फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


कल इंटरनेट पर एक राजनैतिक दल की सभा पूर्ण होने पर भीड़ को सभा में आने के लिए पैसे बाँटते हुए देखा। इस नज़ारे को देख मुझे हाल ही में रतलाम की एक सामाजिक संस्था क्रेड़ाई द्वारा रिलाएबल ट्रेड सेंटर, रतलाम, मध्यप्रदेश में युवाओं के समूह के लिए की गई दो दिन की कार्यशाला याद आ गई। संस्था का मुख्य उद्देश्य लोगों को राजनैतिक कार्यप्रणाली (विधायिका) और प्रशासकीय कार्यप्रणाली (कार्यपालिका) से परिचित करवाना था जिससे अच्छे लोग इन प्रणालियों का हिस्सा बनकर शहर की मूल समस्याओं का समाधान कर वास्तविक विकास कर सकें।

ट्रेनिंग के दौरान मैंने महसूस किया कि लोग राजनैतिक प्रणाली अर्थात् विधायिका के कार्य करने के तरीक़े में तो बदलाव चाहते हैं, लेकिन उसका हिस्सा नहीं बनना चाहते। साथ ही मैंने उस ट्रेनिंग के दौरान युवाओं की सोच में एक बदलाव और महसूस किया। जो युवा विधायिका का हिस्सा बनना चाहते थे, वे राजनैतिक दल की विचारधारा को ही राष्ट्र की विचारधारा अथवा राष्ट्र भक्ति मानने लगे है। 

वैसे जो सोच या भावनाएँ उन युवाओं की थी वैसी ही कुछ हम में से ज़्यादातर लोगों की रहती है। हम सभी देश चलाने के तरीक़े में कुछ ना कुछ सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं, लेकिन उस बदलाव का हिस्सा नहीं बनना चाहते। दोस्तों हमें एक मूल बात समझना होगी, लोकतांत्रिक प्रणाली में जो कुछ भी चल रहा है उसके ज़िम्मेदार हम जैसे साधारण लोग ही हैं। जी हाँ दोस्तों, हमारे सिवा इसका ज़िम्मेदार कोई और हो ही नहीं सकता क्यूँकि उन्हें चुनकर हमने ही भेजा है। अगर हम व्यक्ति को चुनने का  मानदंड बदलेंगे तो परिणाम अपने आप बदल जाएगा। व्यक्ति किस तरह का होना चाहिए ये मैं आपको आचार्य चाणक्य की एक कहानी से समझाने का प्रयत्न करता हूँ-

पाटलिपुत्र के अमात्य आचार्य चाणक्य बहुत ही विद्वान, न्यायप्रिय और देशभक्त होने के साथ-साथ सीधे-सादे, ईमानदार व्यक्ति थे। अमात्य आचार्य चाणक्य की सादगी का अंदाज़ा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि पाटलिपुत्र जैसे बड़े साम्राज्य के महामंत्री होने के बाद भी राजधानी से दूर, जंगल में छप्पर से ढकी कुटिया में रहते थे और उनका रहन-सहन किसी भी साधारण इंसान की ही तरह था। 

कूटनीति, राजनीति, समाज नीति और अर्थनीति पर उनकी पकड़ की वजह से अक्सर लोग उनके पास सलाह लेने, कुछ सीखने के लिये आया करते थे। भारत की अपनी यात्रा के दौरान यूनान के राजदूत पाटलिपुत्र के राजा चंद्रगुप्त से मिलने के लिए राज दरबार में पहुंचे। वहाँ राजसभा में आचार्य चाणक्य के तर्कों को सुन वे उनके क़ायल हो गए। उन्होंने आचार्य से निवेदन करते हुए कहा, ‘आचार्य! मैं आपके ज्ञान से बहुत प्रभावित हूँ। मैं आपसे व्यक्तिगत तौर पर मिलकर अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहता हूँ। क्या आप मुझे अपना क़ीमती समय दे पाएँगे?’ आचार्य तो थे ही सीधे और सरल व्यक्तित्व के मालिक, उन्होंने तुरंत उस राजदूत (दार्शनिक) को संध्या के समय में अपने घर आने के लिए कहा। राजदूत आचार्य के सरल व्यवहार को देख बहुत प्रसन्न था। 

संध्या को वह पूरी तैयारी के साथ आचार्य से मिलने के लिए राजमहल परिसर में पहुँच गया। लेकिन वहाँ राज प्रहरी से आचार्य का निवासस्थान का पता पूछने पर पता चला कि आचार्य तो नगर के बाहर, जंगल में रहते हैं। राजदूत राज प्रहरी के जवाब को सुन हैरान था। वह क़यास लगाने लगा कि आचार्य चाणक्य तो महामंत्री हैं इसलिए उन्होंने किसी बहुत ही सुंदर स्थान पर, सुरम्य वातावरण के बीच बड़ा सुंदर महल बना रखा होगा। जिसके आस-पास कोई झील या पहाड़ आदि भी हो सकता है। राजदूत इन्हीं विचारों में डूबा तेज़ गति से चलता हुआ आचार्य चाणक्य के घर के समीप पहुँचा और वहाँ एक कुटिया को देख आचार्य के निवासस्थान का पता पूछने वहाँ पहुँच गया। 

जैसे ही उसे यह पता चला कि यही कुटिया पाटलिपुत्र के महामंत्री अमात्य आचार्य चाणक्य का निवासस्थान है, तो वह स्तब्ध रह गया। उसे सपने में भी एहसास नहीं था कि इस पद पर रहने वाला व्यक्ति इतने साधारण घर में भी रह सकता है। आचार्य से अपनी मुलाक़ात पूर्ण होने पर उसने उनके पैर पड़े और शिकायती लहजे में कहा, ‘अमात्य, आप जैसा चतुर महामंत्री, राज का गुरु इतनी साधारण कुटिया में रहता है? हमें राजा से बड़े निवासस्थान के इंतज़ाम के लिए कहना चाहिए।’ 

राजदूत की बात सुन आचार्य चाणक्य पूर्ण गम्भीरता के साथ बोले, ‘जनता की कड़ी मेहनत और पसीने की कमाई से बने महलों में रहूँगा तो देश के आम नागरिकों को कुटिया भी नसीब नहीं होगी।’ आचार्य की बात में छुपे गहरे अर्थ और राज्य के प्रति उनकी ईमानदारी देख राजदूत नतमस्तक था।

वैसे तो दोस्तों, कहानी अपने आप में ही पूर्ण और स्पष्ट संदेश लिए हुए है। लेकिन फिर भी एक लाइन में कहूँ तो लोकतंत्र में व्यवस्थाओं में बदलाव सिर्फ़ सही व्यक्ति के चुनाव से ही हो सकता है और इसके लिए हमें उसमें भाग लेने के साथ-साथ लोगों को जागरूक भी बनाना होगा। 

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com