फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों आजकल आपने निश्चित तौर पर लोगों को सब कुछ ज़रूरत से कई गुना ज़्यादा पाने की चाह में, ज़िंदगी को छोड़कर परेशानियों, तनाव, दबाव और चुनौतियों को चुनते हुए देखा होगा। अमीर बनने के साथ खुद के लिए आरामदायक व सम्मानजनक जीवन जीने की चाह और अपने आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित बनाने की सोच ने आत्म संतोष, जो प्राप्त है, पर्याप्त है, जैसे विचारों को लगभग नकार ही दिया है। वैसे सब कुछ पा लेने की चाह सिर्फ़ पैसे और संसाधनों तक ही सीमित नहीं है, अपितु आजकल लोग ज्ञान, सम्मान, पहचान जैसी चीजों को भी इससे जोड़ चुके हैं। मुझे इसकी सबसे बड़ी वजह लोगों के सोचने के तरीके में आया बदलाव लगता है। वे आजकल उपरोक्त सभी चीजों या बातों को अपनी सफलता, अपनी ख़ुशी से जोड़कर देखने लगे हैं। लेकिन दोस्तों मेरी नज़र में इस छोटे से जीवन में सब कुछ पा लेना सम्भव ही नहीं है। अपनी उपरोक्त बात को मैं यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक, सुकरात के जीवन में घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।

एक बार सुकरात किसी विषय में गहन चिंतन करते हुए समुद्र के किनारे टहल रहे थे। तभी उनका ध्यान समुद्र किनारे रो रहे एक बच्चे पर गया, वे तुरंत उसके पास पहुंचे और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले, ‘बेटा, तुम क्यूँ रो रहे हो? क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ।’ बच्चे ने रोते-रोते ही सुकरात की ओर देखा और अपने हाथ में पकड़े हुए प्याले को दिखाते हुए बोला, ‘मैं पूरे समुद्र को इस प्याले में भरना चाहता हूँ, पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं है।’

बच्चे की बात सुनते ही सुकरात जैसे अनंत में खो गए और रोने लगे। सुकरात को रोता देख बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला, ‘आप भी मेरी तरह रोने लगे! पर मुझे तो आपके हाथ में कोई प्याला नज़र नहीं आ रहा, फिर आप इस समुद्र को काहे में भरेंगे?’ सुकरात ने तुरंत अपनी भावनाओं को सम्भाला और मुस्कुराते हुए बोले, ‘बेटा तुम छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहते हो और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार का ज्ञान भरना चाहता हूँ। आज तुम्हें देखकर पता चला कि समुद्र प्याले में नहीं समा सकता।’

सुकरात की बात सुनते ही उस बच्चे ने प्याले को अपनी पूरी ताक़त से समुद्र के अंदर फेंक दिया और बोला, ‘सागर, अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो क्या हुआ मेरा प्याला तो तुम्हारे अंदर समा सकता है।’ बच्चे की बात सुनते ही सुकरात बच्चे के पैरों में गिर गए और बोले, ‘आज तुमने मुझे जीवन का सबसे बड़ा सूत्र सिखा दिया है। हे परमात्मा, तुम्हारा सारा का सारा ज्ञान मेरे अंदर समाना नामुमकिन है, पर मैं तो सारा का सारा तुम्हारे अंदर समा ही सकता हूँ।’

वैसे तो दोस्तों, आप इस ज़बरदस्त किस्से में छिपे गूढ़ अर्थ को समझ ही गए होगे, लेकिन फिर भी मैं इसे अपने नज़रिए से समझाने का प्रयास करता हूँ। जिस तरह बच्चे और सुकरात को अनुभव हुआ था कि समुद्र एक प्याले में नहीं समा सकता या सारी दुनिया का ज्ञान किसी एक इंसान में समा नहीं सकता, ठीक उसी तरह हमें भी स्वीकार कर लेना चाहिए कि सारी दुनिया की दौलत, शोहरत और इज्जत किसी एक इंसान को नहीं मिल सकती है।

जब तक आप जीवन में सब कुछ पा लेने के मोह में बंधे रहेंगे, तब तक आप असली ख़ुशी से वंचित रहेंगे। सारे जहां की दौलत, शोहरत और इज्जत पाना एक ऐसी अंधी दौड़ है जिसका अंत हमारे जीवन जीने की क्षमता के अंत के साथ होता है। वैसे इसका एक और बड़ा नुक़सान है, जब तक आप इस अंधी दौड़ में भागते रहेंगे, तब तक आप, कभी भी, जो आपके पास है उसका उपभोग नहीं कर पाएँगे। इसलिए दोस्तों, जो नहीं है, वह सब पाने की चाह में, जो है, उसका सुख लेने से वंचित मत रहो। वैसे साथियों इस बात को हर पल याद रखना कि, ‘जीवन ना तो अतीत में है और ना ही भविष्य में, वह तो बस इसी पल में है।’, आपको इस अंधी दौड़ से बचाकर, जीवन जीने उसका असली मज़ा लेने का मौक़ा दे सकता है।  

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com