नई दिल्ली । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ) ने ‎पिछले दस सालों में एक से बढ़कर एक नई उपल‎ब्धियां हा‎सिल की हैं। इस अव‎धि में इसरो ने कुल 47 लां‎चिंग करके इ‎तिहास बनाया है। अभी हाल ही में इसरो ने 14 जुलाई 2023 को चंद्रमा की सतह पर रोबोटिक सॉफ्ट लैंडिंग की दिशा में एक और प्रयास किया। एलवीएम-3 रॉकेट द्वारा चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा में लॉन्च करने के साथ इसरो के तीसरे चंद्रमा मिशन की शुरुआत हुई। इससे पहले 2008 व 2019 में दो मून मिशन लॉन्च हो चुके हैं। जानकार बता रहे हैं ‎कि इस बार यदि इसरो के लैंडर की चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग सफल हो जाती है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। गौरतलब है ‎कि साल 1969 में अपनी स्थापना के बाद से, देश की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने वाले कुल 89 लॉन्च मिशनों को अंजाम दिया है। इन के विश्लेषण से पता चलता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के तहत पिछली सभी सरकारों की तुलना में अधिक लॉन्चिंग हुई है। कोविड-19 महामारी के कारण इसरो के लॉन्च की गति धीमी होने के कारण 2020-21 के दौरान केवल कुछ ही मिशन शुरू किए जा सके। बावजूद इसके 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से भारतीय अंतरीक्ष एजेंसी ने 4 अलग-अलग लॉन्च व्हिकल का उपयोग करके 47 मिशन लॉन्च किए हैं।
हालां‎कि इसरो ने मनमोहन सरकार के दौरान 24, वाजपेयी सरकार के दौरान 6 और नरसिम्हा राव सरकार के दौरान 5 मिशन लॉन्च किए थे। पिछले 9 सालों में इसरो द्वारा लॉन्च किए गए 47 मिशनों में से केवल 3 उपग्रहों को उनकी इच्छित कक्षाओं में स्थापित करने में विफलता मिली, बाकी सभी मिशन सफल रहे। तीन असफल मिशनों में लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान की पहली उड़ान, 2017 का पीएसएलवी मिशन शामिल है। इसमें नेविगेशन तारामंडल के लिए प्रतिस्थापन किया गया था, जब उपग्रह की सुरक्षा करने वाला हीट शील्ड नहीं खुला था, और 2021 जीएसएलवी मिशन जहां हाइड्रोजन टैंक में अपर्याप्त दबाव के कारण तीसरा चरण प्रज्वलित नहीं हो सका।
इसी तरह 22 जुलाई, 2019 को लॉन्च किए गए चंद्रयान-2 मिशन ने सफलतापूर्वक उड़ान भरी और चंद्रमा के चारों ओर एक ऑर्बिटर स्थापित किया, लेकिन यह चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के इच्छित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका। केंद्रीय राज्य मंत्री, जितेंद्र सिंह, अंतरिक्ष मिशनों की गति में वृद्धि का श्रेय मोदी सरकार को रहे हैं। उन्होंने कहा ‎कि पहले, हम सीमित जनशक्ति, सीमित संसाधनों के साथ काम कर रहे थे और दूसरों को भाग लेने की अनुमति नहीं दे रहे थे, ले‎किन सरकार इतनी बड़ी धनराशि नहीं दे सकती थी और इसलिए, एक तरह से, हम वास्तव में खुद को अक्षम कर रहे थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। प्रक्षेपण वाहनों के निर्माण के लिए उद्योग साझेदारी बढ़ाने के अलावा, इसरो ने हाल के वर्षों में, मिशनों के बीच के समय को कम करने के लिए पीएसएलवी एकीकरण सुविधा स्थापित करने जैसे बदलाव भी किए हैं।