फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
 

काफ़ी दिनों बाद विदेश से भारत आए अपने एक मित्र से मिलने का मौक़ा मिला। शुरुआती बातचीत में हाल-चाल पूछने की परम्परा निभाते हुए मैंने जैसे ही उससे पूछा, ‘और सुनाओ विदेश में ज़िंदगी कैसी चल रही है?’ वह लगभग फट पड़ा और बोला, ‘यह भी कोई ज़िंदगी है क्या? सुबह उठो और काम के लिए भागो, ऑफ़िस पहुँचो और गधों के माफ़िक़ काम निपटाने में जुट जाओ। काम पूरा होते ही वापस 2 घंटे का सफ़र करो, घर पहुँचो, खाने का इंतज़ाम करो, खाओ और सो जाओ। यही हाल बीवी का भी है। विदेश पहुँच गए तो क्या हुआ कम्पनी और बॉस दोनों ही भारतीय है। वे वहाँ भी निचोड़ने वाली मानसिकता के साथ काम करते हैं। रही बात बेटे की तो यह तो पूरा विदेशी बन गया है।’

मित्र का जवाब सुनकर मैं हैरान था, मैं मन ही मन सोच रहा था कि अगर इतनी परेशानी है तो वहाँ रुका हुआ क्यों है? कम्पनी वालों ने ज़बरदस्ती पकड़कर तो नहीं बैठा रखा है। रही बात बेटे की तो उसको जैसी शिक्षा, जैसा माहौल, जैसी परवरिश मिलेगी वह वैसा ही बनेगा। ठीक इसी तरह दोस्तों, किसी भी काम को देखने या करने का नज़रिया जैसा होगा वह वैसा ही परिणाम देगा। यही बात जीवन के लिए भी सौ प्रतिशत लागू होती है।

ख़ैर, इस बात को अभी यहीं छोड़ते हैं। मित्र से मिलकर लौटते वक्त मैं मित्र के द्वारा इस तरह दी गई प्रतिक्रिया के बारे में सोच रहा था। मुझे ऐसा लगता है दोस्तों उसकी प्रतिक्रिया एकदम सामान्य थी। मनुष्य स्वभाव से ही अधीर, भुलक्कड़ और तात्कालिक परिस्थितियों के आधार पर प्रतिक्रिया देने वाला होता है। उसकी इस आदत को हम कुछ हद तक ‘मतलबी’ होना भी कह सकते हैं। जब कभी उसके साथ अच्छा होता है, वह खुश हो जाता है, उसे बहुत अच्छा लगने लगता है और जब उसका मतलब निकल जाता है उसे वही बात साधारण लगने लगती है। ठीक इसी तरह जब उसके साथ कुछ बुरा होने लगता है, वह पूर्व में हुई सारी अच्छी बातें भूल जाता है।

मेरे मित्र के साथ भी ऐसा ही हो रहा था। मुझे बहुत अच्छे से याद है लगभग 10 वर्ष पूर्व का वह दिन जब कम्पनी द्वारा विदेश में कार्य करने के लिए चुने जाने पर वह कितना खुश था। इतना ही नहीं वहाँ की शिक्षा और जीवनशैली के फ़ायदे गिनाकर वह किस तरह अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध परिवार सहित वहाँ जाकर बस गया था। आज जब उसे वह सब मिल गया जो वह चाहता था तो उसे अब वहाँ हर चीज़ में समस्या नज़र आ रही है।

सामान्यतः दोस्तों हम सभी अपने जीवन में इसी एक आदत के कारण परेशान रहते हैं। अगर आप शांति और ख़ुशी के साथ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने अंदर स्वीकारोक्ति के भाव को विकसित करें। जी हाँ साथियों, स्वीकारोक्ति का भाव ख़ुशहाल और शांतिपूर्ण जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। हमें स्वीकारना होगा कि कोई दिन हमारी इच्छानुसार, हमारी योजनानुसार परिणाम देगा, तो हो सकता है अगला ही दिन इसके ठीक विपरीत हो सकता है।

दोस्तों, स्वीकारोक्ति के भाव को विकसित करने के लिए हमें चेतन अवस्था में स्वीकारोक्ति का प्रयोग अपनी भावनाओं के साथ किए गए कार्यों पर मिले परिणामों, अपने बच्चों, परिवार, दोस्तों और परिचितों के साथ करना होगा। इतना ही नहीं दोस्तों इस प्रयोग को हम अपने डर, विपत्ति और अवांछनीय स्थितियों के साथ भी कर के देख सकते हैं। अर्थात् दोस्तों हमें उपरोक्त सभी लोगों, बातों या स्थितियों में प्रयोग के तौर पर स्वीकारोक्ति के भाव को रखना होगा और फिर उसके परिणाम का अंतर खुद पर चेतन अवस्था में देखना होगा।

शांतिपूर्ण और सुखी जीवन के लिए उक्त परीक्षणों की स्वीकृति महत्वपूर्ण है। जी हाँ साथियों, शांतिपूर्ण और सुखी जीवन के लिए हमें अपने जीवन पथ पर जो भी मिलेगा उसे अनुग्रहपूर्वक स्वीकारना होगा। दोस्तों, जब आप रोज़मर्रा में अपने जीवन में आने वाली चीजों या परिणामों से संघर्ष करने के स्थान पर उन्हें अपने व्यवहार प्रबंधन के द्वारा स्वीकारने लगते हैं तो आप जीवन में परेशानियों, शिकायतों से आगे निकलकर खुश और शांतिपूर्ण जीवन जीना सीख जाते हैं।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com