फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, जीवन में कई बार जो बात बड़ी-बड़ी ट्रेनिंग, किताब या कोई और तरीक़ा नहीं समझा पाता है, वह आँखों के सामने घटी कोई घटना या जीवंत उदाहरण आपको एक पल में समझा जाता है। बात 2007-2008 के बीच की है, कम्प्यूटर का व्यवसाय बंद करने के बाद ट्रेनर बनने की प्रोसेस के दौरान मेरे मन में कई बार शंका उत्पन्न होती थी कि मैं सही रास्ते पर भी चल रहा हूँ या नहीं। इसकी सबसे प्रमुख वजह आर्थिक नुक़सान की वजह से उत्पन्न हुई चुनौतियाँ और अचानक से आयी समस्याएँ थी।

मेरे विश्वास और सपने के प्रति ऊर्जा को बनाए रखने के लिए मेरे गुरु मुझे अलग-अलग से तरीक़े से समझाया करते थे। 2008 में मेरे गुरु द्वारा 14 सप्ताह का एक वर्कशॉप दिल्ली में आई॰टी॰ओ॰ के पास हिंदी भवन में आयोजित किया था। ट्रेनिंग के दौरान मेरी भूमिका दोहरी होती थी। ट्रेनिंग के पहले, बाद में और टी ब्रेक में, मैं सर का सहायक होता था और बाक़ी समय छात्र।एक दिन पारिस्थितिक कारणों से मैं थोड़ा डाउन फ़ील कर रहा था और अपने निर्णय, सपने और सोच पर प्रश्न लगा रहा था।

सर शायद मेरी परिस्थिति भाँप गए और उन्होंने मुझे सभी के लिए चाय का इंतज़ाम करने का कहते हुए, हिंदी भवन के नीचे फुटपाथ पर चाय बेचने वाले सज्जन को ऑर्डर देने के लिए भेजा। मैं फुटपाथ पर सजी उनकी दुकान और आस-पास का माहौल देख हैरान रह गया। ज़मीन पर रखे स्टोव पर वे चाय बना रहे थे, लेकिन पास में ही उसी फुटपाथ पर किताबें भी सजी हुई थी। पहले तो मुझे लगा शायद अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए वे दो काम कर रहे हैं। लेकिन वहीं फुटपाथ पर एक विदेशी को ज़मीन पर बैठकर उनसे बात करते देख मैं चौंक गया। विदेशी द्वारा पूछे गए प्रश्नों का वे बड़ी सधी हुई भाषा के साथ जवाब दे रहे थे। साथ ही वहाँ कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ उनके फ़ोटोग्राफ़ भी लगे हुए थे। उस वक्त तो समय की कमी के कारण मैं वहाँ रुक नहीं पाया, बस अपना ऑर्डर उन्हें बताया और वापस ट्रेनिंग हाल में पहुँच गया। कुछ देर पश्चात वे चाय लेकर आए और बहुत अच्छे से मुस्कुराते हुए सभी से बातचीत करते हुए शानदार चाय दी, वैसे यह कहना बिलकुल भी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगी कि शायद दिल्ली में उतनी बढ़िया चाय मैंने कभी नहीं पी थी। 

उस दिन ट्रेनिंग खत्म होते ही मैंने सर से उनके विषय में बात करी तो पता लगा कि उन सज्जन का नाम श्री लक्ष्मण राव है और वे चाय और किताब बेचने वाले के साथ-साथ एक बेहतरीन लेखक और विचारक भी हैं और उनके पाठकों या प्रशंसकों की सूची में हमारे देश के कई विद्वान, पूर्व राष्ट्रपति और प्रतिष्ठित लोग भी हैं। उनकी लिखी किताबें हर साल दिल्ली में आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में प्रदर्शित की जाती हैं और वे कई पुस्तक मेलों में व्याख्यान के लिए भी बुलाए जाते हैं। 

अगले दिन जब मैं उनके पास चाय का ऑर्डर देने गया, मेरा नज़रिया उनके प्रति पूरी तरह बदला हुआ था। उस दिन बातचीत में मुझे पता चला कि लक्ष्मण राव जी अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए चाय की दुकान चलाते हैं और इसी दुकान की सहायता से उन्होंने अपने कई सपनों को पूरा किया है और आज एक अच्छा इज़्ज़तदार जीवन जी रहे है। इसी व्यापार की सहायता से उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षित भी किया है। इसलिए वे आजीवन इस व्यवसाय को करते रहना चाहते हैं। लक्ष्मण राव जी के साथ बिताए कुछ मिनटों ने मुझे मेरे लक्ष्य, मेरे सपने के लिए प्रतिबद्ध कर दिया और उस दिन मेरे मन में विचार आया कि जब यह इस परिस्थिति में कार्य कर सकते हैं तो मैं क्यूँ नहीं? 

दोस्तों, ऐसी ही कुछ साधारण लोगों द्वार दी गई महान सीखों की वजह से आज मैं अपने सपने को पूरा कर पाया हूँ। कुछ माह पूर्व जब लक्ष्मण राव जी के बारे जानकारी ली तो पता चला कि वे अभी भी उसी तरह अपने जीवन को चला रहे हैं। 

68 वर्षीय लक्ष्मण राव जी ने अपने जीवन अनुभव से अब तक 25 किताबें लिखी है। अपने विचार और किताबें आम लोगों तक पहुँचाने के लिए वे रोज़ शहर के विभिन्न इलाक़ों में साइकिल से किताबें बेचते हैं और अब तक उनकी 30,000 से ज़्यादा प्रतियाँ बेच चुके हैं। अभी वे अपने इसी पेशे और जीवनशैली के साथ पी॰एच॰डी॰ करने की योजना बना रहे हैं। साथ ही अपने प्रशंसकों से उनकी भाषा में संवाद करने के लिए नई भाषाएँ भी सीख रहे हैं।

दोस्तों, फुटपाथ पर चाय की दुकान लगाकर मिलने वाली न्यूनतम आय से न केवल अच्छा और बेहतरीन जीवन जिया बल्कि अपने बच्चे को शिक्षित कर अच्छी नौकरी करने लायक़ बनाया। दोस्तों विलक्षण व्यक्तित्व के मालिक लक्ष्मण राव जी के जीवन को देख लगता है कि कोई भी सपना छोटा नहीं होता और उम्र एक संख्या से अधिक कुछ नहीं है बशर्ते आप दृढ़ इच्छाशक्ति रखते हो। जी हाँ साथियों, अगर आपको स्वयं पर विश्वास है तो आपको कोई रोक नहीं सकता है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com