फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

तुलना एक ऐसा भाव है जो आपको कभी चैन या शांति के साथ जीवन नहीं जीने देता है। शायद इसीलिए कहा गया है, ‘दुखों से मुक्ति चाहिए तो अपनी या अपनों की तुलना दूसरों से करना बंद कर दो।’ लेकिन दोस्तों सामान्य जीवन में होता इसका बिलकुल उलट है, इंसान को दूसरे की थाली में ही घी ज़्यादा नज़र आता है अर्थात् उसे अपने जीवन से ज़्यादा बेहतर जीवन दूसरों का लगता है। वह मानकर चलता है कि सामने वाला ज़्यादा आनंद और उल्लास के साथ जीवन जी रहा है।

यही गलती अक्सर लोग किसी क्षेत्र विशेष में सफल लोगों को देखकर भी करते हैं। उन्हें लगता है कि उनका कैरियर, उनका घर, उनका जीवन, उनकी आमदनी आदि सब कुछ हमसे ज़्यादा अच्छी है। लेकिन दोस्तों, अगर आप थोड़ा बारीकी से देखेंगे तो पाएँगे कि तुलना करने का हमारा तरीक़ा, हमारी सोच ही ग़लत है। तुलना करते वक्त अक्सर इंसान सामने वाले व्यक्ति द्वारा की गई मेहनत या प्रयास को बिलकुल ही भूल जाता है। याद रखिएगा दोस्तों, हर व्यक्ति के जीवन में उसकी अपनी उपलब्धि और अपनी परेशानी रहती है। लेकिन जब हम दूर से देखते हैं तो हमें सिर्फ़ उतना ही नज़र आता है, जो सामने दिख रहा होता है या यह कहना ज़्यादा बेहतर होगा कि हम वही देखते हैं, जो हम देखना चाहते हैं।

चलिए दोस्तों, अपनी बात को एक बहुत ही प्यारी नैतिक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ। शहर के सबसे बड़े मंदिर में गंगाजल से भरे मिट्टी के छोटे से घड़े को देख, पास ही खड़ा एक इंसान सोचने लगा, ‘इस छोटे से घड़े की क़िस्मत कितनी अच्छी है, बिना किसी परेशानी के पंडित इसको भगवान के चरणों के पास पहुँचा देता है। जहाँ से यह हर पल, बिना किसी परेशानी के भगवान के दर्शन करता रहता है। एक हमको देखो पिछले 3 घंटे से भूखे-प्यासे लाइन में लगे-लगे यहाँ तक पहुंचे हैं। रास्ते में धूप में खड़े रहना पड़ा, सो अलग। इस घड़े जैसी क़िस्मत बहुत कम लोगों की होती है।’

घड़ा भी बड़ा अंतर्यामी था वह तुरंत भाँप गया कि उस दर्शनार्थी के मन में क्या विचार चल रहे हैं? वह बड़े प्यार से मीठी आवाज़ में उस व्यक्ति को सम्बोधित करते हुए बोला, ‘बंधु, मैं भी बिलकुल तुम्हारे जैसा ही था। आज से कुछ साल पहले तक मैं किसी काम का नहीं था। बंधु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य में पड़ा हुआ था, फिर एक दिन एक कुम्हार आया और मुझ पर कुदाली और फावड़े से कई वार करके, एक बोरी में भरकर अपने साथ ले गया। इसके बाद कई दिनों तक में एक अंधेरे कमरे में पड़ा रहा।फिर एक दिन उसने मुझे वहाँ से निकाला और फिर कड़ाके की ठंड वाले दिनों में ठंडा पानी डाल कर मुझे गुँथा, फिर चाक पर चढ़ाकर बहुत देर-देर तक गोल घुमाता रहा। बीच-बीच में वह कभी मेरा गला काटता था, तो कभी थापी मारता था। उसका अत्याचार यहीं तक होता तब भी चल जाता, इसके बाद तो उसने मुझे जलती भट्टी में रख दिया। जलती भट्टी से बाहर निकालने के बाद कुम्हार ने मुझे गधे पर लादा और बाज़ार भेज दिया।

बाज़ार में भी मेरे ऊपर अत्याचार कम नहीं हुए, हर आने जाने वाला मुझे ठोक बजाकर परखने का प्रयास कर रहा था। तमाम तकलीफ़ सहते-सहते मैं रोज़ प्रभु से कहता था, ‘है प्रभु! सारी तकलीफ़ें मेरे ही भाग्य में लिख दी हैं क्या? रोज़ एक नया कष्ट, एक नई पीड़ा देते हो।’ तभी एक दिन एक व्यक्ति आया और मेरी क़ीमत मात्र 10 रुपए लगा गया। मैं हैरान था, मेरी सारी मेहनत, सहे गए सारे कष्टों की क़ीमत मात्र 10 रुपए! पर शायद कुम्हार भी मुझसे परेशान हो गया था उसने मुझे इस क़ीमत में भी उस शख़्स को दे दिया। वह शख़्स इस मंदिर का मुख्य पुजारी था और उसने मुझे ईश्वर के चरणों तक पहुँचा दिया। यहाँ पहुँचने के बाद मुझे एहसास हुआ कि ईश्वर तो मुझे इन तकलीफ़ों और कष्टों के ज़रिए निखार रहे थे। अर्थात् कुल्हाड़ी, फावड़े के वार से लेकर आग में तपना, कई दिन तक ऐसे ही बाज़ार में पड़े रहना असल में ईश्वर की कृपा थी, जिससे मैं उनके चरणों में रहने लायक़ बन जाऊँ।’

जी हाँ साथियों, दूसरे व्यक्ति से तुलना करते हुए अपनी क़िस्मत को दोष देना, खुद के अस्तित्व पर प्रश्न लगाना मेरी नज़र में तो उस परमपिता परमेश्वर की योजना, उसकी क्षमता पर उँगली उठाने जैसा है। असल में हम अपनी नादानी की वजह से भूल जाते हैं कि जीवन में घट रही हर अच्छी या बुरी घटना असल में उस ईश्वरीय योजना का हिस्सा है जिससे प्रभु हमारे अस्तित्व, हमारे जीवन को एक नया उच्च आयाम देने वाला है।  

दोस्तों, हो सकता है आपको मेरी बात अभी थोड़ी किताबी या प्रवचन वाली लगे। पर ज़रा शांत मन से सोचकर देखिएगा, आज से पहले आपने जब भी कष्ट या विपरीत परिस्थितियों का सामना किया है, आप जीवन को और बेहतर बनाते हुए आगे बढ़े हैं या नहीं?

निश्चित तौर पर आप हर कष्ट, हर तकलीफ़ के बाद निखरे हैं। याद रखिएगा, ईश्वर ने हमें वही दिया है, जो हमारे लिये उपयुक्त है और अगर आप इसका पूरा मज़ा लेना चाहते हैं तो आज और अभी से तुलना करने से बचना शुरू कर दीजिए और अपने समय, शक्ति का सही उपयोग करते हुए, खूब परिश्रम करते हुए, ऐसे कर्म कीजिए कि आप अपने इच्छित लक्ष्य को पा सकें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com