फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों इस दुनिया में दो तरह के लोग रहते हैं पहले वे जो हर काम के लिए किसी ना किसी को दोष देते हैं और दूसरे वे जो दोष देने के स्थान पर अपने जीवन में घटने वाली हर घटना की ज़िम्मेदारी लेते हैं। एक क़िस्मत को दोष देता है तो दूसरा उसे बनाने पर जोर देता है। एक हर परिस्थिति में समस्या तो दूसरा उसमें अवसर खोजता है। एक जीवन को बोझ समझ उसे काटता है तो दूसरा उसे ईश्वर का दिया हुआ बेहतरीन तोहफ़ा मान जीवन के हर पल को जीता है।

दोस्तों अगर ध्यान से अपने आस-पास देखेंगे तो आप पाएँगे कि उपरोक्त दोनों तरह के लोग, एक-दूसरे के पूर्णतः विपरीत होते हुए भी, एक ही परिवार के दो सदस्यों के रूप में मिल जाएँगे। सोचने वाली बात यह है दोस्तों, माहौल, परवरिश, परिस्थितियाँ आदि सब कुछ एक समान होने के बाद कौन सी ऐसी चीज़ है, जो दोनों को एक-दूसरे से बिलकुल अलग बनाती है? तो मेरा जवाब है दोस्तों, ‘नज़रिया!’, जी हाँ, जीवन को देखने का नज़रिया ही यह अंतर पैदा करता है और मज़े की बात तो यह है दोस्तों कि अपने काम करने के तरीक़ों में छोटा-मोटा बदलाव करके कोई भी इंसान यह नज़रिया विकसित कर सकता है। आईए आज हम उन 9 कार्यों को पहचानने की कोशिश करते हैं जो हमें यह नज़रिया विकसित करने में मदद कर सकते हैं-

1) लक्ष्य को ध्यान में रख कार्य करें - पूरे साल बिना उद्देश्य कितनी भी मेहनत क्यूँ ना कर ली जाए व्यक्ति कहीं पहुँच नहीं पाता है। इसलिए दोस्तों अपने दिन की शुरुआत किसी ना किस लक्ष्य के साथ करें फिर वह बिजली का बिल भरना, बच्चों की  फ़ीस जमा करना, किराना लाना जैसा घर का कोई छोटा सा काम ही क्यूँ ना हो। स्वयं को शारीरिक एवं मानसिक रूप से किसी लक्ष्य को पाने के लिए व्यस्त रखना आपको फ़ालतू भटकने से बचा लेता है।

2) ज्ञानी लोगों के साथ रहें - कहते हैं ना, ‘ख़रबूज़े को देखकर ख़रबूज़ा रंग बदलता है।’ ठीक इसी तरह आप जिन लोगों के साथ रहते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। इसलिए स्वयं को अपने से समझदार, अपने से ज्ञानी और बेहतर लोगों के बीच रखें। उनका साथ आपको हर पल चुनौतीपूर्ण माहौल में बनाए रखता है। जिसकी वजह से आपको खुद से बेहतर बनने, कुछ नया सीखने की प्रेरणा मिलती हैं। इसीलिए मेरा मानना है मूर्खों के समूह के मुखिया बनकर रहने से बेहतर है, विद्वानों के सहायक बन कर रहना।

3) कपड़ों, शब्दों और रहने के तौर - तरीक़ों का चयन अपनी पद-प्रतिष्ठा के अनुरूप रखें - सुनने में साधारण लगने वाला यह बिंदु असल में बहुत महत्वपूर्ण है क्यूँकि आपका पहनावा, रहन-सहन, बोलचाल आपके बारे में बहुत कुछ बता देता है। इसलिए दोस्तों कपड़ों को सिर्फ़ तन ढकने का साधन ना माने। हमेशा साफ़-सुथरे, प्रेस किए हुए, समय या कार्य के अनुरूप कपड़े पहनें। ठीक इसी तरह, भले ही कम लेकिन अपनी गरिमा के अनुरूप बोलें। जी हाँ साथियों, मुँह खोलने से पहले ध्यान रखें कि आपके शब्द आपकी प्रतिष्ठा, आपकी ईमानदारी को दर्शाते हैं। जब तक सम्भव हो, मौन रहना ही बेहतर विकल्प है।

4) समाज में अपना दायित्व निर्वहन अवश्य करें - वृद्ध, निराश्रित और जरूरतमंदों के लिए फ़िक्रमंद रहना, उनकी मदद करना आपकी आत्मा को सुकून देता है, उसे मैली होने से बचाता है। इसलिए एक निश्चित अंतराल पर अनाथालय, वृद्धाश्रम, विशेष देखभाल वाले बच्चों के विद्यालय, जरूरतमंद लोगों व गरीब बस्तियों में ज़रूर जाएँ और अपनी क्षमता के अनुसार उनकी मदद करें। साथ ही अपनी ओर से प्रयास करें कि वे अवांछित या उपेक्षित महसूस न करें। साधारण शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो मानवता और इंसानियत को ध्यान में रखकर अपना जीवन जिएँ या कार्य करें।

5) हर पल प्रार्थना करें एवं कृतज्ञ रहें - दोस्तों कई बार हमें लगता है कि चीज़ें हमारी सोच, हमारी योजना के अनुसार घट रही है। लेकिन हक़ीक़त में दोस्तों जो कुछ हो रहा है वो उस परमपिता परमेश्वर की योजनानुसार हो रहा है बस संयोग इतना सा है कि इस बार आपकी और उस परमपिता परमेश्वर की योजना एक सामान है।याद रखें, इस जीवन में सब कुछ तार्किक आधार पर नहीं घटता। इसलिए हर पल परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करें और उनके द्वारा दिए गए इस जीवन और हर चीज़ के लिए कृतज्ञ रहें।

6) यथार्थवादी सकारात्मक रहें - अगर आप कम से कम समय और ऊर्जा में सफल होना चाहते हैं तो अपने अंदर यथार्थवादी सकारात्मक सोच विकसित करें। उदाहरण के लिए आप किसी बाघ को मंदिर में पूजा, प्रार्थना करते हुए देखें तो उस वक्त मंदिर में जाने से बचें, भले ही आपकी सकारात्मक सोच आप से कहे कि, ‘बाघ तो अभी पूजन, प्रार्थना कर रहा है इसलिए वो मेरा शिकार क्यों करेगा?’ तब भी यथार्थवादी रहें और खुद को याद दिलाएँ, ‘प्रार्थना, पूजन के बाद बाघ, बाघ ही रहेगा और भगवान उसके भोजन के लिए मांस का प्रबंध ही करेंगे।’ जी हाँ दोस्तों, सकारात्मक रहने का अर्थ यह क़तई नहीं होता है कि हम चुनौतियों, परेशानियों को नज़रंदाज़ करना शुरू कर दें, कोई दुष्ट पूजा-अर्चना कर रहा है इसका अर्थ यह नहीं है कि उसने दुष्टता करना बंद कर दिया है।

7) अपनों को उनके विशिष्ट होने का एहसास कराएँ - जीवन में कुछ लोग होते हैं जो आपका ख़याल अपने से भी ज़्यादा रखते हैं कभी-कभी उन्हें उपहार देकर, तारिफ़ करके, एहसास दिलाएँ कि वे आपके लिए ख़ास हैं। अगर परिवार में कोई बुजुर्ग है अर्थात् माता-पिता, दादा-दादी या कोई और भी, उनके लिए कुछ ना कुछ करते रहें, उन्हें एहसास कराएँ कि आप उनसे बहुत दूर नहीं हैं।

8) निवेश करें - पिछले कुछ वर्षों में हमने कोरोना की वजह से अपने व्यवसाय, बाज़ार व आमदनी को ऊँचा-नीचा होते हुए देखा है। इसलिए इस वर्ष ख़र्चों को कम करके साधारण बचत करने के स्थान पर निवेश करने पर ध्यान दें, साथ ही एक से ज़्यादा आय के साधन तैयार करें।
 
9) याद रखें, कुछ भी स्थाई नहीं है, आप भी - जी हाँ साथियों, आपसे पहले भी कई विशिष्ट लोग इस दुनिया में आए और चले गए, आपके साथ भी ऐसा ही होगा। वे भी अपने काम, अपनी धन-दौलत, मरने के बाद अपने साथ नहीं ले जा पाए, आप भी नहीं ले जा पाएँगे। जी हाँ, आप उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं जितना आप स्वयं को मानते हैं, इसलिए शांत रहें, अपने काम से समय निकालें और अपने शरीर, परिवार, दोस्तों, शौक़, प्रकृति व अन्य चीजों की सराहना करें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com