फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, कई बार जीवन के महत्वपूर्ण पाठ हंसी-मज़ाक़ में भी सीखने को मिल जाते है। ऐसा ही कुछ कल मेरे साथ घटा। एक मित्र ने मुझे हास्य से भरपूर एक क़िस्सा सुनाया, जो इस प्रकार था-

रोज़ की भाँति रामू कंडक्टर बस में अपनी ड्यूटी निभा रहा था। नियत स्टॉप ड्राइवर को रुकने और फिर चलने का इशारा करना जिससे सवारी उतर और चढ़ सके। शुरुआती 5-6 स्टॉप पर तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा, लोग बस में चढ़ रहे थे, अपना टिकट ले रहे थे और अपना स्टॉप आने पर उतरते जा रहे थे। लेकिन अगले स्टॉप पर कुछ ऐसा घटा जो असामान्य सा था। बस रुकने पर एक छह फूट दो इंच का हट्टा-कट्टा पहलवान सा दिखने वाला व्यक्ति बस में चढ़ा और रामू की ओर देखते हुए बोला, ‘राजू पहलवान टिकट नहीं लेता है।’ और जाकर एक ख़ाली सीट पर बैठ गया।

रामू कंडक्टर जो पाँच फुट का दुबला-पतला नम्र स्वभाव का व्यक्ति था। उसने इस असामान्य सी घटना को नज़रअन्दाज़ करना ही बेहतर समझा। लेकिन उस दिन रामू को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। ख़ैर, किसी तरह रामू ने खुद को सामान्य करा। लेकिन अगले दिन उसी स्टॉप से वही व्यक्ति फिर से बस में चढ़ा और रामू को देखते हुए बोला, ‘राजू पहलवान टिकट नहीं लेता है।’ और ख़ाली सीट पर बैठ गया। रामू आज फिर बहुत परेशान हुआ लेकिन किसी तरह उसने खुद को सम्भाला। अब तो यह रोज़ का ही सिलसिला बन गया था, कंडक्टर रामू को लगने लगा था कि पहलवान अपनी क़द-काठी का फ़ायदा उठा रहा है। अपनी नौकरी से खिलवाड़ करने की वजह से वह बहुत परेशान रहने लगा और इस वजह से उसकी रातों की नींद उड़ गई।

एक दिन रामू के मन में विचार आया कि आख़िर कब तक मैं अपनी आत्मा को मारते हुए ग़लत कार्य करता रहूँगा? मुझे कुछ ना कुछ तो करना ही होगा। काफ़ी सोच-विचार करने के बाद उसने बॉडी बिल्डिंग, कराटे, जूडो जैसे कोर्स में दाख़िला ले लिया क्यूँकि उसे लगता था कि वह सिर्फ़ शारीरिक रूप से कमजोर होने की वजह से विरोध नहीं कर पा रहा है। लगभग 6 माह तक रामू स्वयं को शारीरिक रूप से मज़बूत बनाने में लगा रहा और राजू पहलवान उसी तरह बस में यात्रा करता रहा।

एक दिन रामू को लगा कि वह अब शारीरिक रूप से काफ़ी मज़बूत हो गया है और अब वह राजू पहलवान की मनमानी का विरोध कर सकता है। अगले दिन जैसे ही राजू पहलवान बस में चढ़ा और रोज़ की भाँति ही रामू कंडक्टर की ओर देखते हुए बोला, ‘राजू पहलवान टिकट नहीं लेता है।’ रामू खड़ा हुआ और अपनी सारी शक्ति लगाते हुए ग़ुस्से से बोला, ‘राजू पहलवान टिकट क्यों नहीं लेता है।’ राजू पहलवान मुस्कुराया और बोला, ‘क्यूँकि राजू पहलवान मंथली पास लेकर यात्रा करता है।’  राजू पहलवान का जवाब सुन रामू की स्थिति ‘खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे’ जैसी थी। उसको समझ ही नहीं आ रहा था कि किस तरह रिएक्ट किया जाए।

दोस्तों क़िस्सा सुनते ही मेरे मन में विचार आया कि अक्सर हम सब भी तो अपने जीवन में रामू कंडक्टर की ही तरह व्यवहार करते हैं। जब भी हमारे जीवन में कोई भी छोटी-मोटी समस्याओं या चुनौती आती है तो हम खुद को कमजोर मान उसका सामना करने से बचने लगते हैं।  धारणा बनाकर, साधारण से मुद्दों को जटिल मानने के स्थान पर अगर हम उस परिस्थिति का सामना हिम्मत और दृढ़ता के साथ करते हैं तो दोस्तों हम समस्या को सही तरह से पहचान पाते हैं। समस्या या चुनौती को पहचानना ही उसे हल कल करने की तरफ़ पहला और महत्वपूर्ण कदम होता है। वैसे भी कहा गया है, ’90% से ज़्यादा जीवन में हम उन बातों, समस्याओं या डरों से डरते और घबराते रहते हैं, जिनसे हक़ीक़त में हमारा सामना कभी होना ही नहीं है।’ मेरी नज़र में यह स्थिति सिर्फ़ एक मुख्य वजह से बनती है, हम दूसरों को जानने, इस दुनिया को देखने में इतने व्यस्त रहते हैं कि खुद को जानने, अपनी क्षमताओं को पहचानने का मौक़ा खो देते हैं। इसलिए दोस्तों आज से एक निर्णय लें और सबसे पहले इस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति अर्थात् खुद से अपना परिचय करवाए।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com