भोपाल । आयकर विभाग की सख्ती के साथ एक अप्रैल से कारोबारियों की परेशानी बढ़ती दिख रही है। दो साल से रुके आयकर सर्वे का सिलसिला फिर शुरू होने जा रहा है। फील्ड पर तैनात आयकर अधिकारियों के सर्वे के अधिकार नए वित्त वर्ष में बहाल किए जा रहे हैं। दो साल पहले फेसलेस असेसमेंट लागू करने के साथ ही आयकर सर्वे और छापों की कार्रवाई मात्र आयकर की इंवेस्टिगेशन विंग के पास सीमित कर दी गई थी। अब इस प्रविधान को फिर बदल दिया गया है।
केंद्र सरकार ने 13 अगस्त 2020 को आयकर विभाग में फेसलेस असेसमेंट प्रणाली लागू की थी। इसमें करदाताओं के आयकर असेसमेंट का जिम्मा आनलाइन कंप्यूटर आधारित सिस्टम पर डाल दिया गया था। साथ ही फील्ड के अधिकारियों को अपने क्षेत्र में सर्च और सर्वे करने से भी रोक दिया गया था। इंवेस्टिगेशन विंग को सर्वे या सर्च करने की अनुमति थी। किसी आयकरदाता द्वारा कर चोरी की आशंका व प्रमाण के आधार पर विंग उच्चाधिकारियों की पूर्वानुमति से सर्वे कर सकते थे। इस कदम का असर हुआ कि छोटे और मध्यम कारोबारी जो हर साल वित्त वर्ष के आखिर यानी फरवरी-मार्च में आयकर विभाग के सर्वे और जांच से घिर जाते थे, उन्हें दो साल से राहत थी। लक्ष्य पूरा करने के लिए उनके दरवाजे पहुंचने वाले अधिकारी भी दो साल से नहीं दिखे। सिर्फ इंवेस्टिगेशन विंग ने बड़ी कर चोरी के मामलों में छापों की कार्रवाई की।
तीन से दस साल के रिकार्ड की जांच
सीए स्वप्निल जैन के अनुसार सामान्य तौर पर कोई भी आयकर अधिकारी कर चोरी की शंका होने पर किसी भी करदाता के यहां जांच के लिए पहुंच सकेगा। उसके बीते तीन वित्त वर्ष और जारी वित्त वर्ष के आय के रिकार्ड की जांच कर सकेगा। यानी चार वर्ष के रिकार्ड की जांच के अधिकार सीधे आयकर अधिकारी के हाथ में आ रहे हैं। साथ ही धारा 148 में यह भी लिखा गया है कि सामान्य तौर पर कोई आयकर अधिकारी बीते 6 साल के रिकार्ड देख सकता है और यदि उसे 50 लाख रुपये या ज्यादा की अघोषित आय के प्रमाण या सूचना मिलती है तो वह 10 साल के रिकार्ड भी जांच सकेगा।
पेनाल्टी और तनाव भी बढ़ा
दो साल पहले तक सर्वे में अघोषित आय की घोषणा करने पर 30 प्रतिशत पेनाल्टी लागू होती है। नए प्रविधानों में अब पेनाल्टी को भी बढ़ाकर 77 प्रतिशत कर दिया गया है। सीए ब्रांच इंदौर के पूर्व अध्यक्ष सीए पंकज शाह के अनुसार यदि सर्वे में अतिरिक्त स्टाक आयकर सर्वे में पकड़ में आता है या घोषित होता है तो जीएसटी की कार्रवाई के दायरे में भी सीधे तौर पर वह कारोबारी आ जाएगा। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि बढ़े अधिकारों के साथ कारोबारियों पर दबाव और अधिकारियों की मनमानी भी देखने को मिलेगी। इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि इंवेस्टिगेशन विंग में कुल 15 अधिकारी होंगे, जबकि विंग से अलग फील्ड पर कुल 150 अधिकारी होंगे। इन सभी को शक्ति मिलेगी तो उसी अनुपात में सख्ती का बोझ भी बढ़ेगा।