फिर भी ज़िंदगी हसीन है… 


बात कई साल पुरानी है, एक किसान अपने इलाक़े के सबसे पहुंचे हुए संत के पास पहुँचा और बोला, ‘गुरुजी, मैं तो इस ज़िंदगी से तंग आ गया हूँ। ऐसा लगता है मानों मेरी क़िस्मत ही फूटी है।’ संत मुस्कुराए और बोले, वत्स, तुम्हें क्यूँ लगता है कि तुम्हारी क़िस्मत ख़राब है?’ किसान बोला, ‘गुरुजी आप स्वयं चलकर देख लीजिए, इस वर्ष पूरे गाँव वालों की फसल कितनी अच्छी हुई है और मेरी कितनी ख़राब। टोना-टोटका, पूजा-अर्चना आदि हर उपाय आज़मा कर देख लिया है, लेकिन कोई फ़ायदा ही नहीं हो रहा है। अब आप ही बताइए किस तरह अपना जीवन चलाऊँ? ना अच्छे से खा पाता हूँ, ना ही अपने बीवी-बच्चों को खिला पाता हूँ, क़र्ज़ा हो गया है सो अलग,  अब सिर्फ़ आप ही से आस है।’ 

संत मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स, मेरी दृष्टि तो कह रही है कि तुम बहुत क़िस्मत वाले हो।’ किसान आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोला, ‘कैसे गुरुजी?’ संत बोले, ‘देखो तुम्हारे हाथ-पाँव सलामत हैं, तुम स्वस्थ हो, तुम्हारा मस्तिष्क भी बिलकुल सही तरीके से काम कर रहा है, तुम्हारे पास ज़मीन भी है। अब तुम ही बताओ तुम्हारी क़िस्मत में क्या ख़राबी है?’ किसान दुखी स्वर में बोला, ‘गुरुजी इन सब बातों से जीवन नहीं चलता और वैसे भी यह सभी के पास होता है। मेरे गाँव में सभी के पास यह सब है लेकिन इसके साथ ही उनके पास अच्छी फसल भी है और वे सुखी भी हैं। लेकिन मैं कई वर्षों से सिर्फ़ नुक़सान ही सह रहा हूँ।’

संत बोले, ‘वत्स यह सब तो ठीक है पर मेरी दूरदृष्टि बता रही है कि तुम  बहुत जल्द ही अमीर बनने वाले हो क्यूँकि तुम्हारे खेत में ख़ज़ाना छुपा हुआ है।’ ख़ज़ाने का नाम सुनते ही किसान बोला, ‘कहाँ पर गुरुजी, जल्दी बताइए मैं अभी खोद कर निकाल लाता हूँ।’ संत मुस्कुराए और बोले, ‘ऐसे नहीं वत्स पहले जैसा  मैं कह रहा हूँ तुम वैसा करते जाओ, फिर मैं तुम्हें ख़ज़ाने का पाता बताऊँगा। अभी तुम जाओ और अपने खेत को अच्छे से खोदकर उसकी मिट्टी लाओ।’ 

किसान उसी वक्त संत को प्रणाम कर चला गया और जाकर अपने खेत को खोदने लगा। लगभग एक सप्ताह बाद वह अपने खुदे हुए खेत की एक टोकरी मिट्टी लेकर संत के पास गया और बोला, ‘गुरुजी यह मिट्टी लीजिए और मुझे जल्दी से ख़ज़ाने का पता बताइए।’ संत बोले, ‘अभी नहीं वत्स अभी तुम्हें कुछ और काम करने होंगे, तब तुम्हें ख़ज़ाना मिलेगा। अब तुम जाओ और अपने खेत को अच्छे से जोतो और जोतने के बाद उसकी एक टोकरी मिट्टी मेरे लिए लेकर आओ।’ किसान ने ठीक इसी तरह किया और एक टोकरी मिट्टी लेकर संत के पास पहुँच गया। संत ने मिट्टी देखी और कहा, ‘अगर तुम्हें ख़ज़ाना चाहिए तो एक बार फिर से खेत जोतो।’ मरता क्या न करता, वह वापस खेत जोतने गया और एक बार फिर मिट्टी लेकर संत के पास पहुँचा।

संत ने मिट्टी देख किसान को उसमें बीज बोने, उसका ख़्याल रखने और उसे खाद, पानी देते हुए कीड़ों से बचाने की सलाह दी। किसान ने संत से कहा, ‘गुरुजी, इस वक्त बीज बहुत महँगे हैं क्या मैं अगले माह इस कार्य को करूँ?’ संत ने किसान को वक्त का महत्व समझाते हुए इसी वक्त बीज बोने की सलाह दी। किसान ने संत की इस सलाह को भी माना और संत से एक बार फिर ख़ज़ाने के बारे में पूछा। संत बोले, ‘वत्स बस अब तुम्हारी अंतिम परीक्षा है इसे उत्तीर्ण करो तुम्हें ख़ज़ाना अपने आप मिल जाएगा। किसान बोला, ‘गुरुजी मैं आपकी बात समझ नहीं पाया। थोड़ा विस्तार से बताइए।’ संत मुस्कुराते हुए बोले, ‘वत्स बस अब तुम अपनी फसल को बच्चे के समान पालो अर्थात् जो बीज तुमने ज़मीन में डाले हैं उनकी देखभाल करो, उन्हें प्यार से सीचो, ध्यान रखना उन्हें कोई तकलीफ़ ना हो, उनमें कोई कीड़ा ना लगे। अगर ऐसा हुआ तो तुम ख़ज़ाने से वंचित हो जाओगे।’

हालाँकि किसान इसके लिए राज़ी नहीं था लेकिन ख़ज़ाने के लालच ने उसे संत की यह बात भी मानने के लिए मजबूर कर दिया। किसान अब दिन रात खेत पर लगा रहता था। कुछ ही माह में ज़मीन में से पौधे बाहर आने लगे। किसान उन्हें देखकर खुश हो गया और उसे संत की बात, ‘ज़मीन में ख़ज़ाना होने’ का अर्थ समझ आने लगा। उस वर्ष किसान के खेत में  गांव की सबसे अच्छी फसल हुई थी और उसे बाज़ार में अच्छे दामों में बेचकर किसान ने अपना सारा क़र्ज़ा उतार दिया और खेती के लिए बैलों समेत ज़रूरी संसाधन जुटा लिए। 

दोस्तों हमेशा क़िस्मत को दोष देना उचित नहीं है जिस तरह संत ने सही समय पर सही कर्म कराकर किसान को क़िस्मत वाला बना दिया,  ठीक उसी तरह हम भी सही समय पर सजग रहते हुए मौक़ों को पहचानकर, सही कर्म करते हुए अपनी क़िस्मत बना सकते हैं। जी हाँ दोस्तों, सजग रहते हुए मौक़ों को पहचानकर कर्म करना ही क़िस्मत बनाना होता है। तो चलिए आइए आज से आप और हम मिलकर  अपनी नई क़िस्मत बनाते हैं। 

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com