नई दिल्ली । देश में इस साल भी मानसून सामान्य रहने का अनुमान जताया गया हो, लेकिन प्री-मानसून यानी मानसून के पहले होने वाली बारिश बेहद कम रही है। भारतीय मौसम विभाग के 1 मार्च से 25 अप्रैल तक के डाटा पर गौर करें, तब भारत के 20 राज्यों में मानसून से पहले की बारिश में अत्यधिक कमी दर्ज की गई है। जानकारों का कहना है कि प्री मानसून बारिश में कमी का असर मौसमी फल-सब्जियों के अलावा खरीफ फसल की बुवाई और बांधों में पानी के जलस्तर पर भी पड़ने का खतरा बढ़ गया है। मानसून पूर्व बारिश से भारत की सालाना बारिश का 11 फीसदी कोटा पूरा होता है। लेकिन इस बार कई रिवर बेसिन (नदी घाटी) में बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई है या फिर कई क्षेत्रों में भारी कमी रही है। मौसम विभाग का डाटा बताता है कि महाराष्ट्र के रिवर बेसिन में 24 अप्रैल तक या बिल्कुल बारिश नहीं हुई, या फिर बेहद कम बारिश हुई है। आंकड़ों  के अनुसार इस सीजन में यहां प्री-मानसूनी बारिश में 60 से 100 फीसदी तक की कमी आई है।
जानकारों का कहना है कि मानसून पूर्व होने वाली इस बारिश का असर वातावरण के साथ साथ कृषि क्षेत्र में देखने को मिला है। गर्म हवाएं ज्यादा चल रही हैं। तापमान वक्त से पहले बढ़ चुका है। इसकारण से मौसमी सब्जियां और फल खराब हो गए हैं। गन्ने और कपास की फसलें भी इसकी वजह से प्रभावित हो रही हैं। इनके अलावा खरीफ की बुवाई पर भी असर देखने को मिलेगा। रिवर बेसिन में बारिश की कमी से बांधों से पानी की आपूर्ति के लिए ज्यादा दबाव बन सकता है।मौसम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बारिश नहीं होने से लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए और खेतों में पानी की आपूर्ति के लिए डैम पर अतिरिक्त दबाव बढ़ सकता है। उसके जलस्तर में भी उल्लेखनीय कमी आ सकती है। प्री मानसून बारिश में कमी से किसानों की पानी के मौजूदा स्रोतों पर निर्भरती बढ़ जाती है। इसका असर स्रोतों में जलस्तर की गिरावट के रूप में दिखता है।