फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, ज़िंदगी एक ऐसी पाठशाला है जो खुशहाल जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण पाठ आपको रोज़मर्रा में हमारे जीवन में घटने वाली घटनाओं से सिखाती है। बस आपको सजग रहते हुए उन घटनाओं में छुपे जीवन के सूत्रों को पहचानना होता है। ऐसा ही कुछ अनुभव मुझे कल मध्यप्रदेश में गाडरवारा से भोपाल होते हुए इंदौर वापस आते वक्त हुआ। पूरी घटना कुछ इस प्रकार थी-

शाम को लगभग 6 बजे मुझे आशा के विपरीत सीहोर बाइपास पर अत्यधिक ट्राफ़िक महसूस हुआ। मैं अभी इसका कारण समझने का प्रयास कर ही रहा था कि पास से गुजरती हुई गाड़ी के ड्राइवर ने कहा, ‘आगे रोड जाम है आप वापस लौट जाइए।’ लम्बे सफ़र के बाद, अपने गंतव्य के समीप पहुँचकर, वापस लौटना या रास्ते में रुकना मुझे उचित नहीं लगा। मैंने बाइपास की जगह सीहोर शहर के बीच से जाने का निर्णय लिया।

लगभग 5 से 7 किलोमीटर तक तो मैं बहुत आराम से चला, लेकिन उसके बाद मुझे फिर से एक बड़े ट्राफ़िक जाम का सामना करना पड़ा। फ़ोर लेन पर इतना भयानक जाम, जिसमें गाड़ियाँ छोड़िए, पैदल व्यक्ति भी ठीक से नहीं चल पा रहा था, देख मैं  आश्चर्यचकित था। मैंने आसपास की कई गाड़ियों से इस विषय में जानने का प्रयास करा तो पता चला कि मध्यप्रदेश के सीहोर ज़िले के चितावालिया हेमा गाँव के समीप पंडित प्रदीप मिश्रा द्वारा 7 दिवसीय 'शिव महापुराण व रुद्राक्ष महोत्सव' का आयोजन
किया गया है और उस कथा को सुनने आए लगभग 50-60000 श्रद्धालुओं की भीड़ की वजह से 25 किलोमीटर लम्बा जाम लग गया है।

जाम का कारण पता लगने के बाद शुरुआती दौर में जाम में फँसे लोगों के समान मेरा भी मानना यही था कि आयोजक और प्रशासन दोनों आने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ का सही आकलन नहीं कर पाए और इसी वजह से 15 दिन पूर्व तैयारियाँ शुरू करने के बाद भी मूलभूत व्यवस्थाओं के स्तर पर पूरी तरह असफल रहे। दोस्तों जाम की स्थिति का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि मैं 1 घंटे में लगभग 2 किलोमीटर की दूरी तय कर पाया था। ऐसे में थोड़ा परेशान होना मुझे शुरू में तो जायज़ ही लग रहा था और मेरे इस विचार को मज़बूत बनाने का काम वहाँ का माहौल कर रहा था।

प्रशासन और आयोजक की मैनेजमेंट स्तर पर असफलता, जाम में फँसे होने के बाद भी हॉर्न बजाते, ग़लत तरीक़ों से बीच में घुसते वाहन चालक, प्रदूषित हवा, नेताओं की गाड़ी पर लगे सायरन का शोर, फँसी एम्बुलेंस को देखने का दर्द शुरू में तो मेरी बेचैनी को बहुत ज़्यादा बढ़ा रहा था और इसका असर गाड़ी चलाने के मेरे तरीक़े से स्पष्ट नज़र आने लगा था। मेरे बदलते मिज़ाज को मेरी पत्नी तत्काल भाँप गई और बोली, ‘परेशान होने से क्या फ़ायदा, हम आराम से गाड़ी के अंदर ए॰सी॰ में बैठे हुए हैं। 2 की जगह 4 घंटे में घर पहुँच जाएँगे।’ बात तो उसकी बिलकुल सही थी और इसने मेरे ऊपर एकदम जादू की तरह असर किया और हमने इंटरनेट और रेडियो की सहायता से गाने सुनते हुए सफ़र को अंग्रेज़ी का सफ़र होने से बचा लिया और मज़े लेते हुए रात्रि 12 बजे के लगभग इंदौर पहुँच गए। 

दोस्तों, इसी दौरान मेरे मन में एक और विचार आया, इसी तरह का जाम कई बार हमारे अंदर भी तो लग जाता है। जी हाँ दोस्तों, हमारे अंदर होने वाला यह ट्राफ़िक जाम कभी विचारों का होता है, तो कभी भावनाओं का। लेकिन अकसर हम इस जाम को नज़रंदाज़ कर जाते हैं और भूल जाते हैं कि हमारे अंदर लगने वाले जाम का असर बाहरी ट्राफ़िक जाम जैसा तात्कालिक या कुछ घंटों का ना होते हुए जीवन को लम्बे समय तक प्रभावित करने वाला होता है। साथियों अगर आप शांतिपूर्ण तरीक़े से संतुष्ट और सुखी रहते हुए जीवन जीना चाहते हैं तो आज से ही अपनी प्राथमिकताओं को तय करते हुए अपना आंतरिक प्रबंधन सुधारे और जीवन काटने के स्थान पर जीना शुरू करें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com