फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

बचपन में अक्सर एक जिज्ञासा हमेशा रहती थी कि, ‘क्या किसी दिन भगवान को साक्षात देख पाऊँगा?’ वैसे मुझे तो ऐसा लगता है जैसे यह प्रश्न सिर्फ़ मेरे ही मन में नहीं बल्कि उस वक्त के हर बच्चे के मन में उठता होगा। इसकी सबसे बड़ी वजह सिर्फ़ एक थी हम रोज़ रात को भगवान कृष्ण, सुदामा, भक्त प्रह्लाद, नृसिंह अवतार, ध्रुव तारा, सप्त ऋषि, भगवान राम, महाभारत आदि की कहानी सुनते हुए सोया करते थे या यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि इन्हीं कहानियों को सुनते हुए बड़े हुए हैं। इसलिए उस वक्त के सभी बच्चों के सपने या रोल मॉडल इन्हीं कहानियों के पात्रों से जुड़े होते थे।

ख़ैर, वापस अपने मुख्य मुद्दे पर आता हूँ, बचपन में तो विभिन्न स्थितियों में कई बार लगता था कि कभी ना कभी भगवान के दर्शन हो ही जाएँगे। जब थोड़ा बड़ा हुआ तब ऐसा लगा कि हमें जीवन मूल्य आदि सिखाने के लिए इस तरह के पात्रों को हमारे पूर्वजों ने रचा और हम उन मूल्यों का पालन करें इसलिए इसे धर्म, पाप, पुण्य के डर के साथ जोड़ दिया गया। थोड़ा और बड़ा हुआ तो लगा ईश्वर को विज्ञान या तर्कों के आधार पर देखना ही ग़लत है क्यूँकि सृष्टि बिना किसी ऐसी शक्ति से तो चल नहीं सकती है। इसलिए एक बार फिर बचपन वाला प्रश्न सामने आकर खड़ा हो गया, ‘क्या वाक़ई कभी ईश्वर के दर्शन या उनके होने का एहसास हो पाएगा?’ दोस्तों कल मुझे अपने बचपन के इस प्रश्न का जवाब मिल गया। जी हाँ, इस प्रश्न का जवाब मिल गया, हम सभी ईश्वर के होने का ना सिर्फ़ एहसास कर सकते हैं बल्कि उनसे मिल भी सकते हैं। जी हाँ दोस्तों मिल भी सकते हैं, बल्कि यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि जीवन में आज तक कभी ना कभी उनसे मिल भी चुके हैं। चलिए प्रश्नों या घुमा-फिरा कर बात करने की जगह अपनी बात आपको समझाने के लिए आपको एक क़िस्सा सुनाता हूँ-

बात वर्ष 1997-98 की है एक दिन मेरे ताऊजी की तबियत अचानक बिगड़ गई। मेरे बचपन के मित्र डॉक्टर हर्षवर्धन चौधरी (जो उस वक्त मेडिकल के छात्र थे) की सलाह पर ताऊजी को इलाज के लिए इंदौर भर्ती करवाया। इलाज के दौरान बी निगेटिव ब्लड की आवश्यकता पड़ने पर पहले डॉक्टर प्रमोद कौशिक, जो कि मेरे पड़ौसी होने के साथ-साथ परिवार के सदस्य की भाँति थे, ने मदद की और उसके बाद और ज़रूरत पड़ने पर पेजर पर मैसेज पाकर एक सज्जन अपनी व्यवस्था से इंदौर पहुंचे और जब तक हम उनसे बात कर कुछ समझ पाते, वे ब्लड डोनेट करके वापस चले गए। लगभग एक माह चले इलाज के दौरान ऐसे ही कई अनजान साथियों की मदद मिली।

अस्पताल से डिस्चार्ज होने के पश्चात आगे के इलाज के लिए ताऊजी को रेडियेशन देने की आवश्यकता थी। इसलिए हमारे सामने अब एक नई समस्या थी, ताऊजी के साथ एक माह इंदौर में कहाँ रुका जाए क्यूँकि मेरा घर उज्जैन में था और मेरी नज़र में ऐसा कोई स्थान नहीं था जहाँ घर जैसी व्यवस्था के साथ ताऊजी को रखा जा सके। काफ़ी कोशिश के बाद भी कोई समाधान नहीं निकल पा रहा था। एक दिन इस विषय में अपने कज़िन से बात करते समय सारी बात उनके मित्र श्री ब्रजेंद्र उपाध्याय ने सुन ली। उन्होंने एक पल से भी कम समय में निर्णय लिया और अस्पताल के पास ही स्थित अपने घर पर ताऊजी को उसी तरह रखा जैसे कोई अपने परिवार के बुजुर्ग को रखता है।

सब लोगों से मिली मदद और शुभकामनाओं की वजह से ताऊजी जल्द ही स्वस्थ हो गए। आज जब जीवन में पीछे मूड कर देखता हूँ तो लगता है, डॉक्टर हर्षवर्धन, डॉक्टर कौशिक और श्री ब्रजेंद्र उपाध्याय भाई जैसे लोगों की वजह से ही ताऊजी अपना बचा हुआ जीवन आराम से जी पाए।

दोस्तों, जीवन में ईश्वरीय चमत्कार तो कई होते हैं, लेकिन चमत्कारी लोग आसमान से नहीं टपकते, बल्कि वे हमारे आस-पास ही मौजूद होते हैं। ठीक इसी तरह ईश्वर भी आपको आस-पास मौजूद लोगों के रूप में ही दर्शन देते हैं और यक़ीन मानिएगा आप भी छोटे-मोटे कार्यों द्वारा दूसरों के जीवन में चमत्कार करने के लिए ईश्वर का रूप धारण कर सकते हैं। वैसे भी तो कहा गया है दोस्तों कि ईश्वर का कण हमारे अंदर मौजूद है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com