुत सारा नुक़सान भी हो गया। तुम तो पशुओं से भी गए बीते हो, बताओ मासूमों की जान लेकर तुम्हें क्या मिला?’ 

उसके रुदन को सुन समुद्र देवता प्रकट हुए और बोले, ‘वत्स मुझे दोष मत दो, मैं तुम में से किसी की भी जान लेकर क्या करूँगा? मेरा स्वभाव तो एकदम शांत है। मगर मैं क्या करूँ, इन तूफ़ानी हवाओं के कारण मेरा रूप रुद्र हो जाता है। यह तूफ़ानी हवाएँ बिना मेरी अनुमति लिए, लहरों की गति और ऊँचाई बढ़ा देती है। असल में इन तूफ़ानी हवाओं के आक्रमण के कारण ही तुम्हारा इतना नुक़सान हुआ है, इसलिए तुम्हारा असली गुनाहगार मैं नहीं, यह तेज तूफ़ानी हवाएँ हैं।

दोस्तों, जिस तरह व्यापारी ने ग़लत ना होते हुए भी समुद्र को ग़लत माना, अर्थात् बिना सच्चाई जाने समुद्र को दोषी ठहरा कर ग़लत निर्णय लिया, ठीक उसी तरह हम भी मनमाफ़िक परिणाम ना मिलने को अपनी परमनेंट असफलता मान, किसी ना किसी को दोष देना या इल्ज़ाम लगाना शुरू कर देते हैं। इतना ही नहीं दोस्तों, दोष देते या इल्ज़ाम लगाते वक्त अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि ऐसा करना अंततः हमें ही नुक़सान पहुँचाता है क्यूँकि दोष देना बिना सोचे-समझे, बिना गहराई से चिंतन किए, प्रतिक्रिया देना है। सफलता अथवा असफलता के दौर में, बिना गहराई से चिंतन किए, बिना सोचे-समझे, दोष के रूप में प्रतिक्रिया देना, निश्चित तौर पर आपको सच्चाई से दूर ले जाकर, नकारात्मक अनुभव दे, आपके जीवन की दिशा बदल देता है।

दोस्तों, अगर आप हर हाल में जीवन में सफल होना चाहते हैं या बेहतर इंसान बनना चाहते हैं तो आज से ही प्रतिक्रिया देना, धारणा बनाना बंद करें और उसके स्थान पर हर स्थिति-परिस्थिति में सोच-विचार कर निर्णय लेना शुरू कर दें। याद रखिएगा दोस्तों, आपका चिंतन, आपके विचारों को दिशा देता है, यही विचार आपके निर्णय को प्रभावित करते हैं, निर्णय आपके ऐक्शन की दिशा तय करते हैं और सही दिशा में कार्य करना, ऐक्शन लेना आपके जीवन को नई दिशा देकर, सफल बनाता है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com