फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, यह बात बिल्कुल सही है कि एक सफल और अच्छा जीवन जीने के लिए धन का होना आवश्यक है। लेकिन इस बात का यह अर्थ क़तई नहीं है कि सिर्फ़ धन ही आपके जीवन को सफल और अच्छा बना सकता है। अगर आप वाक़ई अपने जीवन को बेहतरीन बनाना चाहते हैं या इसका सौ प्रतिशत मज़ा लेना चाहते हैं तो आपको भौतिक ज़रूरतों के साथ भावनात्मक, मानसिक एवं शारीरिक ज़रूरतों और स्वास्थ्य के साथ अन्य प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए संतुलन बनाना होगा। लेकिन अक्सर बाहरी भौतिक चमक-दमक के बीच हम बेहतरीन जीवन के लिए आवश्यक बातों को पहचान ही नहीं पाते हैं और अपने पूरे समय या जीवन को धन एकत्र करने में बर्बाद कर देते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक बहुत ही प्यारी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-

बात कई साल पुरानी है रामनगर में एक बहुत ही दानवीर सेठ रहा करते थे। एक दिन बाज़ार में घूमते वक्त उनकी नज़र एक भिखारी पर पड़ी जो कचरे में से अपनी ज़रूरत का सामान तलाश रहा था। उसकी हालात को देख सेठ का दिल पिघल गया और उन्होंने उसकी जीवन भर की ज़रूरतों का अंदाज़ा लगाते हुए तांबे के सिक्कों से भरी पोटली उसकी ओर उछाल दी। लेकिन संयोग से भिखारी अपनी ओर उछाली गई थैली को पकड़ नहीं पाया और वह थैली नाली में गिर गई। सिक्कों से भरी थैली नाली में गिरते देख भिखारी और ज़्यादा परेशान हो गया और रोते-रोते उसे नाली में हाथ डालकर खोजने लगा। भिखारी को नाली में थैली खोजते देख दयालु सेठ और ज़्यादा परेशान हो गया। उसने उसी वक्त भिखारी को आवाज़ देकर बुलाया और उसे एक चाँदी के सिक्कों से भरी थैली दे दी।

चाँदी के सिक्कों की थैली का मालिक बनकर वह भिखारी बहुत खुश हुआ और ख़ुशी से उछलते हुए वापस नाली के पास गया और उसमें उतरकर ताम्बे के सिक्कों की थैली ढूँढने लगा। भिखारी को ऐसा करते देख दयालु सेठ को पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया, फिर उन्हें लगा हो ना हो भिखारी की ज़रूरत चाँदी के सिक्कों से पूरी नहीं हो रही होगी इसीलिए शायद वह नाली में तांबे के सिक्कों से भरी थैली को ढूँढ रहा है। दयालु सेठ ने एक बार फिर आवाज़ देकर उस भिखारी को बुलाया और उसे सोने के सिक्कों से भरी थैली उपहार स्वरूप दे दी।

इस बार सोने के सिक्कों से भरी थैली पा भिखारी बहुत ज़्यादा खुश हुआ और नाचने लगा। कुछ मिनटों बाद जब वह सामान्य हुआ तो वह सोने के सिक्कों से भरी थैली को अपनी झोली में रख वापस नाले में उतरने लगा। दयालु सेठ ने उसे ऐसा करते देख वापस आवाज़ लगाई और पास बुलाते हुए कहा, ‘अगर मैं तुम्हें अपनी आधी दौलत दे दूँ, तब तो तुम पूरी तरह संतुष्ट हो जाओगे?’ भिखारी ने सेठ की बात पूरी होने के पहले ही बोला, ‘साहब, जब तक मुझे मेरी पहली वाली तांबे के सिक्कों से भरी थैली नहीं मिल जाएगी तब तक मैं कैसे संतुष्ट हो सकता हूँ?’

दोस्तों, गहराई से देखा जाए तो इस दुनिया में ज़्यादातर लोगों की हालत इस भिखारी के सामान है। वे तांबे के सिक्कों की थैली अर्थात् दौलत के पीछे दीवानों की तरह पीछे पड़े हुए हैं । ईश्वर द्वारा प्रदत्त चाँदी के सिक्कों के सामान अपने सम्बन्धों और सोने के सिक्कों के समान अपने स्वास्थ्य और अमूल्य रत्नों की थैली समान अपने जीवन की क़ीमत नहीं समझ पा रहे हैं। साथियों अगर आप वाक़ई इस जीवन का सच्चा सुख पाना चाहते हैं तो अपने जीवन को भौतिक संसाधन जुटाने में बर्बाद करने के स्थान पर धन या भौतिक ज़रूरतों के साथ-साथ, अपनी भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए प्राथमिकताएँ बनाएँ और उसके अनुसार अपना जीवन जिएँ।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com