बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) की स्थिति को लेकर रोना तो सभी रोते हैं लेकिन इसे सुधारने की दिशा में राज्य सरकारों के कदम तब भी नहीं उठते हैं, जब विशेष सुविधा दी जाए। जून, 2021 में केंद्र सरकार ने राज्यों को बिजली सुधार के लिए कदम उठाने के एवज में अपनी राज्य जीडीपी का 0.5 फीसद अतिरिक्त कर्ज लेने की इजाजत दी थी। अभी तक के ताजे आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ तीन राज्यों- आंध्र प्रदेश, मणिपुर और राजस्थान ने प्रस्ताव भेजा है। वहीं, विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कई राज्यों में राजनीतिक दल मुफ्त बिजली देने का पासा फेंक रहे हैं।

आशंका इस बात की है कि पूर्व की कोशिशों की तरह कहीं इस बार भी डिस्काम की स्थिति सुधारने की योजना फिसड्डी ना साबित हो। बिजली मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि आंध्र प्रदेश के प्रस्ताव को वित्त मंत्रालय ने मंजूरी दी है और राज्य को 2100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज हासिल हुआ है। जब इस योजना को लागू किया गया था तो उम्मीद जताई गई थी कि राज्य 80 हजार करोड रुपये तक की राशि अतिरिक्त कर्ज ले सकेंगे।

तब राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों पर बिजली बनाने वाली कंपनियों का 1.20 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था और यह माना जा रहा था कि अगर राज्य एक साथ आगे आएं तो डिस्काम की वित्तीय स्थिति को सुधारा जा सकता है।

अभी राज्यों की वितरण कंपनियों पर तकरीबन 1.50 लाख रुपये का बकाया है। जबकि मार्च, 2021 में रेंटिग एजेंसी ICRA की रिपोर्ट बताती है कि डिस्काम पर संयुक्त तौर पर छह लाख करोड़ रुपये का बैंकिंग कर्ज है।

बता दें कि सरकार की तरफ से अतिरिक्त कर्ज के लिए जो शर्त लगाई गई है, उसके मुताबिक पहले राज्यों को अपने डिस्काम की सालाना रिपोर्ट जारी करनी होगी, टैरिफ शुल्क को ज्यादा पारदर्शी बनाना होगा और बिजली सब्सिडी का पूरा लेखा जोखा पारदर्शी तरीके से पेश करना होगा।