फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

सोलहवीं शताब्दी में आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले के गाँव गरलापाडु में एक तेलगू ब्राह्मण परिवार के यहाँ तेनालीराम का जन्म हुआ। सीखने की लगन और चातुर्य के बल पर जल्द ही वे ख्याति प्राप्त कवि व तेलगू साहित्य के महा ज्ञानी बन गए। वैसे उनके किस्से सुनकर हम एहसास कर सकते हैं की उनका वाक् चातुर्य कितना उमदा था और इसी वजह से वे प्रसिद्ध भी हुए।

विजयनगर की राजगद्दी पर विराजमान महाराज कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की योग्यता को पहचाना और उसी के अनुसार उन्हें अपने दरबार में हास्य कवि और सहायक मंत्री की भूमिका दी। तेनालीराम अपने चातुर्य से हल्के-फुल्के संवादों के साथ महाराज को मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकलने में मदद किया करते थे। इसीलिए उन्हें ‘विकट कवि’ के उपनाम से भी जाना जाता था। आईए आज हम शो की शुरुआत तेनालीराम के बुद्धि चातुर्य और ज्ञान बोध से भरी एक कहानी के साथ करते हैं।

राजा कृष्णदेव राय विजयनगर में अपनी प्रजा के साथ होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाते थे। उस दिन वे विजयनगर में हंसी-मज़ाक़, विनोद पर आधारित अनेक कार्यक्रम किया करते थे और प्रत्येक कार्यक्रम के विजेता कलाकार को पुरस्कार देकर सम्मानित किया करते थे। इसी दिन वे अपनी प्रजा में से किसी एक व्यक्ति को ‘महामूर्ख’ की उपाधि से नवाज़ कर सबसे विशिष्ट व मूल्यवान पुरस्कार दिया करते थे।

तेनालीराम अपनी योग्यता, चतुराई और बुद्धिमानी के बल पर हर वर्ष सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार के पुरस्कार के साथ-साथ ‘महामूर्ख’ भी चुने जाते थे और इसी वजह से कई दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। ईर्ष्या करने वाले इन्हीं दरबारियों ने एक बार मिलकर फैसला लिया कि इस बार होली के उत्सव पर कैसे भी करके तेनालीराम का पत्ता साफ कर दिया जाए। काफ़ी देर मंत्रणा करने के बाद सबने मिलकर एक युक्ति खोजी। योजना के तहत दरबारियों ने तेनालीराम के प्रमुख सेवक को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। होली के एक दिन पूर्व इसी सेवक ने तेनालीराम को अत्यधिक मात्रा में भांग पिला दी।

अगले दिन अर्थात् होली के दिन भांग के नशे की वजह से तेनालीराम प्रतियोगिता में दोपहर तक सोते ही रहे। राजा कृष्णदेव राय ने होली उत्सव प्रारम्भ करने के पूर्व जैसे ही दरबारियों से तेनालीराम के ना आने के विषय में पूछा तो ईर्ष्या करने वाले सभी लोगों ने मिलकर अत्यधिक भांग पीने वाली बात महाराज को बता दी और प्रतियोगिता चालू करने का आग्रह किया। महाराज ने सभी के आग्रह का मान रखते हुए प्रतियोगिता शुरू कर दी।

दोपहर बाद जब तेनालीराम की नींद खुली तो वह घबरा गए और लगभग दौड़ते हुए राज दरबार में पहुंचे। तेनालीराम को देखकर दरबारी जोर-जोर से हंसने लगे और उन्हें चिढ़ाने के उद्देश्य से बोले, ‘तेनालीराम जी अब तो आधे से अधिक कार्यक्रम सम्पन्न हो चुके हैं, कहाँ थे अब तक आप?’ दरबारियों की हंसी में हंसी मिलाते हुए मज़ाक़िया लहजे में तेनालीराम को डपटते हुए महाराज कृष्णदेव राय बोले, ‘अरे मूर्ख तेनालीराम जी, आज के दिन भी भांग छानकर सो गये?’ महाराज के इतना बोलते ही तेनालीराम के विरोधियों ने ठहाके लगाना शुरू कर दिया। सबके ठहाकों के बीच अचानक ही तेनालीराम के विरोधी एक साथ बोले, ‘बिलकुल सत्य कह रहे हैं महाराज, तेनालीराम मूर्ख ही नहीं बल्कि महामूर्ख है। तभी तो साल भर के मस्ती भरे त्यौहार के दिन भांग खा कर सो रहे थे।’

तेनालीराम दरबारियों द्वारा मज़ाक़ बनाए जाने के बाद भी, मुस्कुराते हुए सबकी बात बड़ी शांति से सुन रहे थे। जब सब लोग शांत हो गए तब तेनालीराम ने महाराज को प्रणाम करते हुए कहा, ‘धन्यवाद महाराज, इस वर्ष तो आपके साथ-साथ सभी विशिष्ट दरबारियों ने भी ध्वनिमत के साथ अपने श्री मुख से बोलकर मुझे महामूर्ख घोषित कर दिया है। मुझे तो लगता है अब तक आपने भी सहर्ष मुझे इस वर्ष का ‘महामूर्ख’ मान कर सबसे बड़े पुरस्कार से नवाजने का निर्णय ले लिया होगा। अब देर किस बात की? चलिए इसकी घोषणा कर दीजिए।’ तेनालीराम के मुख से इतना सुनते ही दरबारियों को अपनी भूल का एहसास हुआ। किन्तु वे कर भी क्या सकते थे? क्योंकि वे स्वयं ही अपने मुख से तेनालीराम को महामूर्ख बता चुके थे। राजा कृष्णदेव राय ने होली के अवसर पर दिया जाने वाला ‘महामूर्ख’ का पुरस्कार तेनालीराम के नाम पर कर दिया।

दोस्तों, उपरोक्त कहानी हमें जीवन में सफल होने के कई महत्वपूर्ण सूत्र सिखाती है। आईए आज हम उनमें से सबसे महत्वपूर्ण तीन सूत्र सीखते हैं-

पहला सूत्र - जोश में होश ना खोएँ
जिस तरह दरबार में होली के कार्यक्रम में देर से पहुँचने पर दरबारियों द्वारा हंसी उड़ाए जाने के बाद भी तेनालीराम विचलित नहीं हुए और पूरे संयम के साथ होश में रहते हुए विषम परिस्थितियों को अपने पक्ष में करके विजेता बन गए, ठीक उसी तरह अगर जोश में आकर होश खोने की जगह हम सब्र और संयम के साथ कार्य करें तो विजेता बन सकते हैं।

दूसरा सूत्र - लक्ष्य को फ़ोकस में रखें
तेनालीराम का लक्ष्य एकदम स्पष्ट था, ‘महामूर्ख’ की उपाधि जीतना। इसलिए वे लोगों के व्यवहार और महाराज द्वारा कही गई बातों से विचलित नहीं हुए। जब आप स्पष्ट और बड़े लक्ष्य को पाने के लिए 100 प्रतिशत प्रतिबद्ध रहते हैं तभी आप अपना 100 प्रतिशत दे पाते हैं।

तीसरा सूत्र - कभी भी हार ना मानें
अगर आप विजेता बनना चाहते हैं तो विषम से विषम परिस्थितियों में भी हार ना मानें और विपरीत परिस्थितियों में घट रही घटनाओं को शांति से स्वीकारते हुए सही मौके की प्रतीक्षा करें और जैसे ही मौक़ा मिले चौका मारें और विषम परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोडकर सफल बन जाएँ। याद रखिएगा दोस्तों पेन याने दर्द को प्लेज़र अर्थात् आनंद में बदलने वाला इंसान ही खुश और शांत रहते हुए सफल बन पाता है।  

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com