फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, कई बार आपके द्वारा ली गई एक छोटी सी ऐक्शन या कहा गया एक शब्द आपको हीरो या ज़ीरो बना सकता है। आपके द्वार कहा गया एक शब्द किसी को जीने की वजह, किसी के जीवन को दिशा या फिर आपको, आपके परिवार को बल्कि आपके देश को सम्मान तक दिला सकता है। 

जी हाँ दोस्तों, ऐसी ही एक घटना आज मेरे साथ घटी। जैसलमेर का अपना कार्य पूर्ण कर, मैं सुबह साढ़े 9 बजे जोधपुर के लिए निकला। जहाँ से मुझे दोपहर 3.40 पर दिल्ली होते हुए इंदौर की फ़्लाइट लेना थी। समय से थोड़ा पहले पहुँचने पर मैंने बैंक सम्बन्धी एक कार्य को पूर्ण करने का निर्णय लिया। बैंक का कार्य था तो कुछ मिनटों का ही, लेकिन उसे पूरा करवाने में मुझे लगभग डेढ़ घंटा लग गया। छोटे से कार्य में इतना समय लगाने के बाद भी कर्मचारियों का व्यवहार ऐसा था जैसे कार्य पूर्ण कर उन्होंने मुझ पर एहसान किया है। 

ख़ैर, अतिरिक्त समय का सदुपयोग करने का प्रयास मेरे लिए अनावश्यक भागा-दौड़ी की वजह बन गया। बैंक से एयरपोर्ट जाते समय मैं सोच रहा था कि बैंक कर्मचारियों द्वारा निजीकरण का विरोध करने से क्या ग्राहक निजी बैंक में जाना बंद कर देगा? शायद नहीं… क्यूँकि हाई वैल्यू ग्राहक के लिए तो सबसे क़ीमती चीज़ उनका समय ही है, जो उन्हें अच्छी सर्विस देगा वो उसकी ओर आकर्षित हो जाएँगे या उनकी सेवाएँ लेंगे। चलिए इस बात को यहीं छोड़ते हैं…

सुरक्षा जाँच पूरी कर, एयरपोर्ट के अंदर आने पर मुझे एहसास हुआ कि इस भागा-दौड़ी में मैंने दोपहर का भोजन तो किया ही नहीं है। मैं तुरंत वेटिंग एरिया में मौजूद स्नैकबार नामक फ़ूड काउंटर पहुँच गया और मेन्यू देखने लगा। उसी वक्त एक विदेशी महिला उसी काउंटर पर पहुँची और बहुत ही विनम्रता के साथ, नमस्ते करते हुए, इशारे से प्रिंगल चिप्स का एक पैकेट माँगने लगी। दुकानदार ने भी विनम्रता के साथ नमस्ते का जवाब दिया और पैसे लेकर चिप्स का एक पैकेट दे दिया। 

दुकानदार और महिला शायद एक दूसरे की भाषा समझ नहीं पा रहे थे, फिर भी इशारों में मुस्कुराहट के साथ, दोनों का संवाद देख मुझे अच्छा लगा। मैंने भी एक ग्रिल्ड़ सेंडविच का ऑर्डर दिया और उस काउंटर के पास ही अपने ऑर्डर की प्रतीक्षा करने लगा। लगभग 5 मिनिट बाद ही वह विदेशी महिला वापस उस दुकान पर आयी और चिप्स का पैक दिखा कर कुछ कहने लगी। दूरी की वजह से मैं उसके शब्द तो सुन नहीं पा रहा था लेकिन उसके हाव-भाव देख लग रहा था कि वह नाखुश है। दोनों के क़रीब जाकर जब मैंने उनकी बात सुनी तो मुझे पता लगा कि वह दुकानदार द्वारा चिप्स का खुला पैकेट दिए जाने से नाखुश है और वह उसे बदलना चाहती है। दूसरी ओर दुकानदार उसे समझाने का प्रयास कर रहा था कि वह इस खुले हुए चिप्स के पैकेट का क्या करेगा।

दोनों अपनी जगह सही थे, लेकिन एक विदेशी महिला के सामने हमारी ग़लत छवि बनाते देख मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने बीच में टोकते हुए दुकानदार से कहा, ‘भाई, आप भले ही चिप्स के पैसे मुझसे ले लें लेकिन उस विदेशी के सामने अपनी और देश की छवि ग़लत मत बनने दे।’

दुकानदार ने मेरी बात की गम्भीरता को समझते हुए तुरंत उस महिला को प्रिंगल चिप्स का नया डिब्बा दे दिया। महिला नया पैक मिलते ही खुश हो गयी और मेरी और देखते हुए नमस्ते करते हुए बोली, ‘Thankyou Sir, I am not able to convey my problem to shop keeper. Thank you for your kind help and India is really great.’


दोस्तों एक छोटी सी मदद के बदले उस महिला के कहे शब्द सुन, बैंक कर्मचारियों से मिली सारी नकारात्मकता ग़ायब हो गयी। मुझे दिल की गहराइयों तक एक अलग ही ख़ुशी की अनुभूति हो रही थी। मैंने तुरंत दुकानदार को चिप्स के पैसे दिए लेकिन उसने बड़े अदब के साथ लेने से इनकार कर दिया। मुझे ऐसा लगा मानो वह कह रहा हो, ‘भाई साहब, यह देश आपके अकेले का नहीं है। मैं भी यहाँ का एक ज़िम्मेदार नागरिक हूँ।’ किसी ने बिलकुल सही कहा है दोस्तों, ‘अच्छाई के साथ किया गया एक छोटा सा कार्य भी आपकी ही नहीं, आपके परिवार और देश की भी सकारात्मक छवि बनाता है।’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर   
dreamsachieverspune@gmail.com