फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों अक्सर मैंने अपने इस लेख में जीवन में सही प्राथमिकताओं के महत्व पर बात करी है। लेकिन हर बार इस विषय पर बात करने के बाद कुछ ही दिनों में ऐसा लगने लगता है जैसे एक बार फिर इस पर चर्चा की जानी चाहिए। इस बार भी यह विचार नए वर्ष के प्रथम दिन लोगों से फ़ोन पर हुई चर्चा की वजह से याद आ गया।

नव वर्ष की पूर्व संध्या और नव वर्ष वाले दिन बधाइयों के सिलसिले के दौरान परिचितों से हुई बातचीत में फिर से वही बात निकलकर सामने आई जो सामान्यतः हर साल आती है। इस वर्ष भी 10 में से 9 लोगों के लक्ष्य एक नई कार, नया और बड़ा घर, अच्छी नौकरी, एक अच्छा टूर या विदेश यात्रा जैसे थे। लेकिन इस पर चर्चा करने से पहले मैं आपको एक बड़ी ही सारगर्भित कहानी सुना देता हूँ।

एक दिन एक छोटी सी चींटी घर के छज्जे पर अपने से कई गुना बड़ा पत्ता खींच कर ले जा रही थी। उसकी यह हरकत वाक़ई चौकानें वाली थी क्यूँकि इस पत्ते को अपने साथ ले जाते वक्त इस चींटी ने बड़ी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया था। जैसे, रास्ते में कुछ अड़चन आने पर उसने एक मोड लिया और थोड़ा सा आगे चल कर फिर से पुराने और सही रास्ते पर आ गई। थोड़ा और आगे चलने पर एक जगह पर छज्जे में बड़ी दरार थी। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे पत्ते के साथ इसे पार करना चींटी के बस की बात नहीं है। लेकिन उसने असाधारण बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए पत्ते का उपयोग एक पुल के रूप में करा। अर्थात् उसने पहले पत्ते को धक्का देते हुए दरार के ऊपर से पत्ते को दूसरी ओर सरकाया फिर उसी पत्ते के ऊपर चलते हुए दरार पार करी और वापस से पत्ते को लेकर अपने गंतव्य की ओर बढ़ गई।

पत्ते को ले जाते वक्त उस छोटे से जीव अर्थात् चींटी ने कई बार सिद्ध किया कि भले ही मैं छोटी सी हूँ लेकिन उस परमपिता परमेश्वर ने मुझे भी असीमित क्षमताएँ दी हैं। वाक़ई दोस्तों ईश्वर की बनाई यह सृष्टि किसी चमत्कार से कम नहीं है। सोचकर देखिएगा, एक जीव जो ना तो हमारे समान अपनी इच्छा, अपनी पसंद से खाने का इंतज़ाम कर सकता है, ना ही अपनी पसंद, अपनी इच्छानुसार रह सकता है, जो हर हाल में हमसे कई मामलों में कमजोर है, उसमें भी चिंतन, तर्क, अन्वेषण, खोज करने की क्षमता है। ईश्वर ने उसे भी मस्तिष्क अथवा उसके समान ही कोई अन्य अंग दिया है जो उसे अपनी क्षमताओं का प्रयोग करने में मदद करता है।

ख़ैर इस बिंदु को यहीं छोड़ते हैं और वापस अपनी कहानी की ओर लौटते हैं। रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों को पार करते हुए वह चींटी लगभग एक घंटे में अपने घर के दरवाज़े अर्थात् उसके भूमिगत घर या बिल में घुसने के छेद तक पहुँच गई। वहाँ पहुँचने पर चींटी के सामने दुविधा थी कि जिस पत्ते को वह बड़ी सावधानी, बड़ी मेहनत के साथ, इतनी दूर लेकर आयी थी, उसे अपने भूमिगत घर में कैसे लेकर जाए? उस नन्हे से प्राणी ने हार मानने की जगह अपने मस्तिष्क का प्रयोग कर तमाम तरीके आज़माए, बहुत से प्रयास करे लेकिन अंततः कोई और विकल्प ना देख, चींटी को उसे बहार ही छोड़ना पड़ा।

दोस्तों, बड़े पत्ते को इतनी दूर, अपने घर तक लाने की चुनौतीपूर्ण यात्रा शुरू करने से पहले चींटी ने बिलकुल नहीं सोचा था कि वह पत्ता वाक़ई में भी उसके काम का है या नहीं या वह उसे अपने साथ लेकर भी जा पाएगी या नहीं। इसलिए, अंत में वह उसके लिए बोझ से ज़्यादा कुछ साबित नहीं हुआ, जिसे ढोने के लिए उसने अपने जीवन का क़ीमती समय गँवा दिया।

सोचकर देखिएगा साथियों, कहीं यह हमारे जीवन की कहानी तो नहीं है? जी हाँ दोस्तों, हममें से ज़्यादातर लोग अपने परिवार, अपनी नौकरी, अपने पैसे, अपनी गाड़ी, अपना घर, ब्रांडेड सामान, अच्छे कपड़े आदि में ही उलझे रह जाते हैं और इन्हें ही अपना अंतिम लक्ष्य मान, पाने के लिए हर पल प्रयासरत रहते हैं। इन्हें एकत्र करते समय हमें यह याद ही नहीं रहता कि हम यह सभी चीज़ें एक दिन छोड़ने के लिए ही इकट्ठा कर रहे हैं और साथ ही इन चीजों को इकट्ठा करने के चक्कर में उन चीजों को छोड़ते जा रहे हैं जो जीवन की अंतिम स्वाँस और शायद उसके बाद भी हमारे साथ रहना है। जैसे अच्छी यादें, इंसानियत अर्थात् मानवता पर आधारित कर्म आदि।

दोस्तों, अगर आप अपने जीवन को सही तरीक़े से जीना चाहते हैं, तो आज से हर काम की शुरुआत करने से पहले खुद से प्रश्न कर लीजिएगा, ‘मैं अपने समय, बुद्धि, क्षमता का प्रयोग कहीं बोझा उठाने के लिए तो नहीं कर रहा हूँ?’

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com