फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

आईए दोस्तों आज के लेख की शुरुआत तीन सच्ची घटनाओं से करते हैं-

पहली घटना - दिनांक 6 जनवरी 22 को ग्वालियर के एक कॉलेज में छात्रों को सम्बोधित करने जाने के लिए मैं इंदौर एयरपोर्ट पहुँचा। एयरपोर्ट पर सुरक्षा जाँच से लेकर बोर्डिंग तक सब कुछ सामान्य रहा लेकिन ग्वालियर में मौसम ख़राब होने के कारण  लगभग ढाई घंटे इंडिगो के एयरक्राफ़्ट में इंदौर में ही इंतज़ार करने के बाद पता चला कि मौसम की ख़राबी की वजह से फ़्लाइट कैन्सल कर दी गई है।

फ़्लाइट में इंदौर से बोर्ड करने वाले यात्रियों के अलावा जयपुर, हैदराबाद, मुंबई, पुणे जैसे कई और शहरों के यात्री भी थे, जो पिछले 5-6 घंटों से हवाईजहाज़ में ही थे। इनमें से कुछ यात्रियों के लिए पारिवारिक एवं स्वास्थ्य कारणों से उसी दिन जाना आवश्यक था। लेकिन इंडिगो ने नियम पुस्तिका से चलते हुए यात्रियों को केवल अपना टिकट कैन्सल करने अथवा उस दिन उपलब्ध अन्य शहरों की फ़्लाइट में से किसी एक को चुनने को कहा। साथ ही जो यात्री ग्वालियर ही जाना चाहते थे वे अगले दिन की फ़्लाइट चुन सकते थे पर इस स्थिति में इंदौर में रुकने का इंतज़ाम उन्हें ही करना होगा।

कुछ यात्रियों ने टिकिट कैन्सल करके अपने संसाधन से जाने का निर्णय लिया क्यूँकि उन्हें ग्वालियर में अपने बीमार माता-पिता से मिलने जाना था। उन्होंने व कुछ अन्य यात्रियों ने आकस्मिक रूप से सामने आयी परिस्थितियों से निपटने के लिए इंडिगो से पैसों की वापसी नगद में करने की माँग करी, लेकिन जब तक मैं वहाँ था इंडिगो ने नियमों का हवाला देते हुए नगद देने से इनकार करा। पूरे समय एयरलाइन कर्मी इंसानियत के स्थान पर अपनी नियम पुस्तिका से चले।


दूसरी घटना - दो दिन पूर्व अपने व्यवसायिक कार्य से भोपाल जाना हुआ। अपने साथी के साथ संध्या भोजन मैंने एमपी नगर स्थित एक प्रसिद्ध तीन मंज़िला रेस्टोरेंट में करने का निर्णय लिया। रेस्टोरेंट में ऑर्डर देते वक्त मेरे मित्र ने प्लास्टिक वेस्ट कम से कम करने के उद्देश्य से वेटर को आर॰ओ॰ का पानी देने के लिए कहा। वेटर ने हमारी टेबल पर तुरंत बाहर से गीले और कहीं-कहीं से पानी सूखने की वजह से बने निशान वाले स्टील के ग्लास लाकर रख दिए। जबकि हमारी पास वाली टेबल पर काँच के एकदम चमचमाते, साफ़ सुथरे पानी के ग्लास रखे हुए थे। मेरे मित्र ने वेटर से जब इसकी वजह पूछी तो वह बोला, ‘सर हम बोतल बंद पानी के साथ काँच के ग्लास देते हैं।’ वेटर का जवाब सुन मैं हैरान था क्यूँकि एक ओर उसपर, उसकी क्वालिटी पर अर्थात् उसके यहाँ उपलब्ध आर॰ओ॰ के पानी की शुद्धता पर भरोसा करने वाले ग्राहक थे और दूसरी ओर बोतल बंद पानी पर भरोसा करने वाले लोग।

दोस्तों मेरा मानना है कि आर॰ओ॰ पानी की क्वालिटी बताकर होटल स्टाफ़ अगर बोतल बंद पानी ख़रीदने के लिए हतोत्साहित करता तो शायद वह ग्राहकों के मन में शुद्ध व सर्वोत्तम भोजन और पानी परोसने की अपनी छवि बना सकता था। इसके विपरीत, अतिरिक्त मुनाफ़े की वजह से उसने पानी की बोतल बेचने पर जोर दिया और अनजाने में ही संदेश दिया कि, ‘हम पर नहीं बल्कि बोतल बंद चीजों पर विश्वास करो’ या सीधे शब्दों में कहूँ तो बाज़ार में सामान लेते वक्त बड़े ब्रांडों को चुनो।

तीसरी घटना - लगभग 15 दिन पूर्व व्यवसायिक कार्य पूर्ण कर राजकोट, गुजरात से लौटते वक्त मेरे परिचित ने मुझसे मेरा लैपटॉप बेग यह कहते हुए ले लिया, ‘सर मुझे यह बेग पसंद आ गया है, कृपया इसे मुझे दे दीजिए। आप तो इंदौर ही जा रहे हैं वहीं से कृपया दूसरा बेग ले लीजिएगा।’ मैंने उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए वह बेग उन्हें दे दिया और वापस इंदौर आ गया। अगली यात्रा से पूर्व, नया बेग लेने के उद्देश्य से मैं देवास बाइपास के पास स्थित राज लेदर गुड्ज़ जो कैरीबू के नाम से लेदर गुड्ज़ बनाते हैं, के शोरूम पर गया। वहाँ में अपने साथी को उपरोक्त घटना बता रहा था उस वक्त हमारी बातें शोरूम के संचालक श्री मुख़्तार आलम ने सुन ली। वे तुरंत हमारे पास आए और बड़ी शांति के साथ पूरी घटना सुनी और फिर मेरे कार्य और प्रोफ़ेशन को समझने के पश्चात बोले, ‘सर, मैं यहाँ मौजूद बेग में से एक पसंद करवाकर आज अपनी सेल तो बढ़ा सकता हूँ। लेकिन मेरा मानना है कि अगर आप मुझे कुछ दिन का समय देंगे तो मैं आपको आपकी आवश्यकताओं के अनुसार एक अच्छा बेग बनाकर दे पाऊँगा।’

मुझे उनका सुझाव पसंद तो बड़ा आया पर मैंने उसे नज़रंदाज़ करते हुए पहली बार लिए जैसे बेग को ही ख़रीदने का मन बनाया क्यूँकि मेरे लिए अपनी अगली यात्रा, जो अगले दिन से शुरू हो रही थी, के पूर्व बेग लेना आवश्यक था। अपने अनुभव से मुख़्तार जी तुरंत मेरी परेशानी भाँप गए और अपनी ओर से उपयोग करने के लिए एक बेग उपलब्ध करवा दिया। मैंने उन्हें अपने ऑर्डर वाले बेग के लिए एडवांस देने का प्रस्ताव दिया जिसे उन्होंने विनम्रता के साथ ठुकरा दिया और कहा, ‘जब आप बेग लेने आएँगे तब मैं भुगतान ले लूँगा।’ उनके व्यवहार को देख में हैरान था, उन्होंने अपने मुनाफ़े के स्थान पर मेरी प्राथमिकताओं को पहले रखा था। बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, दो दिन पूर्व जब में अपना कार्य पूर्ण कर वापस इंदौर आ रहा था तब उन्होंने मुझे सूचित किया कि मेरा बेग तैयार हो गया है। मैंने उन्हें बताया कि मैं देवास से गुजरने वाला हूँ तो उन्होंने मेरी सुविधा का ध्यान रखते हुए, एक कदम आगे बढ़कर, शोरूम मंगल हो जाने के बाद भी लड़के द्वारा नया बेग उपलब्ध करवाया।

दोस्तों अगर आप तीनों क़िस्सों पर गौर करेंगे तो पाएँगे कि एयरलाइन और रेस्टोरेंट ने जहाँ अपने मुनाफ़े और नियमों के अनुसार काम किया और वही मुख़्तार जी ने ग्राहक की सुविधा को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिए और ग्राहक को सुखद अनुभव दिया। याद रखिएगा दोस्तों, बड़े ब्रांड विज्ञापन और बड़ी-बड़ी बातों का हल्ला करके नहीं बल्कि हर ग्राहक को छोटे-छोटे सुखद अनुभव देकर बनते हैं।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com