फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

आप सुबह-सुबह ठंडी और स्वच्छ हवा में धुँध के बीच सुबह की सैर के पश्चात गार्डन में मखमली घास के बिछौने पर, चिड़ियाओं की चहचहाहट और रंग-बिरंगे फूलों की ख़ुशबू के बीच प्रकृति का आनंद ले रहे हों और ऐसे में कोई अनजान आपको गरमा-गर्म चाय ला कर दे दे, तो कैसा लगेगा आपको? निश्चित तौर पर साथियों यह स्थिति सोने पर सुहागा जैसी ही होगी।

ऐसा ही कुछ आज सुबह राजकोट में मेरे साथ हुआ। असल में सुबह उठते ही अपनी आदतानुसार मैंने होटल फ़ॉर्चून पार्क के अपने कमरे की फ़्रेंच विंडो का पर्दा हटाया तो बाहर का मौसम देखते ही घूमने जाने की इच्छा होने लगी। मैंने तुरंत अपने जूते पहने और सैर के लिए निकल पड़ा। घूमते-घूमते मैं एक पार्क में पहुँच गया जहां पहले से ही काफ़ी सारे लोग सैर कर रहे थे।

गार्डन के एक दो चक्कर लगाने के पश्चात मैं वहाँ लगी एक बेंच पर बैठ गया और प्रकृति को निहारने लगा। अभी कुछ ही मिनिट बीते होंगे कि मेरी नज़र एक वृद्ध दम्पत्ति पर पड़ी जो बड़ी खुश-मिज़ाजी के साथ थर्मस में लायी चाय अपने ग्रुप के लोगों को पीला रहे थे। उन्हें देखते ही अनायास मेरे मन में विचार आया कि काश यह चाय मुझे भी मिल जाती तो मज़ा आ जाता।

मेरे मन की यह बात शायद उन तक पहुँच गई वे तुरंत मेरे पास आए और बड़े प्यार से एक कप चाय मेरी और बढ़ाते हुए गुड मॉर्निंग बोले। मैंने दिखावे के लिए चाय का माना करते हुए, मुस्कुराहट के साथ उन्हें गुड मॉर्निंग कहा। वे तुरंत बोले आप संकोच कर रहे हैं, हम सामने वाले बंगले में ही रहते हैं, आजकल सर्दी ज़्यादा है इसलिए रोज़ सुबह सभी घूमने वालों के लिए हम दोनों गर्म चाय लेकर आ जाते हैं।

अपनी इच्छा और उनके आग्रह दोनों को ही मैं टाल नहीं सका और उनके साथ ही बेंच पर बैठ चाय के मज़े लेने लगा। कुछ ही पलों में वे मुझसे इतनी आत्मीयता से बात करने लगे जैसे वे मेरे अपने परिवार से हों। उनकी बातों में एक अलग ही ऊर्जा, अलग ही सकारात्मकता महसूस हो रही थी। बातों ही बातों में मैंने उनसे उनके परिवार के बारे में पूछा तो पता चला उनका बेटा विदेश में है और बेटी की शादी हो चुकी है और वे वहाँ अकेले रहते है। मैंने उनकी और आंटी की उम्र देखते हुए उत्सुकता वश पूछा, ‘अकेले आपको यह सब मैनेज करने में दिक़्क़त नहीं होती है?’ तो वे बोले, ‘अगर होती भी तो मेरे पास उसका क्या समाधान है। हम दोनों ने ही हमारी परिस्थितियों को स्वीकार लिया है। कोरोना जैसी बीमारी से भी हम दोनों इसी तरह लड़े और जीते। जिन स्थितियों को बदल नहीं सकते हैं अगर हम उसे स्वीकार लेते हैं तो शांति के साथ जी पाते हैं।’

कुछ माह पूर्व ही बीमारी से जंग जीतने के बाद जीवन के प्रति उनका नज़रिया देख मैं हैरान था। सुबह-सुबह ही जीवन की एक बड़ी सीख के साथ, मैंने उनसे अगली बार मिलने का वादा कर विदा ली और लौटते-लौटते मैं सोच रहा था कि जिन घटनाओं या परिस्थितियों या बातों का कंट्रोल अपने हाथ में ना हो उन्हें स्वीकार लेना ही बेहतर है। दूसरे शब्दों में कहूँ दोस्तों तो जीवन में कुछ घटनाओं को घटने देना ही आपको सुख और शांति के साथ संतुष्टि का अनुभव दे सकता है।

जी हाँ साथियों, हर पल विरोध के भाव में रहने से कुछ हासिल नहीं होगा। कुछ बातों को बदला नहीं जा सकता है। मज़ाक़ में ही सही लेकिन इस बात को हम निम्न उदाहरण से समझ सकते हैं। आप कितने ही गोरे क्यूँ ना हों आपकी परछाई काली ही रहेगी। अच्छे से अच्छा और बड़े से बड़ा इंजीनियर भी ब्रेकिंग न्यूज़ को जोड़ नहीं सकता है और इसी तरह आप कितने भी अच्छे तैराक क्यों ना बन जाएँ आप मछली नहीं बन सकते हैं और आप कितने भी लम्बे क्यों ना हो जाएँ आप भविष्य नहीं देख सकते हैं।

दोस्तों जीवन का मज़ा उसे अपने माफ़िक़ बनाने में समय बर्बाद करने में नहीं बल्कि जीवन की राह में जो आ रहा है उसे स्वीकार कर पूर्ण रूप से जी लेने में है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com