फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, हम सभी अपने बच्चों को ‘सुपर मैन’ अर्थात् विशेष योग्यताओं का धनी बनाना चाहते हैं और इसीलिए कम उम्र से ही उसे आवश्यकतानुसार संसाधन उपलब्ध करवाने के साथ-साथ शहर के किसी बड़े विद्यालय में प्रवेश दिलवाते हैं और उसके बाद ट्यूशन और फिर विशेष खेल अथवा ऐक्टिविटी क्लास भेजना शुरू कर देते हैं। जैसे क्रिकेट, म्यूज़िक, ड्रॉइंग, वैदिक गणित, अबेकस इत्यादि। लेकिन अपना पूरा फ़ोकस, समय और पैसा लगाने के बाद भी ज़्यादातर माता-पिता या पालक मनमाफ़िक परिणाम नहीं पा पाते हैं। वे चाहते तो हैं कि उनका बच्चा जीवन में सफल, अनुशासन प्रिय, आज्ञाकारी, अच्छे व्यवहार के साथ परीक्षा में अच्छे अंक लाने वाला बने। जिससे वह बेहतरीन कैरियर बनाकर धनवान बन सके और बुढ़ापे में उनका ख्याल रख सके। लेकिन अगर आप गौर से देखेंगे तो पाएँगे आजकल ज़्यादातर बच्चों में इसके उलट आक्रामक प्रवृति, ग़ुस्सा, विश्वास की कमी, शोषण का डर, उदासी निराशा और तनाव जैसे नकारात्मक भाव नज़र आते हैं और कई बार तो बच्चों में खुद को नुक़सान पहुँचाने वाली प्रवृति भी नज़र आती है।

दोस्तों, अगर आप गहराई से सोचेंगे तो पाएँगे कि अपेक्षा और परिणाम के बीच  इस बड़े अंतर के लिए हम उस बच्चे के सम्पर्क में आने वाला हर वयस्क ज़िम्मेदार है। असल में हम वयस्क बच्चों को विशेष प्रतिभा का धनी बनाने की इस जल्दबाज़ी या हड़बड़ी भरी प्रक्रिया में भूल जाते हैं कि इसी दौरान उसके बालमन का विकास हो रहा है और उस बालमन पर सबसे ज़्यादा प्रभाव वयस्कों द्वारा किए गए परोक्ष या अपरोक्ष व्यवहार का पड़ता है। अपनी बात को मैं हाल ही में घटी दो घटनाओं से समझाता हूँ-

पहली घटना - पिछले सप्ताह भोपाल शहर में एक बड़े विद्यालय के तीन शिक्षकों के साथ एक जैसी घटना घटी। घर से विद्यालय जाने के रास्ते में बाइक सवार एक बच्चा उन्हें कट मारकर या हल्की टक्कर मारते हुए निकला। शिक्षकों के लिए सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि वह बच्चा उन्हीं के विद्यालय में कक्षा नवीं में पढ़ता था। विद्यालय पहुँचकर शिक्षकों ने यह घटना विद्यालय की उप प्राचार्य को बतलाई उन्होंने तुरंत उस बच्चे को बुलवाया और उसे डाँटकर समझाते हुए बाइक की चाबी लेकर रख ली और छुट्टी के बाद पिता को बुलवाने के लिए कहा। इसके पीछे शिक्षिका और उप प्राचार्य का उद्देश्य बच्चे की सुरक्षा को सर्वोपरि मानना था। वे नहीं चाहते थे कि लापरवाही से गाड़ी चलाने की वजह से उसे किसी तरह का नुक़सान पहुंचे। छुट्टी के पश्चात विद्यालय पहुँचते ही उस बच्चे के बड़े भाई और पिता ने बच्चे के समक्ष ही अनुचित व्यवहार करते हुए शिक्षकों और उप प्राचार्य पर दबाव बनाना शुरू कर दिया।

दूसरी घटना - जबलपुर के पास एक छोटे से शहर में कक्षा तीसरी का एक विद्यार्थी शिक्षिका से आज्ञा लेकर वॉशरूम गया। वहाँ से लौटते वक्त वह गलती से अपने हाथ धोना भूल गया और वापस कक्षा में आ गया। कक्षा में आने पर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने वापस उसी शिक्षिका से हाथ धोने जाने के लिए आज्ञा माँगी। शिक्षिका को बच्चे का यह व्यवहार लापरवाही भरा लगा और उन्होंने बच्चे के समक्ष कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग कर लिया जो कहीं से भी उचित नहीं थे।

दोस्तों इन घटनाओं के बारे में सुनकर मेरे मन में एक ही प्रश्न उठा, ‘जिन्हें बच्चों को शिक्षित या संस्कारी बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई है, क्या वे बच्चे के समक्ष इस तरह का अनुचित व्यवहार कर सकते हैं?’ मेरी नज़र में तो बिलकुल नहीं क्यूँकि मेरा तो बहुत स्पष्ट मानना है कि बच्चे जो हम कहते है उससे कई गुना ज़्यादा जो हम करते हैं,  से सीखते हैं। अगर आप वाक़ई अपने बच्चे को विशेष प्रतिभा का धनी बनाना चाहते हैं तो आपको पढ़ाई, ट्यूशन, कोचिंग आदि जैसे बड़े-बड़े उपायों पर काम करने के पहले उनकी उन आदतों को पहचानना होगा जो बच्चों के अनुचित पालन-पोषण को दर्शाती हैं। कल हम जाने-अनजाने में की जाने वाली उन 25 सामान्य चूकों को पहचानने का प्रयास करेंगे जो हमारे बच्चे को उसकी सफलता से दूर कर देती है।


-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com