फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत में एक सच्ची घटना से करते हैं। बात लगभग 10 वर्ष पूर्व की है, पुणे के एक मॉल में, एक नामी ब्रांड की दुकान पर मैं अपने लिए जूते पसंद कर रहा था। मेरे पास ही एक परिवार और जूते पसंद करने में व्यस्त था। शोरूम वाले के व्यवहार को देख साफ़ महसूस हो रहा था कि शायद वे कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। उनकी निजता का ध्यान रख या यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि अपने अहंकार को संतुष्ट करते हुए मैंने सोचा, ‘यह सज्जन कोई भी क्यूँ ना हो इससे मुझे क्या फ़र्क़ पड़ता है?’ और उन्हें नज़रंदाज़ कर अपने कार्य में व्यस्त हो गया।

कुछ देर तक तो सब सामान्य रहा पर अचानक कानों में पड़ती एक आवाज़ ने मेरे अहंकार को चूर-चूर कर दिया और मैं एक पल से भी कम समय में धरातल पर आ गया और उन सज्जन की बातों को ध्यान से सुनने का प्रयास करने लगा। पूरी घटना कुछ इस प्रकार थी। मेरे समीप बैठे सज्जन ने कई जूते ट्राई करने के बाद एक जूता पसंद करा और उसकी क़ीमत सेल्स मैन से पूछी। सेल्स मैन की बताई क़ीमत सुनते ही वे बोले, ‘भई, थोड़ा सस्ता जूता दिखाइए यह तो बहुत महँगा है।’ उनकी बात का जवाब सेल्स मैन देता, उससे पहले ही उनके साथ आई महिला, जो शायद उनकी पुत्रवधू थी, बोली पापा जी, यह कहाँ महँगा है, आपका बेटा इससे चार गुनी क़ीमत का जुता पहनता है।’ महिला की बात सुन वे सज्जन बोले, ‘वो पहन सकता है क्यूँकि उसके पिता राहुल बजाज हैं, मैं नहीं।’

उनकी बात सुनते ही मेरे होश उड़ गए। मैंने तुरंत उनकी ओर नज़र घुमाकर देखा, मेरे एकदम पास बैठे व्यक्ति और कोई नहीं बजाज ऑटो के मालिक पद्म भूषण श्री राहुल बजाज थे। उनके सरल स्वभाव को देख मैं हैरान था। मुझे तुरंत उनका एक इंटरव्यू याद आ गया जिसमें उन्होंने एक प्रश्न के जवाब में बताया था कि वे बजाज के स्कूटर को बनाने में बाइक के मुक़ाबले ज़्यादा मेटल का उपयोग करते हैं क्यूँकि स्कूटर हमारे मध्यम वर्गीय परिवार का मल्टी यूटिलिटी वाहन होता है। आम भारतीय इसका उपयोग परिवार को ले जाने के साथ-साथ सामान ढोने के लिए भी करता है।

दोस्तों, भारत के प्रमुख व्यवसायी घराने में 10 जून 1938 को जन्में राहुल बजाज अपने पिता महान व्यवसायी श्री जमनालाल बजाज के समान मध्यमवर्गीय परिवार की ज़रूरतों और सोचने के तरीक़े को बहुत अच्छे से समझते थे। उनकी दूरदर्शिता का ही कमाल था कि लाइसेंस-परमिट राज के कठिन दिनों में उन्होंने भारत की सर्वश्रेष्ठ कम्पनियों में से एक की नींव रखी और उसे वर्ष 1980 के लगभग शीर्ष स्कूटर निर्माता कम्पनी बना दिया था। कम्पनी की सफलता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उनके बनाए स्कूटर की बुकिंग अवधि 10 वर्ष तक थी।

भारत के उदारीकरण के दौरान ऑटोमोबाइल क्षेत्र में होंडा, सुजुकी, यामाहा, पियाजियो जैसी सफल और बड़ी कम्पनियों के आने के बाद भी उन्होंने अपनी प्रबंधन क्षमता का परिचय देते हुए बाज़ार में बढ़त या अपनी हिस्सेदारी बनाई रखी। दोस्तों, आज वे शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके जीवन से या उनके द्वारा बताए गए सफलता के सूत्रों से हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। उदाहरण के लिए आज हम उनके द्वारा प्रबंधन स्नातकों को जीवन में सफल होने के लिए बताए गए 5 सूत्रों को सीखते हैं-

पहला सूत्र - प्रभावी ढंग से सुनें जिससे आप बाज़ार को बेहतर तरीके से समझ पाएँगे और तार्किक आधार पर नवाचार अर्थात् इन्नोवेशन पर ध्यान दे पाएँगे।
दूसरा सूत्र - एक उद्यमी के भाँति बड़ी सोच रखें। यह आपको जीवन में हर वो मुक़ाम पाने में मदद करेगा जिसका सपना आपने देखा है। साथ ही यह आपको नौकरी में रहते हुए एंटरप्रेन्योर बनने में मदद करेगा।
तीसरा सूत्र - सीखते रहें क्यूँकि सीखने की ललक बनाए रखना या नए कौशल को विकसित करना आपके अंदर क्रॉस फंक्शनलिटी और मल्टी टास्किंग के कौशल को विकसित करता है।
चौथा सूत्र - कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है लेकिन साथ ही स्मार्ट वर्क करेंगे तो जल्दी सफल हो पाएँगे।
पाँचवाँ सूत्र - बाजार में हमेशा प्रतिस्पर्धा रहेगी, कभी भी हार ना माने, दृढ़ इच्छाशक्ति, दूरदृष्टि और योजना के साथ मुक़ाबला करें।


-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com