जीवन का सार - ख़ुशी

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
शहर के सबसे बड़े सेठ धनिराम एक बहुत ज़रूरी कार्य के सिलसिले में कलेक्टर से मिलने के लिए अपनी कार से जा रहे थे, अचानक रास्ते में उनकी कार ख़राब हो गई। धनिराम को अपने ड्राइवर पर बहुत ज़्यादा ग़ुस्सा आ रहा था, उन्होंने पहले तो उसे काफ़ी डाँटा, फिर उससे तुरंत मकैनिक को बुलाने के लिए कहा और खुद कलेक्टर के यहाँ जाने के लिए साधन तलाशने लगे।
थोड़ी ही दूरी पर सेठ को पेड़ की छाँव में एक साइकल रिक्शा खड़ा दिखाई दिया। सेठ तेज़ कदमों से उसके पास पहुँचे लेकिन रिक्शे वाले को उस छोटे से रिक्शे में आराम से सोता देख हैरान हो गए। वे मन-ही-मन सोचने लगे कि इन मुश्किल परिस्थिति में भी वह इतने आराम से कैसे रह रहा है?
मीटिंग में पहुँचने की जल्दी में उन्होंने रिक्शावाले से इस बारे में तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उसे तुरंत कलेक्टर कार्यालय चलने के लिए बोला। रिक्शे वाले ने सेठ को बैठाया और गाना गुनगुनाते हुए अपनी मंज़िल की ओर चल दिया। उसे गुनगुनाता देख सेठ एक बार फिर सोच में पड़ गए कि इतनी मेहनत और थकाने वाला काम करते वक्त भी यह इतना खुश कैसे रह सकता है? ख़ैर मंज़िल पर पहुँचने के बाद उन्होंने रिक्शावाले को 20 रूपये दिए और कार्यालय में अंदर चले गए। उस पूरे दिन वे उसी रिक्शावाले के बारे में विचार कर रहे थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि इतने कम पैसे, थकाने वाले काम और सीमित संसाधनों में भी यह रिक्शावाला इतना खुश कैसे रह रहा है? उन्हें उस रिक्शा वाले से ईर्ष्या होने लगी थी।
सेठ को वो रिक्शावाला बाज़ार में जब भी दिखता हमेशा खुश ही दिखता। सेठ को कुछ समझ नहीं आ रहा था उन्होंने उस रिक्शावाले के हमेशा खुश रहने का राज जानने के लिए उसे रात के भोजन पर अपने घर बुलाया। रिक्शावाले ने सेठ का बुलावा स्वीकार करा और तय समय पर उनके घर पहुँच गया। वहाँ सेठ ने भोजन में तरह-तरह के पकवान उसे परोसे, पर रिक्शावाले ने उन्हें प्रसाद के तौर पर स्वीकारा और बिना कोई प्रतिक्रिया दिए उसे शांत भाव के साथ खाने लगा। उसके हाव-भाव से ऐसा लग रहा था मानो वह रोज़ इसी तरह का खाना खाता है।
रिक्शावाले की प्रतिक्रिया देख सेठ धनिराम एक बार फिर हैरान थे वे सोच रहे थे कि कोई आम आदमी खाने में इतने ज्यादा तरह के व्यंजन देखकर भी शांत रहते हुए, बिना हैरानी और प्रतिक्रिया दिए कैसे उतनी ही मौज में रह सकता है जितना वो रिक्शा में था? यह सब कुछ देखकर सेठ की ईर्ष्या और बढ़ने लगी ।
सेठ ने रिक्शा वाले को कुछ दिन अपने घर में रुकने के लिए राज़ी किया और अपने सभी नौकरों से कहा कि इनको हर तरह की सुविधाएँ दी जाए और उसमें कोई कमी ना रहे। अब रिक्शा वाले की इज्जत काफ़ी बढ़ गई थी, कोई उसके लिए पानी लेकर, तो कोई तरह-तरह के व्यंजन लेकर तैयार खड़ा रहता था। वह अगर कहीं जाता था तो एक नौकर छाते की छाँव करते हुए उसके साथ चलता था लेकिन इतना सब होने के बाद भी उसमें कोई फ़र्क़ नहीं दिखाई पड़ता था, वह अपनी मौज में ही रहता था।
सेठ यह सब देखकर और परेशान रहने लगा कि नौकर चाकर, एयर-कंडीशन कमरा, बड़ा टीवी आदि सब देने के बाद भी जब इसको कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ रहा है तो क्यों ना इसे वापस इसकी पुरानी जगह पर ही भेज दूँ? लेकिन अगले ही पल उसे विचार आया कि एक बार उस रिक्शे वाले से बात करके तो देख लिया जाए। उसने रिक्शे वाले को बुलाया और उससे पूछा, ‘आप यहाँ खुश तो हैं ना?’ रिक्शा वाले ने हाँ में गर्दन हिला दी। सेठ ने फिर अगला प्रश्न करा, ‘आप आरामदायक स्थिति में तो हैं ना?’ रिक्शा वाले ने कहा, ‘जी बिलकुल ’ सेठ ने उससे कहा, ‘लेकिन मैंने आपके व्यवहार में, आपके रहन सहन के तरीक़े में कोई बदलाव नहीं देखा। इसलिए मुझे लगता है आप सिर्फ़ मेरा मन रखने के लिए ऐसा कह रहे हैं। मैं आपको और ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देना चाहता हूँ, इसलिए मेरे आदमी आपको आपके पुराने स्थान तक छोड़ देंगे।
सेठ को लग रहा था कि अब तो रिक्शावाला ज़रूर परेशान होगा लेकिन वह अभी भी उतना ही शांत बना हुआ अपनी मौज में था। उसने सेठ को धन्यवाद दिया और अपना झोला लेकर वहाँ से चल दिया। सेठ रिक्शा वाले के जाने के बाद भी अशांत था। अब वह जब भी अपनी कार से रिक्शा वाले के इलाक़े से गुज़ारता था तो वह कार के काले काँच के अंदर से उसे देखा करता था। रिक्शावाला उसे अभी भी अपनी मौज में आराम से उसी रिक्शे पर दिख ज़ाया करता था। सेठ की परेशानी अपने चरम पर थी वह सोच रहा था कि आख़िर चक्कर क्या है? रिक्शा वाले के पास जब कुछ भी नहीं था तब भी वह मज़े में था, जब इसे सब मिल गया तब भी वह वैसा ही बना हुआ था और जब इससे सब छीन लिया उसके बाद भी इसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। ऐसा कैसे सम्भव है? कोई आदमी हर हाल में, कठिनाइयों और परेशानियों के बीच भी मौज में कैसे बने रह सकता है?
उसने यही प्रश्न अपने गुरु से पूछा । गुरु ने उसे बताया कि जब तक तुम्हारी ख़ुशी किसी बाहरी चीज़ पर निर्भर है तब तक मौज में रहना, खुश रहना सम्भव नहीं है। उस रिक्शा वाले ने जीवन के इस महत्वपूर्ण सार को समझ लिया है। वह भविष्य के लिए अपना वर्तमान ख़राब करने के स्थान पर अपने वर्तमान में जीता है। जो भी उसके समक्ष आता है वह उसे ईश्वर का प्रसाद मान ग्रहण करता है भले ही वह सुख-सुविधा हो या साधारण जीवन।
जी हाँ दोस्तों कामयाबी, ख़ुशी, शांति सब हमारे अंदर ही छिपी हुई है उसे खोजना ही खुद को खोजने के सामान है और जब आप खुद को खोज लेते हैं आप इस अमूल्य जीवन को बर्बाद करने के स्थान पर, जीना शुरू कर देते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com