नई दिल्ली । गांबिया और उज्बेकिस्तान में कथित तौर पर भारत की दो दवा कंपनियों के कफ सिरप से हुई बच्चों की मौत के मामले को भारत सरकार ने गंभीरता से लिया है। सरकार ने केंद्र और राज्यों के दवा नियामक अधिकारियों को इस बाबत सख्त ऐक्शन और जांच के निर्देश दिए हैं। साथ ही नकली दवाओं की रोकथाम को लेकर पहले से ज्यादा सतर्क रहने के निर्देश भी दिए हैं।
इस बीच दवाइयों की गुणवत्ता में आ रही गिरावट ने भी सरकार की टेंशन को बढ़ा दिया है। नवंबर में दवा नियामक निकायों ने रैंडम 1487 दवाओं के सैंपल जांच के लिए भेजे। जांच में पता चला 83 दवाओं यानी 6 फीसदी दवाओं की क्वालिटी बेहद खराब थी। 
जिन दवाओं की गुणवत्ता खराब पाई गई इनमें ब्लड प्रेशर कम करने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले एंटासिड एंटीबायोटिक्स दवाओं के कुछ सैंपल शामिल थे। अक्टूबर में 1280 दवाओं के सैंपल में से 50 (4 फीसदी) निम्न गुणवत्ता वाली दवाइयां थी। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की ओर से अपनी वेबसाइट पर अपलोड किए गए आंकड़ों के अनुसार जनवरी में 27 फरवरी में 39 मार्च में 48 अप्रैल में 27 मई में 41 जून में 26 जुलाई में 53 अगस्त में 45 और सितंबर में 59 दवाओं के सैंपल की क्वालिटी खराब पाई गई।
कॉमनवेल्थ मेडिकल असोसिएशन के महासचिव डॉ जे ए जयलाल ने कहा दवा उद्योग को रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार अधिकांश राज्य इकाइयों में कर्मचारियों की कमी है। इस मुद्दे को कई बार उजागर किया गया है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है। गांबिया और उज्बेकिस्तान प्रकरणों की जांच के बाद भारत को दवा निर्माण और बिक्री में गड़बड़ी को कम करने के लिए दृढ़ता से कार्य करने की आवश्यकता है।
इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा कि सरकार ने देश भर में दवा निर्माण इकाइयों के निरीक्षण के लिए राज्य के अधिकारियों के साथ एक संयुक्त पहल भी शुरू की है। उन्होंने कहा हमने स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया के साथ एक बैठक की जिसमें उन्होंने बताया कि अच्छी मैनिफैक्चरिंग प्रैक्टिस का सख्ती से पालन करने और अधिक कार्रवाई की योजना बनाई गई है। 
भारत अपनी जेनेरिक दवाओं और कम लागत वाले टीकों के कारण दुनिया की बड़ी फार्मेसी के रूप में जाना जाता है। भारत सरकार दवाइयों के क्षेत्र में और बेहतर सुधार करने के लिए समय-समय पर दवा कंपनियों के लिए आवश्यक निर्देश जारी करती है। उसी कड़ी में नवंबर में केंद्र ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें कहा गया था कि शेड्यूल एच2 में शामिल दवा बनाने वाली कंपनियां अपनी पैकेजिंग लेबल पर बार कोड या क्यूआर कोड प्रिंट चिपकाएंगे। इस निर्देश के जरिए भारत सरकार ने दवाइयों की क्वालिटी को लेकर दवा कंपनियों की जवाबदेही तय की थी।