फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

आज का लेख शुरू करने से पहले ही मैं आपसे माफ़ी माँगना चाहता हूँ क्यूँकि हो सकता है कि आज आप मेरी बातों से सहमत ना हों। लेकिन उसके बाद भी दोस्तों, मैं सामाजिक एकीकरण को ध्यान में रखते हुए अपना मत आपके समक्ष रखना चाहूँगा क्यूँकि धर्म, पैसे, आस्तिक, नास्तिक, राजनैतिक सोच जैसे कई मुद्दों पर हम पहले ही कई समूहों में बंटे हुए हैं। ऐसे में बिना तथ्यों को परखे, अपनी राय बनाना या ध्रुवीकरण का हिस्सा बनना, कहीं से भी देश या सामाजिक आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। चलिए, अपनी बात को मैं हमारी सनातन संस्कृति में कही बातों के आधार पर समझाने का प्रयास करता हूँ। मैं यह विषय इसलिए चुन रहा हूँ क्यूंकि इसमें भी समाज मुख्यतः दो भागों में बंट रहा है। पहले समूह में वो लोग आते है जो हमारी सनातन संस्कृति में कही गई हर बात को दक़ियानूसी कहकर, दरकिनार कर देते हैं और दूसरे समूह में वे लोग आते हैं, जो बिना कुछ जाने समझे ही पुरातन संस्कृति के पक्ष में विज्ञान या सामान्य जीवन में कही या करी जाने वाली बातों को नकार देते हैं।

मेरी नज़र में दोस्तों दोनों ही तरीके ग़लत हैं। मेरा तो यह मानना है कि संस्कृति या संस्कार अथवा धर्म को आधार बनाकर कही गई बातें असल में एक अच्छा जीवन जीने के लिए गाइडलाइन है। हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन में जो भी सीखा वह अगली पीढ़ी को धर्म के साथ जोड़कर सिखाने का प्रयास किया। अब आपके मन में सवाल आ सकता है कि, ‘धर्म ही क्यों?’ तो चलिए आगे बढ़ने से पहले संक्षेप में इस विषय पर चर्चा कर लेते हैं। इस दुनिया में सिर्फ़ तीन चीज़ें बिकती हैं, डर, उम्मीद और लालच। पुराने समय में पैसों का लालच तो था नहीं, इसीलिए शायद हमें उत्तम जीवन जीने के मंत्रों को सिखाने के लिए महत्वपूर्ण बातों को डर, उम्मीद और लालच के साथ-साथ पाप, पुण्य और ईश्वर से जोड़ दिया गया होगा। लेकिन गुजरते समय में शिक्षा और समाज द्वारा की गई प्रगति के कारण उनमें से कुछ जीवन मंत्र अपना औचित्य खो बैठे और कुछ आज भी मूल्यवान हैं। लेकिन समाज में मौजूद रूढ़िवादी लोगों ने तथ्यों को नज़रंदाज़ किया और उसके साथ चिपके रहे। वहीं तार्किक लोगों ने बिना सच्चाई को जाने, अपने तर्कों के आधार पर इन मंत्रों को नकारना शुरू कर दिया और शायद इसी वजह से समाज दो हिस्सों में बंट गया।

लेकिन दोस्तों,  अगर आप अपने जीवन को निश्चिंतता, बिना डर और सम्पूर्णता के साथ जीना चाहते हैं तो आपको अपनी जीवनशैली को बदलना होगा और दोनों में से किसी भी तरह की भीड़ के साथ बहने के स्थान पर अपने जीवन को सच्चाई की खोज में लगाना होगा । अपनी बात को मैं समाज में प्रचलित दो मान्यताओं से आपको समझाने का प्रयास करता हूँ-

पहली मान्यता - हमारे समाज में आज भी माना जाता है कि सूरज ढलने के बाद झाड़ू लगाने से लक्ष्मी जी रूठकर चली जाती है। इसी वजह से लोग सूर्यास्त के बाद झाड़ू लगाने से बचते हैं और अगर किसी वजह से सूर्यास्त के बाद झाड़ू लगाना भी पड़ जाए तो झाड़ू लगाने पर निकले कचरे को कमरे के एक कोने में इकट्ठा करके रख लेते हैं। लेकिन कोई भी गहराई में जाकर यह नहीं जानना चाहता कि सूर्यास्त के बाद झाड़ू लगाने पर लक्ष्मी जी कैसे चली जाती हैं? असल में साथियों जब यह बात समाज को बताई गई थी तब आज की तरह नोट या डिजिटल करेंसी तो थी नहीं, उस वक्त लोग अपनी सारी पूँजी को धातु अर्थात् मेटल (सोने, चाँदी आदि) के रूप में रखते थे और हाँ इन्हें रखने के लिए भी बैंक लॉकर तो थे नहीं, तो आपको इन्हें घर में ही सुरक्षित रखना होता था। चूँकि महिलाएँ उस जमाने में ज़्यादातर समय घर में ही रहा करती थी इसलिए इन धातुओं को गहनों के रूप में महिलाओं को दे दिया जाता था। ऐसी स्थिति में सूर्यास्त के बाद झाड़ू लगाना थोड़ा अधिक जोखिम वाला होता था क्यूँकि बिजली के अभाव में रात को झाड़ू लगाने पर गलती से ज़मीन पर गिरे हुए धातु के टुकड़े या गहने का घर से बाहर जाने का ख़तरा रहता था। इसीलिए हमें सिखाया जाता था कि सूरज ढलने के बाद झाड़ू लगाने से लक्ष्मी जी बाहर चली जाती है।

दूसरी मान्यता - ठीक इसी तरह त्योहारों पर रंगोली बनाने की भी प्रथा है। विशेषकर दीवाली पर, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए घर के मुख्य द्वार के पास रांगोली बनाई जाती हैं। क्या कभी सोच कर देखा है कि रंगोली से लक्ष्मी जी कैसे प्रसन्न होकर हमारे ऊपर कृपा बरसाती हैं? असल में साथियों फ़ूड चेन में इंसान सबसे शक्तिशाली है। इसीलिए ईश्वर ने उसे ज़िम्मेदारी दी है कि वह फ़ूड चेन में अपने से कमजोर लोगों के भोजन की ज़रूरतों का ख़्याल रखे। इसीलिए हमारे पूर्वज घर के बाहर, एक कोने में चावल के आटे से रंगोली बनाया करते थे। इससे घर की सुंदरता के साथ - साथ चींटी, कीड़े-मकोड़े आदि को भोजन उपलब्ध हो ज़ाया करता था। लेकिन जब हम इस मूल उद्देश्य को भूलकर रंगोली को लक्ष्मी जी को खुश करने की मान्यता के रूप में बनाने लगे तो इसमें केमिकल रंगो का प्रयोग होने लगा। इसका दुशपरिणाम यह हुआ कि अब वही चींटी, कीड़े-मकोड़े इत्यादि भोजन के लिए हमारे घर में आने लगे हैं।

इसीलिए दोस्तों मैंने पूर्व में कहा था कि अगर अपना जीवन निश्चिंतता, बिना डर और सम्पूर्णता के साथ जीना चाहते है तो जीवन को सत्य की खोज में लगाएँ। शायद इसीलिए गौतम बुद्ध ने कहा है, ‘मान्यताओं को इसलिए मत मानो कि उन्हें ऋषियों ने कहा है या वेदों में लिखा गया है। इन्हें किसी के कहने पर स्वीकारना आपके मन में उधार की श्रद्धा पैदा करेगा, जो दो कौड़ी की भी ना होगी। इसके स्थान पर जब तक तुम इसे जान ना लो, विश्वास मत करना। सही मायने में जीना चाहते हो तो अपने जीवन को सत्य की खोज में लगाओ।’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com