फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

हाल ही में ग्वालियर स्थित प्रेस्टीज इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेनेजमेंट एंड रिसर्च में अंतराष्ट्रीय कॉन्फ़्रेन्स एवं बच्चों के लिए आयोजित किए गए ‘बूट कैम्प’ अर्थात् बच्चों को भविष्य निर्माण के लिए आवश्यक जानकारी साझा करने का मौक़ा मिला। ट्रेनिंग के तुरंत बाद एक विद्यार्थी ने मुझसे एक प्रश्न किया, ‘सर, कोई एक कार्य ऐसा बताइए जिससे मेरा जीवन सफल हो सके।’ मैंने उस बच्चे से अपना प्रश्न स्पष्ट करने के लिए कहा तो वह बोला, ‘सर, मुझे कोई ऐसा सूत्र दीजिए जिससे मैं अपने जीवन को सफल, सुरक्षित, शांत एवं सुखी रहते हुए व्यतीत कर सकूँ।’  

21-22 साल के बच्चे से यह प्रश्न सुन मैं आश्चर्यचकित था। मैंने उसे एक कहानी के माध्यम से जवाब देने का निश्चय किया। ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक था क्यूँकि इस उम्र के बच्चे आध्यात्म पर आधारित उत्तर के स्थान पर तार्किक आधार पर सिद्ध किए जा सकने वाले जवाब सुनना पसंद करते हैं और मैं उसे आध्यात्म और तर्क दोनों की कसौटी पर सही उत्तर देना चाहता था। मैंने उससे कहा, ‘चलो हम कहानी के माध्यम से तुम्हारे प्रश्न का जवाब खोजने का प्रयास करते हैं।’

बात कई वर्ष पुरानी है, एक गाँव में चार दोस्त रहा करते थे। चारों ही दोस्तों में बहुत प्रगाढ़ दोस्ती थी, उन्होंने अपने जीवन में अच्छा-बुरा सभी तरह का समय साथ निभाया था। एक दिन उनमें से एक व्यक्ति की तबियत बहुत ख़राब हो गई। उसने कई माह तक काफ़ी इलाज कराया पर कोई फ़र्क़ ही नहीं पढ़ रहा था।

एक दिन डॉक्टर से हुई बातचीत के आधार पर उसे एहसास हुआ कि उसके पास अब बहुत कम समय बचा है और अब उसकी मृत्यु एकदम निकट है। उसने अपने सभी दोस्तों को बुलाकर, इतने वर्षों तक साथ देने के लिए धन्यवाद दिया और बोला, ‘हम सभी ने पूरे जीवन एक-दूसरे का साथ निभाया है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि मृत्यु के बाद भी तुम लोग मेरा साथ दो।’

उसके इतना कहते ही वहाँ कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। कुछ देर बाद तीनो दोस्तों में से एक बोला, ‘मित्र, तुम कैसी असम्भव सी बात कर रहे हो। यह कैसे सम्भव है? मैंने आजीवन तुम्हारा साथ निभाया लेकिन अब मैं बेबस हूँ। यहाँ से आगे की यात्रा तुम्हें अपने आप ही तय करना होगी। मैं किसी भी तरह से तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता हूँ।’

पहले मित्र की बात पूरी होते ही दूसरा मित्र बोला, ‘मित्र, मृत्यु को रोकना या उसके बाद साथ निभाना मुझे असम्भव लगता है। पर मैं इतना सुनिश्चित कर सकता हूँ कि मृत्यु के बाद तुम्हारा अंतिम संस्कार सही तरीक़े से हो, जिससे तुम्हें मोक्ष मिल सके।’

तीसरा मित्र अभी भी शांत था। उस व्यक्ति ने तीसरे मित्र की ओर देखते हुए कहा, ‘मित्र तुमने अभी तक कुछ नहीं कहा। इस विषय में तुम्हारा क्या ख़याल है? मृत्यु के बाद क्या तुम मेरा साथ दोगे?’ उस व्यक्ति की बात सुन तीसरा मित्र बोला, ‘मित्र, भले ही समय अच्छा रहा हो या बुरा, हमने कभी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। तुम बिलकुल भी चिंता मत करो, मैं मृत्यु के बाद भी तुम्हारा साथ दूँगा। तुम जहाँ भी जाओगे, मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।’

इतना कहते ही मैंने उस युवा बच्चे की ओर देखा और कहा, ‘उस व्यक्ति की ही तरह हम सभी के तीन मित्र हैं। पहला मित्र, पैसा है, जो आप जब तक जीवित हैं, तब तक आपका साथ निभाता है। हमारा दूसरा मित्र, हमारा परिवार और करीबी मित्र होते हैं जो हमारे अंतिम संस्कार तक हमारा साथ निभाते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण और सबसे सही दोस्त हमारा तीसरा मित्र अर्थात् कर्म होता है जो मृत्यु के बाद भी हमारे साथ रहता है। इसलिए मेरे अनुसार जीवन को सफल, सुरक्षित, शांत एवं सुखी बनाने का एकमात्र तरीक़ा अच्छे कर्म करना है। अच्छे कर्म ना सिर्फ़ मृत्यु के बाद की यात्रा में साथ निभाते हैं बल्कि आपके जीवन के हर लक्ष्य को पूर्ण करने में आपकी मदद करते हैं। यही एकमात्र ऐसी चीज़ है जिसकी सहायता से आप अपने जीवन के और जीवन के बाद के सभी लक्ष्यों को पा सकते हैं इसीलिए कहा गया है,

‘सुखस्य दुःखस्य न कोSपि दाता परो ददातीति कबुद्धिरेषा । अहं करोमीति वृथाभिमानः  सवकर्मेसूत्रे ग्रथितो हि लोकः ।।

अर्थात् जीवन में सुख और दुःख किसी अन्य के दिए नहीं होते; कोई दूसरा मुझे सुख-दुःख देता है यह मानना व्यर्थ है। ‘मैंने करा है’ यह मानना भी मिथ्याभिमान है। समस्त जीवन और सृष्टि स्वकर्म के सूत्र में बंधे हुए हैं।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com